Monday, January 2, 2023

NCERT SANSKRIT SHEMUSHI CLASS-10 CHAPTER - 7 VICHITRAH SAAKSHEE

                    

 

                     किसी निर्धन जन ने बहुत परिश्रम कर अत्यधिक धन कमाया । उस धन से वह अपने बेटे को एक महाविद्यालय में अध्ययन के लिए प्रवेश दिलाने में सफल हुआ। वह पुत्र वहाँ छात्रावास में ही रहते हुए अध्ययन में तल्लीन हो गया। एक बार वह पिता पुत्र की बीमार होने की खबर सुन कर विचलित हो गया और पुत्र को देखने के लिए निकलगया। अत्यधिक धनाभाव के कारण वह बस यान को छोड़ कर पैदल ही चला गया।

    पैदल चलते हुए संध्या समय आगमन पर भी यह जन गन्तव्य स्थान से दूर था। रात्रि में अन्धकार फैलने पर एकान्त प्रदेश में पदयात्रा शुभ नहीं होता। यह विचार कर वह पास में स्थित गाँव में रात में निवास करने के लिए कीसि गृहस्थ के पास रह गया। करुणापूर्वक गृहस्थ ने उसे आश्रय दिया। 

      भाग्य की लीला अद्भूत है। उस रात को ही उनके घर एक चोर प्रवेश किया।।उसने घर में रखी हुई एक पेटीका को लेकर भाग गया। चोर के पैरों के ध्वनि से जागा हुआ अतिथि चोर की शङ्का से उसके पिछे भागा और पकड़लिया, लेकिन विचित्र घटना घटा। चोर ही ज़ोर ज़ोर से चिल्लाना शुरु कर दिया "यह चोर यह चोर"। उसके ऊँची आवाज़ से जगे हुए गाँव के लोग अपने घरों से निकलकर वहाँ  पर आते हुए अतिथि को ही चोर समझकर भला-बुरा कहने लगे। लेकिन गाँव का आरक्षी ही चोर था। उसी समय ही रक्षापुरुष ने उन अतिथि को "यह चोर" ऐसा स्थापितकर (ठहराकर) कारागार में डालदिया।

अगले दिन वह आरक्षी चोरी के आरोप में उसको न्यायालय ले गया। न्यायाधीश वंकिमचन्द्र दोनों से अलग अलग विवरण सुने। सभी विषय को  जानकर न्यायाधीश मेहमान को निर्दोष और सैनिक को दोषी मानाा। किन्तु सबूत न होने के कारण निर्णय लेने में असमर्थ रहे। इसलिए उन दोनों को अगले दिन उपस्थित होने के लिऐ आदेश दिए। और किसी दिन वो दोनों न्यायालय में पुनः अपना अपना पक्ष को रखा। तभी वहाँ का कोई कर्मचारी आ कर प्रार्थना की कि यहाँ से दो कोस के मध्य में किसी के द्वारा किसी व्यक्ति का हत्या हो गया है। उसका मृतशरीर राजमार्ग के पास है। क्या करना होगा आज्ञा दीजिए। न्यायाधीश आरक्षी और अतिथि को उस शव को  न्यायालय में ले कर आने के लिए आज्ञा दी।

    आदेश प्राप्त कर वे दोनों चल पड़े। वहाँ पहुँच कर लकड़ी के तख्ते पर रखे हुए और कपड़े से ढके हुए  शरीर को कन्धे पर धारण करते हुए  न्यायालय कि ओर चल पड़े। सैनिक हृष्ट-पुष्ट था और अभियुक्त बहुत कमज़ोर।भारवाही(बोझ वाले) शव को कन्धे पर वहन करना उसके लिए मुस्किल था। वह बोझ की पीड़ा से रोने लगा। उसका रोना सुन कर प्रसन्न चौकीदार उसको बोला- "हे दुष्ट! उस दिन तुमने मुझे चुराए हुए संदूक को ले जाने के लिए मना किया। अब अपने कर्म का फल भुगतो। इस चोरी के अभियोग (जुर्म)में तुम तीन साल का सज्ज़ा प्राप्त करोगे" एसा कहकर वह ज़ोर से हँसने लगा। जैसे-तैसे उन दोनों ने शव को लाकर एक चौराहे पर रख दिया। 

  न्यायाधीश के द्वारा वे दोनों पुनः घटना के वारे में बोलने के लिए आदिष्ट हुए।सैनिक के द्वारा अपना पक्ष प्रस्तुत करते समय आश्चर्यजनक घटना घटी। उस शव ने ओढ़ा हुआ वस्त्र हटा कर न्यायाधीश को अभिवादन कर निवेदन किया- मान्यवर! इस आरक्षी के द्वारा मार्ग में जो कुछ कहा गया मैं उसका वर्णन करता हूँ  "तुमने मुझे चोरी की सन्दूक ले जाने में मना किया, इसलिए अपने कर्म का फल भोगो। इस चोरी के अभियोग में तुम्हे तीन साल की सज्ज़ा मिलेगी"।

न्यायाधीश ने चौकीदार को कारादण्ड का आदेेेश दे कर उस व्यक्ति को सम्मान के साथ छोड़ दिया।

  इसलिए कहागया है- बुद्धि और वैभव से युक्त व्यक्ति नीति तथा युक्ति का सहारा लेकर कठीन  कार्यों को भी खेल-खेल में सम्पन्न कर देते हैं।

                                                                 अभ्यासः  

१.    अधोलिखितानां प्रश्नानाम उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत-

     क) निर्धनः जनः कथं वित्तमुपार्जितवान्?

 उत्तरम-   निर्धनः जनः भूरि परिश्रम्य धनं उपार्जितवान्।

   ख)  जनः किमर्थं पदातिः गच्छति?

  उत्तरम्-  जनः परमर्थकार्श्येन पदातिः गच्छति।

  ग)  प्रसृते निशान्धकारे स  किम अचिन्तयत्?

   उत्तरम्-  प्रसृते निशान्धकारे स अचिन्तयत यत विजने प्रदेशे पदयात्रा न शुभावहा इति।

घ)  वस्तुतः चौरः कः आसीत्?

   उत्तरम्-   वस्तुतः आरक्षी  चौरः आसीत्।

  ङ)  जनस्य क्रन्दनं निशम्य आरक्षी किमुक्तवान्?

    उत्तरम्-  जनस्य क्रन्दनं निशम्य आरक्षी उक्तवान्- "निजकृत्यस्य फलं भुङ्क्ष्व। यतः चोरिताया मञ्जूषाया ग्रहणाद् त्वया अहं वारितः। अस्मिन् चौर्याभियोगे त्वं वर्षत्रयस्य कारादण्डं लप्स्यसे"।

 च)  मतिवैभवशालिनः दुष्कराणि कार्याणि कथं साधयन्ति?

  उत्तरम्-  मतिवैभवशालिनः दुष्कराणि कार्याणि नीतिं युक्तिं समालम्ब्य लीलयैव साधयन्ति।

२.  रेखाङ्कितपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-

        क) पुुत्रं द्रष्टुं सः प्रस्थितः।

     प्रश्नम्-   कम् द्रष्टुं सः प्रस्थितः?        

     ख)  करुणापरो गृही  तस्मै आश्रयं प्रायच्छत्।

  प्रश्नम्-  करुणापरो गृही कस्मै आश्रयं प्रायच्छत्?

 ग)  चौरस्य पादध्वनिना अतिथिः प्रबुद्धः।

  प्रश्नम्-  कस्य पादध्वनिना अतिथिः प्रबुद्धः?

  घ)  न्यायाधीशः बंकिमचन्द्रः आसीत्।

  प्रश्नम्-  न्यायाधीशः कः आसीत्?

ङ)  स भारवेदनया क्रन्दति स्म।

  प्रश्नम्-  स कया क्रन्दति स्म?

 च)  उभौ शवं चत्वरे स्थापितवन्तौ।

  प्रश्नम्-  उभौ शवं कुत्र स्थापितवन्तौ?

 ३.  यथानिर्देशमुत्तरत--

    क)  "आदेशं प्राप्य उभौ अचलताम्" अत्र किं कर्तृपदम्?

  उत्तरम्- "आदेशं प्राप्य उभौ अचलताम्" अत्र  "उभौ " कर्तृपदमस्ति।

    ख)  "एतेन आरक्षिणा अध्वनि यदुक्तं तत् वर्णयामि"- अत्र "मार्गे" इत्यर्थे किं पदं प्रयुक्तम्?

    उत्तरम्-  "एतेन आरक्षिणा अध्वनि यदुक्तं तत् वर्णयामि"- अत्र  "मार्गे" इत्यर्थे "अध्वनि " पदं प्रयुक्तम्। 

   ग)  "करुणापरो गृही तस्मै आश्रयं प्रायच्छत्"- अत्र "तस्मै" इति सर्वनामपदं अतिथये प्रयुक्तम्।

  घ)   "ततोऽसौ तौ अग्रीमे दिने उपस्थातुम् आदिष्टवान्"  अस्मिन् वाक्ये किं क्रियापदम्?

  उत्तरम्-  "ततोऽसौ तौ अग्रीमे दिने उपस्थातुम् आदिष्टवान्" अस्मिन् वाक्ये "आदिष्टवान्" एव क्रियापदमस्ति।

  ङ)  "दुष्कराण्यपि कर्माणि मतिवैभवशालिनः"- अत्र विशेष्यपदं किम्?

  उत्तरम्- "दुष्कराण्यपि कर्माणि मतिवैभवशालिनः"- अत्र विशेष्यपदं "कर्माणि" अस्ति।  

४.  सन्धिं सन्धिविच्छेदं च कुरुत-

   क)  पदातिरेव             -      पदातिः   +     एव

   ख)   निशान्धकारे            -        निशा    +     अन्धकारे

   ग)   अभि  +   आगतम     -           अभ्यागतम्

   घ)  भोजन    +    अन्ते       -       भोजनान्ते

   ङ)   चौरोऽयम्       -         चौरः      +       अयम्

   च)    गृह     +     अभ्यन्तरे        -            गृृहाभ्यन्तरे

  छ)      लीलयैव     -             लीला     +     एव

  ज)  यदुक्तम्  -     यद्      +     उक्तम्

   झ)    प्रबुद्धः   +   अतिथिः      -        प्रबुद्धोऽतिथिः

 ५.  भिन्न प्रत्ययान्तानि पदानि पृथक् कृत्वा निर्दिष्टानां  प्रत्ययानामधः लिखत-

         ल्यप प्रत्यय           क्त प्रत्यय          क्तवतु प्रत्यय          तुमुन प्रत्यय

           परिश्रम्य               प्रस्थितः             उपार्जितवान्            दापयितुम्

           विहाय                   प्रविष्टः               पृष्टवान्                    द्रष्टुम्

            आदाय                 नियुक्तः              नीतवान्                   क्रोशितुम्

           समागत्य              मुदितः                 आदिष्टवान्              निर्णेतुम्

 ६.  अ)   वाक्यानि बहुवचने परिवर्तयत-

          क)  ते बसयानं विहाय पदातिरेव गन्तुं निश्चयं कृतवन्तः।

          ख)   चौराः ग्रामे नियुक्ताः राजपुरुषाः आसन्।

          ग)  केचन चौराः गृृहाभ्यन्तरं प्रविष्टाः।

          घ)  अन्येद्युः ते न्यायालये स्व-स्व-पक्षं स्थापितवन्तः।

    आ)   विभक्तिं प्रयुज्य रिक्तस्थानानि पूरयत-

          क)   सः गृहात् निष्क्रम्य बहिरगच्छत्।

          ख)  गृहस्थः अतिथये आश्रयं प्रायच्छत्।

          ग)   तौ न्यायाधिकारिनं प्रति प्रस्थितौ।

          घ)  अस्मिन् चौर्याभियोगे त्वं वर्षत्रयस्य कारादण्डं लप्स्यसे।

          ङ)  चौरस्य पादध्वनिना प्रबुद्धः अतिथिः।

  ७.  भिन्नप्रकृतिकं पदं चिनुत-

          क)  शङ्कया

          ख)  यदुक्तम्

          ग)   व्याकुलः

          घ)  जनः 

  




                                                     



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