Friday, March 15, 2024

NCERT, SANSKRIT SHEMUSHI CLASS-9 CHAPTER-3 गोदोहनम्

                                                                         (प्रथम दृश्य)

                               (मिठाई बनाते हुए मल्लिका धीमी स्वर में भगवान शिव की प्रार्थना करति है)

                        (उसके बाद मिठाई के सुगन्ध को महसुस कर प्रसन्न चित्त वाले चन्दन प्रवेश करता है।)

चन्दनः  -  आहा! सुगन्ध तो मनमोहक है (देखकर) अरे मिठाइयाँ बनरहे हैं? (प्रसन्न होकर) चखता हूँ। (मोदक लेना चाहता है)

मल्लिका  -   (क्रोध सहित) रुको। रुको। इन मिठाइयों को मत छुओ।

चन्दनः - गुस्सा क्यों कर रहे हो! तुम्हारे हाथ के बने हुए मिठाइयों को देखकर मैं जीभ का लालच को नियन्त्रण करने में असमर्थ हूँँ, क्या यह तुम नहीँ जानते हो?

मल्लिका-   प्रिये! अच्छी तरह मालूम है। परन्तु ये सभी मोदकें पूजा के लिए हैं।

चन्दनः -  तो फिर, शीघ्र ही पूजा सम्पन्न करो। और प्रसाद दो।

मल्लिका -  भो! पूजा यहाँ नहीं होगी। मैं अपनी सहेलियों के साथ कल सुबह काशीविश्वनाथ मन्दिर जाउँगी, वहाँ हम गङ्गास्नान और धर्मयात्रा करेंगे। 

चन्दनः -  सहेलियों के साथ! मेरे साथ नहीं! (विषाद का नाटक करता है) 

मल्लिका -  हाँ। चम्पा, गौरी, माया, मोहिनी, कपिला आदि सब जा रहे हैं। इसलिए, मेरे साथ तुम्हारा आगमन तर्कसंगत नहीं है। हम सप्ताह के अन्त में लौट आएँगे। तबतक गृह-व्यवस्था और गाय का दुग्धदोहनव्यवस्था  सम्भाल लेना।


द्वितीयं दृश्यम्

चन्दनः  --   ठीक  है। जाओ। और सहेलियों के साथ धर्मयात्रा से आनन्दित हो। मैं भी सब सँभाल लूंगा। तुम सब का मार्ग मंगलमय हो। 

चन्दनः --   मल्लिका तो धर्मयात्रा के लिए  चलिगई । ठीक है। दुग्धदोहन कर के  अपने नाश्ते का प्रबंध करूँगा। (स्त्रीबेश धारण कर, दूग्धपात्र हाथ में लेकर नन्दिनी के समीप जाता है। )

उमा --  मामी!  मामी! 

चन्दनः --  हे उमा!  मैं मामा हूँ। तुम्हारे मामी तो गंगास्नान के लिए काशी गई है। बताओ! तुम्हारा क्या  अच्छा कर सकता हूँ? 

उमा -- मामा! दादाजी बताए हैं, एक महीने के बाद हमारे घर में महोत्सव होगा। उसमें तीन सौ लीटर दूध आवश्यक होगा। यह व्यवस्था आपको करना है।

चन्दनः -- (प्रसन्नचित्त के साथ )  तीन सौ लीटर दूध। अच्छा है। दूध का व्यवस्था हो जाएगा - यह तुम दादाजी को बतादो।

उमा -- धन्यवाद मामा! अब जा रही हूँ। (वो चली गई )

                  तृतीय दृश्य 

चन्दनः -- (प्रसन्न होकर, उङ्गलियों में गिनकर) अरे! तीन सौ लीटर दूध! इस से तो बहुत धन मिलेगा । (नन्दिनी को देख कर ) हे नन्दिनि! तुम्हारी कृपा से तो मैं धनी बन जाऊँगा। (खुश हो कर वो गाय का बहुत सेवा करता है )

चन्दनः -- (सोचता है ) महीने के अन्त में ही दूध का आवश्यकता है। यदि प्रत्यह  दूध दोहन करता हूँ तो दूध सुरक्षित नहीं रहता है। अभी क्या कर सकता हूँ ? ठीक है कि महीने के अन्त में ही पूर्णरूपसे दूध दोहता  हूँ। 

(इसी क्रम से सात दिन बित जाता है। सप्ताह के अंत में मल्लिका लौट आती है)

मल्लिका -- (प्रवेश कर) स्वामि! मैं लौट आई। प्रसाद सेवन करो। ( चन्दन मोदक खाता है और कहता है) 

चन्दनः --  मल्लिका! तुम्हारी यात्रा अच्छी तरह सफल हुआ? काशीविश्वनाथ के कृपा से तुम्हें अच्छी बात सुनाता हूँ। 

मल्लिका  --(आश्चर्य के साथ ) अच्छा! धर्मयात्रा से अतिरिक्त अधिक प्रिय क्या  है? 

चन्दनः -- गांव के मुखिया के घर पर महीने के अन्त में महोत्सव होगा। वहाँ तीन लीटर दूध हम्है देनी है।
मल्लिका -- किन्तु इतने मात्रा के दूध कहाँ से प्राप्त करेंगे? 
चन्दनः -- सोचो मल्लिका!  प्रत्यह दोह कर अगर दूध रखते हैं तो वो सुरक्षित नहीं रहता है ।इसलिए दुग्धदोहन नहीं करते हैं। उत्सव के दिन ही समग्र दूध दोहेंगे। 
मल्लिका -- स्वामि! तुम तो बहुत चतुर हो। अति उत्तम विचार है। अभी दूध दोहना छोड़ कर केवल नन्दिनी की सेवा ही करेंगे। इसी से अधिक से अधिक दूध महीने के अन्त में मिलेगा। 
         (दोनों ही नन्दिनी की सेवा में संलग्न होते हैं। इसी क्रम में घास और गुड़ आदि खिलाते हैं। कभी कभी दोनों सींग का तेल का लेप देते हुए तिलक धारण कराते हैं, रात में पंखे से  भी सन्तुष्ट कराते हैं )
चन्दनः   -- मल्लिका! आओ । कुम्हार के समीप चलते हैं। दूध  के लिए पात्र का भी व्यवस्था करना होगा। (दोनों ही निकल जाते हैं )
       
        (चतुर्थ दृश्य)
कुम्भकारः  -- (घड़ा बनाने में लीन हो कर गाता है )

जैसे यह मिट्टी की घड़ा, उसी प्रकार सभी के जीवन टूट कर समाप्त  होने वाला है जान कर भी मैं जीविका के कारण घड़ों को बनाता हूँ। 
चन्दनः  -- पिता नमस्कार करता हूँ! पंदरह घड़े चाहिए। देंगे  क्या? 
देवेशः -- क्यों नहीं? ये सब बेचने के लिए ही है। घड़ों को ले जाओ। और एकसौ पचास रुपये दो। 
चन्दनः -- उत्तम। किन्तु मूल्य तो मैं दूध वेच कर ही दे सकता हूँ। 
देवेशः  -- क्षमा करो पुत्र! मूल्य के विना तो एक भी घड़ा नहीं दूँगा।
मल्लिका -- (अपनी आभूषण देना चाहती है ) तात! यदि अभी ही मूल्य की आवश्यक है, तब इन गेहनों को लो। 
देवेशः -- पुत्री! मैं पापकाम नहीं करता हूँ। तुम्हें आभूषणविहीना करने के लिए मैं बिल्कुल भी नहीं चाहता हूँ। अपने ईच्छा से घड़ों को लीजिए। दूध बेचकर ही घड़ों का मूल्य आप दें। 
उभौ -- पिता! (तुम) धन्य हो। (तुम) धन्य हो। 
        ( पंचम  दृश्य)
(एक महिना वाद की  संध्या समय है।  खाली नये घड़े एक तरफ हैं। दूध खरीददार और  गाँव के अन्य लोग दूसरे तरफ बैठे हैं)
चन्दनः  --(गाय को प्रणाम कर, मंगल गीत सुनाकर मल्लिका को बुलाता है ) मल्लिका! शीघ्र आओ।
मल्लिका - आ रही हूँ स्वामी! तब तक  दुग्धदोहन कार्य आरम्भ करो। ीीी और  चन्दन पात्र के साथ गिर जाता है)। नन्दिनि! दूध दो। तुम्हें क्या हुआ? (पुनः प्रयास करता है ) (नन्दिनी भी वार वार पैर से पिटाई कर के चन्दन को रक्तरंजित  कर देता है)।  हा! मैं मरगया। (चिल्लाते  हुए गिर जाता है) (सभी आश्चर्य से चन्दन को और परस्पर को देखते हैं)
मल्लिका - (चीत्कार सुनकर, शीघ्र प्रवेश कर)  स्वामी! क्या हुआ? तुम कैसे रक्तरंजित हो गए? 
चन्दनः - दूध दोहने के लिए गाय अनुमति ही नहीं दे रही है।दोहनप्रक्रिया प्रारम्भ करते ही मुझे मारता है। 
(मल्लिका  गाय को स्नेह और वात्सल्य से बुलवाकर दोहने के लिए  प्रयत्न करती है। किन्तु धेनु ही दुग्धहीना यह ज्ञात होता है )
मल्लिका - (चन्दन प्रति ) स्वामि! हम दोनों से बहुत अनुचित   किया गया है कि, महीने तक धेनु का दोहन नहीं किया। वह  कष्ट अनुभव करती है। इसलिए मारती है। 
चन्दनः - देवी! मुझ से  भी ज्ञात हुआ की, हमारे द्वारा सभी प्रकार से अनुचित किया गया है, सम्पूर्ण एक महीने तक दुग्धदोहन नहीं  किया । इसलिए यह दुग्धहीना हो गई। सत्य ही कहा गया है -
जो आज का काम होता है वो अभी करनी चाहिए। जिस के गति विपरीत  है अर्थात् जो कार्यों को समय से पहले सम्पन्न नहीं  करता है , वो निश्चय ही कष्ट पाता है। 
मल्लिका - हाँ,  स्वामि! सत्य है। मेरे द्वारा भी पढा़ गया है कि -
 कल्याण चाहनेवालों के द्वारा कार्य उत्तम रूप से विचार करके ही किया जाना चाहिए। जो व्यक्ति यह बिना सोचे ही करता है, वो दुःखी होता है। 
किन्तु आज ही यह प्रत्यक्ष अनुभूत हुआ। 
सर्वे - दिन का कार्य उसी दिन ही करना  चाहिए। जो ऐसा नहीं करता है, वो निश्चय ही कष्ट पाता है। 
                        (परदा गिरता है )
                       (सब मिलकर गाते हैं) 

लेने, देने और करने योग्य कार्य यदि शीघ्रता से उचित समय पर नहीं किया जाता है तो समय उसका रस पी जाता है। 

                                                   अभ्यासः
१.  एकपदेन उत्तरं लिखत - 
   क)   काशिविश्वनाथमन्दिरं 
    ख)  त्रि-शतसेटकमितं 
     ग)  विक्रयणाय/विक्रयणार्थं
     घ)  मोदकानि ।
      ङ)  चन्दनः ।  
२.  पूर्णवाक्येन उत्तरम् लिखत - 
   क)  मल्लिका चन्दनश्च मासपर्यन्तं घासादिकं गुड़ादिकं च भोजयित्वा, कदाचित् विषाणयोः तैलं  लेपयित्वा, तिलकं धारयित्वा, रात्रौ नीराजनेनापि तोषयित्वा धेनोः सेवां अकुरुताम्। 
  ख)  कालः क्षिप्रमक्रियमाणस्य आदानस्य प्रदानस्य कर्तव्यस्य च कर्मणः रसं पिवति। 
  ग)  घटमूल्यार्थं यदा मल्लिका स्वाभूषणम् दातुम् प्रयतते तदा कुम्भकारः वदति यत् "पुत्रिके! नाहम् पापकर्मं करोमि। कथमपि नेच्छामि त्वाम् आभूषणविहीनां कर्तुम् । नयतु यथाभिलषितं घटान्। दुग्धम् विक्रीय एव घटमूल्यम् ददातु"। 
घ) मल्लिकया धेनुः दुग्धहीना दृष्टवा तस्याः ताड़नस्य वास्तविकं कारणम् ज्ञातम्। 
ङ) मासपर्यन्तं धेनोः अदोहनस्य कारणम् भवति यत् प्रतिदिनं दोहनं कृत्वा दुग्धम् स्थापयामः चेत् तत् सुरक्षितं न तिष्ठति । उत्सवदिने एव समग्रं दुग्धं  धोक्षावः। 

३.  रेखाङ्कितपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणम् कुरुत -
   क)  मल्लिका कैः सह धर्मयात्रायै गच्छति स्म?
   ख)  चन्दनः दुग्धदोहनं कृत्वा एव कस्य प्रवन्धं  अकरोत्?
   ग)   कानि पूजानिमित्तानि रचितानि आसन्?
   घ)   मल्लिका स्वपतिंं किं मन्यते?
   ङ)   का पादाभ्यां ताड़यित्वा चन्दनं रक्तरंजितं करोति? 
४.  
     १)   धर्मयात्रायाः 
      २)  गृहव्यवस्थायै
      ३)  मङ्गलकामनाम्
      ४)  कल्याणकारिणः
      ५)   उत्पादयेत्
      ६)   समर्थकः
५.  घटनाक्रमानुसारं लिखत -
     
      घ)  मल्लिका पूजार्थं मोदकानि रचयति। 
      क)  सा सखीभिः सह तीर्थयात्रायै काशीविश्वनाथमन्दिरं गच्छति। 
       ग)  उमा मासान्ते उत्सवार्थं दुग्धस्य आवश्यकता विषये  चन्दनं सूचयति।
      ज)  चन्दनस्य पत्नी तीर्थयात्रां समाप्य गृहं प्रत्यागच्छति। 
      छ)  चन्दनः उत्सवसमये अधिकं  दुग्धं प्राप्तुं मासपर्यन्तं दोहनं न करोति। 
      ख)  उभौ  नन्दिन्याः सर्वविधपरिचर्यां कुरुतः।
       ङ)  उत्सवदिने यदा दोग्धुं प्रयत्नं करोति तदा नन्दिनी पादेन प्रहरति। 
       च)  कार्याणि समये करणीयानि इति चन्दनः नन्दिन्याः पादप्रहारेण अवगच्छति। 
      
६.
      क) धन्यवाद मातुल! याम्यधुना।                     उमा                       चन्दनं प्रति
      ख)  त्रिसेटकमितं दुग्धम्। शोभनम्।
            व्यवस्था भविष्यति।                              चन्दनः                    उमां प्रति
      ग)  मूल्यं तु दुग्धम् विक्रीयैव                         कुम्भकारः                चन्दनं प्रति
             दातुं     शक्यते। 
      घ)  पुत्रिके! नाहं पापकर्म                               कुम्भकारः                मल्लिकांप्रति 
            करोमि। 
      ङ)  देवि! मयापि ज्ञातं यदस्माभिः 
            सर्वथानुचितं कृतम्।                                 चन्दनः                  मल्लिकां प्रति
७.    
      क)  शिवास्ते     -    शिवाः  +  ते
      ख)  मनः +  हरः    =   मनोहरः 
      ग)   सप्ताहान्ते  =   सप्ताह +  अन्ते 
      घ)   नेच्छामि     =  न    +   इच्छमि
      ङ)   अत्युत्तमः  =   अति  +  उत्तमः
अ) 
       क)   करणीयम्  =  कृ +  अनीय
       ख)   वि+क्री+ल्यप् =  विक्रीय 
       ग)    पठितम्    =   पठ्  +  क्त
       घ)    तड्य+क्त्वा =  ताडयित्वा
      ङ)  दोग्धुम्   =    दोह्  +  तुमुन् 





सुभाषितम्(NOBLE THOUGHTS)

 अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः। चत्वारि तस्य बर्धन्ते आयुर्विद्यायशोबलम्॥(महर्षि मनुः)  अर्थ  -               प्रतिदिन नियमितरूपसे गुरु...