हिन्दी अनुवाद -
कोई भ्रमित बालक पाठशाला जाने के समय पर खेलने के लिए निकल गया। किन्तु उसके साथ खेल द्वारा समय बिताने के लिए तब मित्रों में से कोई भी उपलब्ध नहीं था। क्योंकि वे सभी भी पहले दिन के पाठों को याद करके विद्यालय जाने के लिए शीघ्रता से तैयारी कर रह थे। आलसी बालक लज्जा से उनके दृष्टि से बचता हुआ अकेला ही कीसी उद्यान में प्रवेश कर गया।
उसने सोचा - ये वेचारे पुस्तकों के गुलाम रुके। मैं दुबारा अपना मनोरंजन करुँगा। क्रोधित आचार्य के मुख को निश्चित रूप से पुनः देखुँगा। वृक्ष के कोटर में रहने वाले यह प्राणी ही मेरे मित्र बन जाएँगे।तब उसने पुष्पउद्यान को जाते हुए भँवरे को देखकर उसे खेलने को बुलाया। दो तीन बार इसके बुलाने पर भी उसने ध्यान नहीं दिया।
फिर बार-बार बालक के हठ करने पर वो गुनगुनाया- हम मधु संग्रह करने में व्यस्त हैं।
तब उस बालक ने "झूठे गर्व वाले इस कीड़े को छोड़ो" यह सोच कर अन्यत्र दृष्टि डालते ही एक चिड़िया को चोंच से घास तिनका आदि उठाता हुआ देखा। और कहा- " रे चिड़िया के बच्चे ! मुझ मनुष्य के मित्र बनोगे। आओ खेलते हैैं। यह शुखे तिनके को छोड़ो। मैं तुम्हें स्वादिष्ट खाने की चीजें दुँगा"।
वह भी " बरगद वृक्ष की शाखा पर मुझे घोंसला बनाना है; अतः मैं काम पर जा रहा हूँ" एसा कहकर वह अपने कार्यों में लग गया।
तब दुःखी बालक कहता है, ये पक्षियाँ मनुष्यों के समीप नहीं जाते हैं। अतः मैं मनुष्यों के योग्य अन्य मनोरंजन करने वाले को ढूँढता हूँ। एसा सोच कर परिक्रमा करते ही भागते हुए किसि कुत्ते को देखा। आनन्दित बालक उसे इस प्रकार संबोधित किया- हे मनुष्यों के मित्र! तुम एसे गर्मी के दिन में क्यों घूम रहे हो? इस घने और शीतल छाया वाले वृक्ष का आश्रय ले लो।
मैं भी खेल में सहयोगी के लिए तुम्हे ही उपयुक्त समझता हूँ। कुत्ते ने कहा- जो पुत्रतुल्य मेरा पालनपोषण करता है उस स्वामी के घर के रक्षा के कार्यों में लगे होने से मुझे थोड़ा सा भी नहीं हटना चाहिए।
सभी के द्वारा ऐसे मना किया जाने के बाद वह बालक टूटे मनोरथ वाला होकर- " कैसे इस संसार में प्रत्येक प्राणी अपने अपने कर्तव्यों में व्यस्त है। कोई भी मेरी तरह बिना कारण समय नष्ट नहीं कर रहा है। इन सब को प्रणाम जिन के द्वारा मेरा आलस के प्रति घृणा भाव उत्पन्न हुआ है। अतः मैं भी स्वयं के लिए उचित काम करता हूँ यह विचार करके शीघ्र ही पाठशाला चलागया।
तब से लेकर वह विद्यारत होकर विशाल सम्पदा, विद्वता और प्रसिद्धि प्राप्त करता है।
१. अधोलिखितानां प्रश्नानामुत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत-
क) बालः कदा क्रीडितुं निर्जगाम?
उत्तरम्- बालः पाठशालागमनवेलायां क्रीडितुम् निर्जगाम।
ख) बालस्य मित्राणि किमर्थं त्वरमाणा बभूवुः?
उत्तरम्- बालस्य मित्राणि पूर्वदिनपाठान् स्मृत्वा विद्यालयगमनाय त्वरमाणा बभूवुः।
ग) मधुकरः बालकस्य आह्वानं केन कारणेन न अमन्यत?
उत्तरम्- मधुकरः मधुसंग्रहे व्यग्रो भूत्वा बालकस्य आह्वानम् न अमन्यत।
घ) बालकः कीदृशं चटकम् अपश्यत्?
उत्तरम्- बालकः चञ्च्वा तृणशालकादिकमाददानम् चटकम् अपश्यत्।
ङ) बालकः चटकाय क्रीडनार्थं कीदृशं लोभं दत्तवान्?
उत्तरम्- बालकः चटकाय क्रीडनार्थं स्वादिष्टभक्षकवलानां लोभं दत्तवान्।
च) खिन्नः बालकः श्वानं किम् अकथयत्?
उत्तरम्- खिन्नः बालकः श्वानं इदं अकथयत्- "रे मानुषाणां मित्र! अस्मिन् निदाघदिवसे किमर्थं पर्यटसि? आश्रयस्वेदं प्रच्छायशीतलं तरुमूलम्"।
छ) विघ्नितमनोरथः बालः किम् अचिन्तयत्?
उत्तरम्- विघ्नितमनोरथः बालः इदं अचिन्तयत्- "कथमस्मिन् जगति प्रत्येकं स्व-स्वकृत्ये निमग्नो भवति। कोऽपि अहमिव वृथा कालक्षेपं न सहते। एतेभ्यो नमः यैः मम तन्द्रालुतायां कुत्सा समापादिता। अथ स्वोचितमहमपि करोमि"।
२. श्लोकस्य अर्थः -
जो पुत्रतुल्य मेरा पालनपोषण करता है, उस स्वामी के घर की रक्षा के कार्यों में लगे होने से थोडा सा भी मुझे नहीं हटना चाहिए॥
४. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-
क) स्वादूनि भक्षकवलानि ते दास्यामि।
प्रश्नम्- किदृशानि भक्षकवलानि ते दास्यामि?
ख) चटकः स्वकर्मणि व्यग्रः आसीत्।
प्रश्नम्- चटकः कस्मिन कुत्र वा व्यग्रः आसीत्?
ग) कुक्कुरः मानुषाणां मित्रम् अस्ति।
प्रश्नम्- कुक्कुरः केषां मित्रम् अस्ति?
घ) स महतीं वैदुषीं लब्धवान्।
प्रश्नम्- सः किं लब्धवान्?
ङ) रक्षानियोगकरणात् मया न भ्रष्टव्यम् इति।
प्रश्नम्- कस्मात् मया न भ्रष्टव्यम् इति?
५. नमः इत्यस्य योगे चतुर्थीविभक्तेः प्रयोगं कृत्वा पञ्चवाक्यानि रचयत।
उत्तरम्- १. गुरुभ्यो नमः।
२. पितृभ्यो नमः।
३. सृष्टिरचनाकाराय नमः।
४. नमः तव कार्यकुशलतायै।
५. देशरक्षकेभ्यो नमः।
६. "क" स्तम्भे समस्तपदानि "ख" स्तम्भे च तेषां विग्रहः दत्तानि, तानि यथासमक्षं लिखत-
उत्तरम्- "क" स्तम्भ "ख" स्तम्भ
(क) दृष्टिपथम् ३) दृष्टेः पन्थाः
(ख) पुुस्तकदासाः ४) पुस्तकानां दासाः
(ग) विद्याव्यसनी २) विद्यायाः व्यसनी
(घ) पुष्पोद्यानम् १) पुष्पाणाम् उद्यानम्
७. (क) विशेषणपदम् विशेष्यपदं च पृथक्-पृथक् चित्वा लिखत-
विशेषणम् विशेष्यम्
१) खिन्नः बालः - खिन्नः बालः
(ख) कोष्ठकगतेषु पदेषु सप्तमीविभक्तेः प्रयोगं कृत्वा रिक्तस्थानपूर्तिं कुरुत-
(१) बालः पाठशालागमनवेलायां क्रीडितुं निर्जगाम।
(२) अस्मिन् जगति प्रत्येकं स्वकृत्ये निमग्नो भवति।
(३) खगः शाखायां नीडं करोति।
(४) अस्मिन् निदाघदिवसे किमर्थं पर्यटसि?
(५) नगेषु हिमालयः उच्चतमः।