Thursday, April 15, 2021

NCERT, SANSKRIT SHEMUSHI CLASS-9 CHAPTER-8 जटायोः शौर्यम्


१) तब करुण वाणी में विलाप करती हुई अत्यन्त दुःखी, विशाल नेत्रोंवाली सीता विशाल वृक्ष पर बैठे हुए जटायु को देखा॥
२.  आर्य जटायू! बूरे काम करने वाले इस राक्षस राज रावण के द्वारा अनाथ की तरह ले जाए जाती हुई मुझे देखो॥

३. तब सोये हुए जटायु ने वह शब्द सुना तथा रावण को देखकर शीघ्र ही उसने सीता को देखा॥
४. तब पर्वत की शिखर के समान सुंदरता वाले, तीखी चोंच वाले, वृक्ष पर स्थित शोभायुक्त तथा श्रेष्ठ पक्षी उस जटायु ने सुंदर वाणी में कहा॥
५. परयी स्त्री स्पर्षदोष से अपनी नीच बुद्धि को रोको। बुद्धिमान मनुष्य को ऐसा आचरण नहीं करना चाहिए जिससे दुसरे लोग उसकी निंदा करें॥
६. मैं वृद्ध हूँ । किन्तु तुम युवक हो, धनुर्धारी हो, रथ सहित हो,कवचधारी हो एवं वाण धारण किए हुए हो। फिर भी तुम सीता को लेकर कुशलपूर्वक नहीं जा सकोगे॥
७. उस उत्तम और महाबल पक्षी ने अपने तीखे नाखूनों तथा दोनों पैरों से प्रहार कर रावण के शरीर पर अनेक घाव बनादिया॥
८. तब अत्यंत तेजस्वी उस जटायु ने रावण के मुक्तामणि से सुशोभित तथा बाण सहित विशाल धनुष को तोड़ दिया॥
९. तब टूटे हुए धनुष वाला, रथहीन, मारे गए घोड़ों वाला तथा मारे गए सारथि वाला उस रावण ने सीता को गोद में ले कर पृथ्वी पर गिर गया॥
१०. तब अत्यंत क्रोध से रावण ने बाँये गोद में धारण कर तलवार की मूठ से जटायु पर शीघ्र ही प्रहार किया॥
११. तब शत्रुओं को नष्ट करने वाला पक्षियों का राजा जटायु ने उस को लांघ कर अपने चोंच से झपट कर उस रावण के दस बाँये भुजाओं को नष्ट कर दिया॥

                                         अभ्यासः

१. अधोलिखितानां प्रश्नानाम उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत -
क) " जटायो! पश्य" इति का वदति?
उत्तरम्- " जटायो पश्य" इति सीता वदति।
ख) जटायुः रावणं किं कथयति?
उत्तरम्- जटायुः रावणं कथयति यत् "परस्त्रीस्पर्शात् नीचां मतिं निवर्तय। धीरः न तत् समाचरेत् यत् परः अस्य विगर्हयेत्"।
ग) क्रोधवशात् रावणः किं कर्तुम् उद्यतः अभवत्?
उत्तरम्- क्रोधवशात् रावणः वामेनाङ्केन वैदेहीं संपरिष्वज्य तलेन जटायुं शीघ्रम् हन्तुं उद्यतः अभवत्।

घ) पतगेश्वरः रावणस्य कीदृशं चापं सशरं बभञ्ज?
उत्तरम्- पतगेश्वरः रावणस्य मुक्तामणिविभूषितं चापं सशरं बभञ्ज।
ङ) हताश्वो हतसारथिः रावणः कुत्र अपतत्?
उत्तरम्- हताश्वो हतसारथिः रावणः भुवि अपतत्।
२. उदाहरणमनुसृत्य णिनि-प्रत्ययप्रयोगं कृत्वा पदानि रचयत-
यथा- गुण + णिनि - गुणिन्(गुणी)
दान + णिनि - दानिन्(दानी)
क) कवच + णिनि - कवचिन्
ख) शर + णिनि - शरिन्
ग) कुशल + णिनि - कुशलिन्
घ) धन + णिनि - धनिन्
ङ) दण्ड + णिनि - दण्डिन्
३. रावणस्य जटायोश्च विशेषणानि सम्मिलितरूपेण लिखितानि तानि पृथक्-पृथक कृत्वा लिखत-
रावणः - जटायुः
यथा- युवा - वृद्धः
सशरः - महाबलः
हताश्वः - पतगसत्तमः
भग्नधन्वा - महागृध्रः
क्रोधमूर्च्छितः - खगाधिपः
सरथः पतगेश्वरः
कवची
शरी
४. सन्धिं सन्धिविच्छेदं वा कुरुत-
यथा- च + आदाय - चादाय
क) हत + अश्वः - हताश्वः
ख) तुण्डेन + अस्य - तुण्डेनास्य
ग) बभञ्ज + अस्य - बभञ्जास्य
घ) अङ्केन + आदाय - अङ्केनादाय
ङ) खग + अधिपः - खगाधिपः

५. "क" स्तम्भे लिखितानां पदानां पर्यायाः "ख" स्तम्भे लिखिताः। तान यथासमक्षम योजयत-
"क" - "ख"
कवची - कवचधारी
आशु - शीघ्रम्
विरथः - रथविहीनः
पपात - अपतत्
भुवि - पृथिव्याम्
पतगसत्तमः - पक्षिश्रेष्ठः

६. अधोलिखितानां पदानां विलोमपदानि मञ्जूषायां दत्तेषु पदेषु चित्वा यथासमक्षं लिखत-
पदानि - विलोमशब्दाः
क) विलपन्ती - हसन्ती
ख) आर्य - अनार्य
ग) राक्षसेन्द्रेण - देवेन्द्रेण
घ) पापकर्मणा - पुण्यकर्मणा
ङ) क्षिप्रम् - मन्दम्
च) विगर्हयेत् - प्रशंसेत्
छ) वृद्धः - युवा
ज) आदाय - प्रदाय
झ) वामेन - दक्षिणेन
ञ) अतिक्रम्य - अनतिक्रम्य

सुभाषितम्(NOBLE THOUGHTS)

 अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः। चत्वारि तस्य बर्धन्ते आयुर्विद्यायशोबलम्॥(महर्षि मनुः)  अर्थ  -               प्रतिदिन नियमितरूपसे गुरु...