Showing posts with label Class - 10. Show all posts
Showing posts with label Class - 10. Show all posts

Wednesday, June 26, 2024

NCERT SANSKRIT SHEMUSHI CLASS 10 CHAPTER - 10 ANYOKTAYAH

 

१.   एक राजहंस के द्वारा तालाब का जो शोभा होता है। (तालाब के) चारों ओर किनारे पर रहनेवाले हजारों बक के द्वारा वो शोभा नहीं होता है॥

२.  जहाँ आपके द्वारा कमलनाल का समूह खाया गया, जल भलीभाँति पीये गये, कमलों को  सेवन किये गये। रे राजहंस! उस सरोवर का कौनसे कार्य से अनुग्रह प्राप्त होगा, कहो॥

३. हे माली! ग्रीष्मकाल में सूर्य के अत्यधिक तपने पर थोडे पानी से भी आपके करुणा से इस वृक्ष का जो पोषण हुआ है, विश्वभर में वर्षाकालिक जलों के धाराप्रवाह को बरसाते हुए भी बादल के द्वारा यहाँ वो पोषण (उत्पन्न करने के लिए) सम्भव हो पाया क्या॥

४.  पक्षी चारों ओर आकाश-मार्ग को प्राप्त कर लिए, भँवरे आम की मञ्जरियों को आश्रय करते हैं। हे सरोवर! तुम्हारे सङ्कुचित होने पर, हा! संतप्त मछली किन्तु कब तक गति को प्राप्त करें॥

५.   एक ही स्वाभिमानी चातक पक्षी अरण्य में रहता है। प्यासा मर जाता है अथवा जल के लिए इन्द्रदेव को प्रार्थना करता है।

६.   सूर्य की गर्मी से तपे हुए पर्वतसमूह को तृप्त कर उन्नत काष्ठों से रहित वन और अनेक नदी और सैकडों नदों को भरकर हे बादल! जब शून्य होते हो , वो ही तुम्हारा उत्तम(श्रेष्ठ) वैभव है॥

७.   रे रे मित्र चातक! ध्यान से पल भर के लिए सुनो, आकाश में वहुत बादल हैं, सभी ऐसे नहीं हैं। कुछ पृथ्वी को जलवर्षा से भिगो देते हैं, कुछ वृथा (वेकार में) गर्जना करते हैं, (तुम)  जिस जिस को देखते हो उस उसके सामने दारिद्र्य वचन मत कहो।

 अभ्यासः

१.  अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत -

   क)    सरसः शोभा राजहंसेन भवति।
   ख)    चातकः बहूनि सरांसि स्थितं जलं त्यक्त्वा पिपासितः म्रियते वा पुरन्दरं याचते - एतदर्थं मानी कथ्यते।
   ग)     मीनः सरसः सङ्कोचनेन दीनां गतिं प्राप्नोति।
   घ)    नानानदीनदशतानि पूरयित्वा जलदः रिक्तः भवति।
   ङ)    वृष्टिभिः वसुधां अम्भोदाः आर्द्रयन्ति।

२.       अधोलिखितवाक्येषु रेखाङ्कितपदानि आधृत्य  प्रश्ननिर्माणं कुरुत -
   क)   मालाकारः कैः तरोः पुष्टिं करोति?
   ख)   भृङ्गाः कानि समाश्रयन्ते?
   ग)    के अम्बरपथम् आपेदिरे?
   घ)    कः नानानदीनदशतानि पूरयित्वा  रिक्तोऽस्ति?
   ङ)    चातकः कुत्र वसति?
३.      अधोलिखितयोः श्लोकयोः भावार्थं स्वीकृतभाषया लिखत -
     अ)     हे माली! ग्रीष्मकाल में सूर्य के अत्यधिक तपने पर अल्प जल से भी आपके कृपा से इस वृक्ष का जो वृद्धि  हुआ है, विश्वभर में वर्षाकालिक जलधारा को भी वरसाते हुए वादल के द्वारा वो पोषण क्या हो पाया।
    आ)     रे मित्र चातक! ध्यान से पलभर के लिए सुनो, आकाश में वहुत बादल हैं, सभी ऐसे नहीं हैं। कुछ पृथ्वी को जलवर्षा से भिगो देते हैं, कुछ वृथा गर्जना करते हैं, तुम जिस जिस को देखते हो उस उसके सामने दारिद्र्य वचन मत कहो।
४.     अधोलिखितयोः श्लोकयोः अन्वयं लिखत -
     अ)    पतङ्गाः परितः अम्बरपथम् आपेदिरे, भृङ्गाः रसालमुकुलानि समाश्रयन्ते। सरः त्वयि सङ्कोचमञ्चति, हन्त दीनदीनः मीनः नु कतमां गतिं अभ्युपैतु।
    आ)   तपनोष्णतप्तम् पर्वतकुलम् आश्वास्य उद्धामदावविधुराणि काननानि च नानानदीनदशतानि पूरयित्वा च हे जलद! यत् रिक्तः असि तव सा एव उत्तमा श्रीः।
५.  उदाहरणमनुसृत्य सन्धिं / सन्धिविच्छेदं वा कुरुत -
     १)   यथा -   अन्य       +     उक्तयः     =        अन्योक्तयः
         क)      निपीतानि    +    अम्बूनि     =        निपीतान्यम्बूनि
         ख)          कृत        +    उपकारः      =        कृतोपकारः
         ग)         तपन        +   उष्णतप्तम्  =        तपनोष्णतप्तम्
         घ)          तव         +     उत्तमा       =        तवोत्तमा
         ङ)           न           +    एतादृशाः     =        नैतादृशाः
      २)    यथा -   पिपासितः     +      अपि    =        पिपासितोऽपि
          क)          कः               +      अपि    =        कोऽपि
          ख)       रिक्तः             +      असि    =        रिक्तोऽसि
          ग)        मीनः              +      अयम्   =        मीनोऽयम्
          घ)        सर्वे                +       अपि    =        सर्वेऽपि
       ३)    यथा -   सरसः +  भवेत्  =   सरसो भवेत्
           क)          खगः  +  मानी   =   खगो मानी
           ख)          मीनः  +   नु      =    मीनो नु
           ग)     पिपासितः +   वा     =    पिपासितो वा
           घ)         पुरतः   +   मा     =     पुरतो मा
       ४)    यथा -   मुनिः     +    अपि       =         मुनिरपि
           क)          तोयैः     +    अल्पैः       =         तोयैरल्पैः
           ख)         अल्पैः     +    अपि        =         अल्पैरपि
           ग)          तरोः      +     अपि        =         तरोरपि
           घ)       वृष्टिभिः   +  आर्द्रयन्ति   =     वृष्टिभिरार्द्रयन्ति
   ६.  उदाहरणमनुसृत्य अधोलिखितैः विग्रहपदैः समस्तपदानि रचयत -  
                        विग्रहपदानि                         समस्तानि
     यथा-      पीतं च तत् पङ्कजम्       =        पीतपङ्कजम्
     क)           राजा च असौ हंसः         =           राजहंसः
     ख)          भीमः च असौ भानुः       =          भीमभानुः
     ग)          अम्बरम् एव पन्थाः       =         अम्बरपन्थाः
     घ)          उत्तमा च इयम् श्रीः       =           उत्तमा श्रीः    
     ङ)     सावधानं च तत् मनः, तेन    =         सावधानमनसा
            
 ७. उदाहरणमनुसृत्य निम्नलिखितैः धातुभिः सह यथानिर्दिष्टान् प्रत्ययान् संयुज्य शब्दरचनां कुरुत -
               धातुः         क्त्वा           क्तवतु            तव्यत्           अनीयर्  
    क)       पठ्          पठित्वा        पठितवान्        पठितव्यः       पठनीयः
    ख)       गम्          गत्वा           गतवान्          गन्तव्यः        गमनीयः
    ग)       लिख्       लिखित्वा     लिखितवान्      लिखितव्यः     लेखनीयः
    घ)         कृ          कृत्वा           कृतवान्          कर्त्तव्यः         करणीयः
    ङ)       ग्रह्          गृहीत्वा         गृहीतवान्       ग्रहीतव्यः        ग्रहणीयः
   च)        नी           नीत्वा           नीतवान्          नेतव्यः          नयनीय‌ः


                                                  समाप्तम्

  

Tuesday, June 18, 2024

NCERT SANSKRIT SHEMUSHI CLASS-10 CHAPTER- 9 BHUKAMPAVIBHEESIKA

 


          २००१ ख्रीष्टाब्द में गणतंत्र दिवस पर्व पर जब समग्र भारतराष्ट्र नृत्य गीत वाद्ययंत्रों के उल्लास में मग्न था तब अचानक ही गुर्जर राज्य चारों ओर से बेचैन, अस्तव्यस्त, विकलक्रन्दन और विपत्ति ग्रस्त हो गया। भूकम्प का भयानक घटणा (प्रलय) समग्र गुर्जरक्षेत्र को विशेषरूप से कच्छजनपद को विनाश के बाद बची हुई वस्तुओं में परिवर्तन किया। भूकम्प का केन्द्रस्वरूप भुजनगर तो मिट्टी के खिलौने के समान टुकडेे होगए। बहुमंजिले मकान क्षण में ही धराशायी होगए(जमीन में मिलगए)। बिजली के खम्बे उखड गये। घरों के सीढीओं के रास्ते बिखर गये। भूमि दो खण्डो में विभाजित हो गई। भूमि के गर्तों से ऊपर निकलती हुई जिनको हटाना कठिन है - ऐसी जलधाराओं से विशाल बाढ का दृश्य उपस्थित हो गया। हजारों संख्या में प्राणियाँ क्षण में ही मृत्यु को प्राप्त हुए। विनष्ट मकानों में  हजारों पीडिता सहायता के लिए करुण क्रन्दन करते हैं। हे विधाता! भूख से दुर्बल कण्ठवाले मृतप्राय कुछ शिशु भगवत् कृपा से ही दो तीन दिन जीवन धारण किया था।
           यह था कच्छ भूकम्प का अतीव भयावह दृश्य। २००५ ख्रीष्टाब्द में भी कश्मीर प्रान्त में और पाकिस्तान देश में धरती का विशाल कम्पन हुआ।  जिस कारण से लाखों लोग असमय मृत्यु को प्राप्त हुए। पृथ्वी किस कारण से प्रकम्पित होता है- इस विषय में वैज्ञानिकों ने कहते हैं कि धरती के गर्भ के भीतर उपस्थित विशाल प्रस्तर जब संघर्षण(घिसने) के कारण टूटते हैँ तब अत्यधिक मात्रा में प्रस्तरों का अपने स्थान से हटना, और हटने से कम्पन होता है॥ वह भयावह कम्पन ही पृथ्वी के उपरि भाग पर भी आकर महाकम्पन उत्पन्न करती है  जिसे महाविनाश का दृश्य समुपस्थित होता है।
          ज्वालामुखपर्वतों का विस्फोट से भी भूकम्प होता है -ऐसे भूकम्पविशेषज्ञ कहते हैं। पृथ्वी के गर्भ में स्थित अग्नि जब भूमि को खोदने से प्राप्त वस्तु, मिट्टी,प्रस्तर आदि संग्रह को उबालती है तब वो सब ही लावारस को प्राप्त हो कर धरती अथवा पर्वत को फाडकर बाहर निकलता है। तब आकाश धुएँ और राख से ढक जाता है।सेल्सियश-ताप-मात्रा की एकसौ आठ(१०८) अङ्क को प्राप्त यह लावारस जब नदीवेग (नदी के धारा जैसी) से प्रवाहित होता है तब समीप के गाँव अथवा सहर उसके पेट में क्षण में ही समा जाती हैं। 
     और वेचारे (विवश) प्राणी मरते हैं। ज्वाला को प्रकट करते हुए ये पर्वत भी भीषण भूकम्प उत्पन्न करती हैं।
     यद्यपि भूकम्प भाग्य का प्रकोप है, उसको शान्त करने का कोई भी स्थिर उपाय नहीं दिखरहा है। आज भी प्रकृति के सामने विज्ञान से गर्व करने वाला मनुष्य वामन सदृश ही है तथापि भूकम्परहस्य को जानने वाले कहते हैं की बहु मंजिले मकानों का निर्माण नहीं करना चाहीए। नदी किनारे बान्ध बनाकर बृहत् मात्रा में नदी जल को भी एक जगह पर इकट्ठा नहीं करना चाहीए। अन्यथा असन्तुलन के कारण भूकम्प सम्भव है। वस्तुतः(फलस्वरूप) पृथ्वीजलअग्नीवायुआकाश इन पञ्चतत्वों का शान्त होना ही भूभाग का  योगक्षेम के  लिए उचित है॥ उन अशान्त पञ्चतत्त्व निश्चित रूप से महाविनाश को उपस्थापित करते हैं। 
अभ्यासः

१.  अधोलिखितानां प्रश्नानां उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत  -
क)    समस्तराष्ट्रं  नृत्य-गीतवादित्राणाम्  उल्लासे मग्नम् आसीत्।
ख) भूकम्पस्य केन्द्रबिन्दुः कच्छजनपदः आसीत्।
ग) पृथिव्याः स्खलनात् कम्पनं जायते।
घ) समग्रं विश्वम् विपन्नैः आतंकितः दृश्यते।
ङ) ज्वालामुखपर्वतानां विस्फोटैरपि भूकम्पो जायते।
च) बहुभूमिकानि भवनानि धराशायीनि जायन्ते।
२.  
क) भूकम्पविभीषिका विशेषेण कच्छजनपदं केषु परिवर्तितवती?
ख) के कथयन्ति यत् पृथिव्याः अन्तर्गर्भे, पाषाणशिलानां संघर्षणेन कम्पनं जायते?
ग)  विवशाः प्राणिनः कुत्र पिपीलिका इव निहन्यन्ते?
घ) किदृशी भयावहघटना गढ़वाल  क्षेत्रे घटिता?
ङ) तदिदानीं किं विचारणीयम् तिष्ठति?
४.  
क) समग्रं भारतम् उल्लासे मग्नः अस्ति। 
ख) भूकम्पविभीषिका कच्छजनपदं विनष्टं कृतवती।
ग) क्षणेनैव प्राणिनः गृहविहीनाः अभवन्।
घ) शान्तानि पञ्चतत्त्वानि भूतलस्य योगक्षेमाभ्यां भवन्ति।
ङ)  मानवाः पृच्छन्ति यत् बहुभूमिकभवननिर्माणं करणीयम्    न वा?
च) नदीवेगेन ग्रामाः तदुदरे समाविशेत्।
५.
(अ )   परसवर्णसन्धिनियमानुसारम्  -
  क)  किञ्च  -   किम्   +    च
   ख)   नगरन्तु   -   नगरम्    +   तु
   ग)   विपन्नञ्च   -    विपन्नम्   +   च
  घ)    किन्नु    -    किम्   +   नु
   ङ)   भुजनगरन्तु    -   भुजनगरम्   +   तु
   च)    सञ्चयः    -   सम्    +    चयः
(आ)  विसर्गसन्धिनियमानुसारम्   -
    क)   शिशवस्तु    -   शिशवः   +   तु
   ख)    विस्फोटैरपि     -     विस्फोटैः    +   अपि
   ग)   सहस्रशोऽन्ये   -     सहस्रशः     +   अन्ये
   घ)    विचित्रोऽयम्   -    विचित्रः   +   अयम्
   ङ)   भूकम्पो जायते   -   भूकम्पः   +   जायते
   च)    वामनकल्प एव   -   वामनकल्पः   +     एव
६.   (अ)    विलोमपदानां  संयोगं कुरुत   -
                                      क                                     ख
                             सम्पन्नम्                            विपन्नम्
                           ध्वस्तभवनेषु                         नवनिर्मितभवनेषु
                        निस्सरन्तीभिः                               प्रविशन्तीभिः
                                निर्माय                            विनाश्य
                                क्षणेनैव                          सुचिरेणैव
(आ)   समानार्थकपदानां संयोगं कुरुत  - 
                                क                                    ख
                            पर्याकुलम्                       व्याकुलम्
                       विशीर्णाः                                    नष्टाः
                                    उद्गिरन्तः                   प्रकटयन्तः
                                     विदार्य                                      संत्रोट्य
                                 प्रकुपिताम्                       क्रोधयुक्ताम्
     


 ७.  (अ)    प्रकृति-प्रत्यययोः विभागं कुरुत  -
        परिवर्तितवती   -    परि    +   वृत्    +क्तवतु   +   ङीप्  (स्त्री)
       धृतवान्            -      धृ   +    क्तवतु
                 हसन्   -   हस्  +   शतृन्
       विशीर्णा   -    वि    +   शृ  +     क्त    +टाप्
    प्रचलन्ती    -      प्र   +   चल्    +    शतृ    +   ङीप्  (स्त्री)
    हतः     -    हन्            +          क्त
    (आ)   समस्तपदानि लिखत  -
     महत् च तत्  कम्पनं  -   महत्कम्पनं
   दारुणा च सा विभीषिका   -   दारुण-विभीषिका
     ध्वस्तेषु च तेषु भवनेषु   -   ध्वस्तभवनेषु
   प्राक्तने च तस्मिन् युगे    -     प्राक्तनयुगे
    महत् च तत् राष्ट्रं  तस्मिन्   -   महद्राष्ट्रे









   

Monday, January 2, 2023

NCERT SANSKRIT SHEMUSHI CLASS-10 CHAPTER - 7 VICHITRAH SAAKSHEE

                    

 

                     किसी निर्धन जन ने बहुत परिश्रम कर अत्यधिक धन कमाया । उस धन से वह अपने बेटे को एक महाविद्यालय में अध्ययन के लिए प्रवेश दिलाने में सफल हुआ। वह पुत्र वहाँ छात्रावास में ही रहते हुए अध्ययन में तल्लीन हो गया। एक बार वह पिता पुत्र की बीमार होने की खबर सुन कर विचलित हो गया और पुत्र को देखने के लिए निकलगया। अत्यधिक धनाभाव के कारण वह बस यान को छोड़ कर पैदल ही चला गया।

    पैदल चलते हुए संध्या समय आगमन पर भी यह जन गन्तव्य स्थान से दूर था। रात्रि में अन्धकार फैलने पर एकान्त प्रदेश में पदयात्रा शुभ नहीं होता। यह विचार कर वह पास में स्थित गाँव में रात में निवास करने के लिए कीसि गृहस्थ के पास रह गया। करुणापूर्वक गृहस्थ ने उसे आश्रय दिया। 

      भाग्य की लीला अद्भूत है। उस रात को ही उनके घर एक चोर प्रवेश किया।।उसने घर में रखी हुई एक पेटीका को लेकर भाग गया। चोर के पैरों के ध्वनि से जागा हुआ अतिथि चोर की शङ्का से उसके पिछे भागा और पकड़लिया, लेकिन विचित्र घटना घटा। चोर ही ज़ोर ज़ोर से चिल्लाना शुरु कर दिया "यह चोर यह चोर"। उसके ऊँची आवाज़ से जगे हुए गाँव के लोग अपने घरों से निकलकर वहाँ  पर आते हुए अतिथि को ही चोर समझकर भला-बुरा कहने लगे। लेकिन गाँव का आरक्षी ही चोर था। उसी समय ही रक्षापुरुष ने उन अतिथि को "यह चोर" ऐसा स्थापितकर (ठहराकर) कारागार में डालदिया।

अगले दिन वह आरक्षी चोरी के आरोप में उसको न्यायालय ले गया। न्यायाधीश वंकिमचन्द्र दोनों से अलग अलग विवरण सुने। सभी विषय को  जानकर न्यायाधीश मेहमान को निर्दोष और सैनिक को दोषी मानाा। किन्तु सबूत न होने के कारण निर्णय लेने में असमर्थ रहे। इसलिए उन दोनों को अगले दिन उपस्थित होने के लिऐ आदेश दिए। और किसी दिन वो दोनों न्यायालय में पुनः अपना अपना पक्ष को रखा। तभी वहाँ का कोई कर्मचारी आ कर प्रार्थना की कि यहाँ से दो कोस के मध्य में किसी के द्वारा किसी व्यक्ति का हत्या हो गया है। उसका मृतशरीर राजमार्ग के पास है। क्या करना होगा आज्ञा दीजिए। न्यायाधीश आरक्षी और अतिथि को उस शव को  न्यायालय में ले कर आने के लिए आज्ञा दी।

    आदेश प्राप्त कर वे दोनों चल पड़े। वहाँ पहुँच कर लकड़ी के तख्ते पर रखे हुए और कपड़े से ढके हुए  शरीर को कन्धे पर धारण करते हुए  न्यायालय कि ओर चल पड़े। सैनिक हृष्ट-पुष्ट था और अभियुक्त बहुत कमज़ोर।भारवाही(बोझ वाले) शव को कन्धे पर वहन करना उसके लिए मुस्किल था। वह बोझ की पीड़ा से रोने लगा। उसका रोना सुन कर प्रसन्न चौकीदार उसको बोला- "हे दुष्ट! उस दिन तुमने मुझे चुराए हुए संदूक को ले जाने के लिए मना किया। अब अपने कर्म का फल भुगतो। इस चोरी के अभियोग (जुर्म)में तुम तीन साल का सज्ज़ा प्राप्त करोगे" एसा कहकर वह ज़ोर से हँसने लगा। जैसे-तैसे उन दोनों ने शव को लाकर एक चौराहे पर रख दिया। 

  न्यायाधीश के द्वारा वे दोनों पुनः घटना के वारे में बोलने के लिए आदिष्ट हुए।सैनिक के द्वारा अपना पक्ष प्रस्तुत करते समय आश्चर्यजनक घटना घटी। उस शव ने ओढ़ा हुआ वस्त्र हटा कर न्यायाधीश को अभिवादन कर निवेदन किया- मान्यवर! इस आरक्षी के द्वारा मार्ग में जो कुछ कहा गया मैं उसका वर्णन करता हूँ  "तुमने मुझे चोरी की सन्दूक ले जाने में मना किया, इसलिए अपने कर्म का फल भोगो। इस चोरी के अभियोग में तुम्हे तीन साल की सज्ज़ा मिलेगी"।

न्यायाधीश ने चौकीदार को कारादण्ड का आदेेेश दे कर उस व्यक्ति को सम्मान के साथ छोड़ दिया।

  इसलिए कहागया है- बुद्धि और वैभव से युक्त व्यक्ति नीति तथा युक्ति का सहारा लेकर कठीन  कार्यों को भी खेल-खेल में सम्पन्न कर देते हैं।

                                                                 अभ्यासः  

१.    अधोलिखितानां प्रश्नानाम उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत-

     क) निर्धनः जनः कथं वित्तमुपार्जितवान्?

 उत्तरम-   निर्धनः जनः भूरि परिश्रम्य धनं उपार्जितवान्।

   ख)  जनः किमर्थं पदातिः गच्छति?

  उत्तरम्-  जनः परमर्थकार्श्येन पदातिः गच्छति।

  ग)  प्रसृते निशान्धकारे स  किम अचिन्तयत्?

   उत्तरम्-  प्रसृते निशान्धकारे स अचिन्तयत यत विजने प्रदेशे पदयात्रा न शुभावहा इति।

घ)  वस्तुतः चौरः कः आसीत्?

   उत्तरम्-   वस्तुतः आरक्षी  चौरः आसीत्।

  ङ)  जनस्य क्रन्दनं निशम्य आरक्षी किमुक्तवान्?

    उत्तरम्-  जनस्य क्रन्दनं निशम्य आरक्षी उक्तवान्- "निजकृत्यस्य फलं भुङ्क्ष्व। यतः चोरिताया मञ्जूषाया ग्रहणाद् त्वया अहं वारितः। अस्मिन् चौर्याभियोगे त्वं वर्षत्रयस्य कारादण्डं लप्स्यसे"।

 च)  मतिवैभवशालिनः दुष्कराणि कार्याणि कथं साधयन्ति?

  उत्तरम्-  मतिवैभवशालिनः दुष्कराणि कार्याणि नीतिं युक्तिं समालम्ब्य लीलयैव साधयन्ति।

२.  रेखाङ्कितपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-

        क) पुुत्रं द्रष्टुं सः प्रस्थितः।

     प्रश्नम्-   कम् द्रष्टुं सः प्रस्थितः?        

     ख)  करुणापरो गृही  तस्मै आश्रयं प्रायच्छत्।

  प्रश्नम्-  करुणापरो गृही कस्मै आश्रयं प्रायच्छत्?

 ग)  चौरस्य पादध्वनिना अतिथिः प्रबुद्धः।

  प्रश्नम्-  कस्य पादध्वनिना अतिथिः प्रबुद्धः?

  घ)  न्यायाधीशः बंकिमचन्द्रः आसीत्।

  प्रश्नम्-  न्यायाधीशः कः आसीत्?

ङ)  स भारवेदनया क्रन्दति स्म।

  प्रश्नम्-  स कया क्रन्दति स्म?

 च)  उभौ शवं चत्वरे स्थापितवन्तौ।

  प्रश्नम्-  उभौ शवं कुत्र स्थापितवन्तौ?

 ३.  यथानिर्देशमुत्तरत--

    क)  "आदेशं प्राप्य उभौ अचलताम्" अत्र किं कर्तृपदम्?

  उत्तरम्- "आदेशं प्राप्य उभौ अचलताम्" अत्र  "उभौ " कर्तृपदमस्ति।

    ख)  "एतेन आरक्षिणा अध्वनि यदुक्तं तत् वर्णयामि"- अत्र "मार्गे" इत्यर्थे किं पदं प्रयुक्तम्?

    उत्तरम्-  "एतेन आरक्षिणा अध्वनि यदुक्तं तत् वर्णयामि"- अत्र  "मार्गे" इत्यर्थे "अध्वनि " पदं प्रयुक्तम्। 

   ग)  "करुणापरो गृही तस्मै आश्रयं प्रायच्छत्"- अत्र "तस्मै" इति सर्वनामपदं अतिथये प्रयुक्तम्।

  घ)   "ततोऽसौ तौ अग्रीमे दिने उपस्थातुम् आदिष्टवान्"  अस्मिन् वाक्ये किं क्रियापदम्?

  उत्तरम्-  "ततोऽसौ तौ अग्रीमे दिने उपस्थातुम् आदिष्टवान्" अस्मिन् वाक्ये "आदिष्टवान्" एव क्रियापदमस्ति।

  ङ)  "दुष्कराण्यपि कर्माणि मतिवैभवशालिनः"- अत्र विशेष्यपदं किम्?

  उत्तरम्- "दुष्कराण्यपि कर्माणि मतिवैभवशालिनः"- अत्र विशेष्यपदं "कर्माणि" अस्ति।  

४.  सन्धिं सन्धिविच्छेदं च कुरुत-

   क)  पदातिरेव             -      पदातिः   +     एव

   ख)   निशान्धकारे            -        निशा    +     अन्धकारे

   ग)   अभि  +   आगतम     -           अभ्यागतम्

   घ)  भोजन    +    अन्ते       -       भोजनान्ते

   ङ)   चौरोऽयम्       -         चौरः      +       अयम्

   च)    गृह     +     अभ्यन्तरे        -            गृृहाभ्यन्तरे

  छ)      लीलयैव     -             लीला     +     एव

  ज)  यदुक्तम्  -     यद्      +     उक्तम्

   झ)    प्रबुद्धः   +   अतिथिः      -        प्रबुद्धोऽतिथिः

 ५.  भिन्न प्रत्ययान्तानि पदानि पृथक् कृत्वा निर्दिष्टानां  प्रत्ययानामधः लिखत-

         ल्यप प्रत्यय           क्त प्रत्यय          क्तवतु प्रत्यय          तुमुन प्रत्यय

           परिश्रम्य               प्रस्थितः             उपार्जितवान्            दापयितुम्

           विहाय                   प्रविष्टः               पृष्टवान्                    द्रष्टुम्

            आदाय                 नियुक्तः              नीतवान्                   क्रोशितुम्

           समागत्य              मुदितः                 आदिष्टवान्              निर्णेतुम्

 ६.  अ)   वाक्यानि बहुवचने परिवर्तयत-

          क)  ते बसयानं विहाय पदातिरेव गन्तुं निश्चयं कृतवन्तः।

          ख)   चौराः ग्रामे नियुक्ताः राजपुरुषाः आसन्।

          ग)  केचन चौराः गृृहाभ्यन्तरं प्रविष्टाः।

          घ)  अन्येद्युः ते न्यायालये स्व-स्व-पक्षं स्थापितवन्तः।

    आ)   विभक्तिं प्रयुज्य रिक्तस्थानानि पूरयत-

          क)   सः गृहात् निष्क्रम्य बहिरगच्छत्।

          ख)  गृहस्थः अतिथये आश्रयं प्रायच्छत्।

          ग)   तौ न्यायाधिकारिनं प्रति प्रस्थितौ।

          घ)  अस्मिन् चौर्याभियोगे त्वं वर्षत्रयस्य कारादण्डं लप्स्यसे।

          ङ)  चौरस्य पादध्वनिना प्रबुद्धः अतिथिः।

  ७.  भिन्नप्रकृतिकं पदं चिनुत-

          क)  शङ्कया

          ख)  यदुक्तम्

          ग)   व्याकुलः

          घ)  जनः 

  




                                                     



Saturday, June 12, 2021

NCERT SANSKRIT - SHEMUSHI CLASS-10 CHAPTER-2 BUDDHIRBALAVATI SADA

 हिन्दी अनुवाद-

      देउलाख्यो नाम के एक गांव है। वहाँ राजसिंह नाम के राजपुत्र रहता था। एकदिन कोई जरुरी काम से उसका पत्नी बुद्धिमती दोनों बेटों के साथ मिलकर पिता के घर की ओर चली गई। रस्ते में गहरा जंगल में वो एक बाघ देखा। वो बाघ को आते हुए देखकर ढिठाई से दोनों बेटों को थप्पड़ मारकर कहा- "बाघ को खाने के लिए क्यों एक दुसरे से झगड़ा कर रहे हो? यह एक है, इसलिए दोनों बाँटकर खाना। बाद में ओर कोई दुसरा बाघ कहीं से ढूढेंगे।"

      वह सब बातें सुन कर यह कोई बाघ को मारने वाली होगी ,ये सोच कर भयभीतचित्तयुक्त बाघ भाग गया।
वो रूपवती स्त्री अपनी बुद्धि से बाघ के भय से मुक्त हो गई। अन्य बुद्धिमान मनुष्य भी संसार में महान भय से मुक्त हो जाता है॥
भय से व्याकुल बाघ को देखकर कोई दुष्ट सियार हँसते हुए कहने लगा- "बाघ, आप भय से क्यों भाग रहे हैं?"
व्याघ्रः - जाओ जाओ सियार! तुम भी किसी गुप्त स्थान में चले जाऔ। क्योंकि बाघ हत्यारन एसा शास्त्र में जो सुना जाता है, वह मुझे मारने के लिए तैयार है। परन्तु मैं उसके आगे से हथेली पर प्राण रख कर जल्दी भाग आया हूँ।

श्रृगालः - बाघ! तुमने बड़ी हैरानी की बात बताया कि तुम मनुष्य से भी डरते हो?
व्याघ्रः - आँखों के सामने ही एक एक करके मुझे खाने के लिए झगड़ा करते हुए अपने दोनों पुत्रों को वो चपेट से मारती हुई मैंने देखा।
जम्बुकः - स्वामी! जहाँ वह धूर्त स्त्री बैठी हुई है वहाँ चलो। बाघ! तुम्हारा वहाँ दोबारा पहुँचने पर यदि वह सामने भी देख लेती है, तो तुमसे मैं मारा जाऊँगा।
व्याघ्रः - सियार! यदि तुम मुझे छोड़ कर जाते हो तब वह समय ही समाप्त हो जाएगा।                              जम्बुकः - यदि इस प्रकार है तो तुम मुझे अपने गले में बाँध कर जल्दी ले चलो। वह बाघ वैसा करके जंगल की ओर चल पड़ा। सियार के साथ दोबारा दूर से आते हुए बाघ को देख कर बुद्धिमती सोचने लगी - गीदड़ के द्वारा उत्साहित किए गए बाघ से मैं कैसे बचुँ?                                                                                                       परंतु हाजिरजवाब वह स्त्री गीदड़ को अंगुली से आक्षेप करती हुई तथा डाँटती हुई कहने लगी -                                                हे धूर्त! पहले तुमने मुझे विश्वास दिलाकर तीन बाघ देने के लिए कहा था । अभी बताओ, आज एक ही बाघ लेकर क्यों आए हो ॥

एसा कहकर भयोत्पादिका बाघ हत्यारन जल्दी भाग गई ।
गले में गीदड़ बंधा हुआ बाघ भी अचानक भाग गया ॥
इस प्रकार बुद्धिमती स्त्री बाघ से उत्पन्न भय से दोबारा मुक्त हो गई । इसलिए ठीक ही कहा गया है-
हे देवी! सर्वदा सभी कार्यों में बुद्धि बलवान होती है॥


अभ्यासः

१. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत -
क) बुद्धिमती केन उपेता पितुर्गृहं प्रति चलिता?
उत्तरम्- बुद्धिमती पुत्रद्वयेन उपेता पितुर्गृहं प्रति चलिता ।
ख) व्याघ्रः किं विचार्य पलायितः ?
उत्तरम् - इयं काचित् व्याघ्रमारी इति विचार्य व्याघ्रः पलायितः ।

ग) लोके महतो भयात् कः मुच्यते ?
उत्तरम्- लोके अन्यः बुद्धिमान् मनुष्यः महतो भयात् मुच्यते ।
घ) जम्बुकः किं वदन् व्याघ्रस्य उपहासं करोति ?
उत्तरम्- मानुषादपि विभेषि इति वदन् जम्बुकः व्याघ्रस्य उपहासं करोति ।
ङ) बुद्धिमती श्रृगालं किम् उक्तवती?
उत्तरम्- बुद्धिमती श्रृगालं इदं उक्तवती यत् " त्वं व्याघ्रत्रयम् आनेतुं " प्रतिज्ञाय एकमेव आनीतवान् ।

२. स्थूलपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत -
क) तत्र राजसिंहो नाम रजपुत्रः वसति स्म ।
प्रश्नम्- तत्र को नाम राजपुत्रः वसति स्म?
ख) बुद्धिमती चपेटया पुत्रौ प्रहृतवती ।

प्रश्नम्- बुद्धिमती कया पुत्रौ प्रहृतवती?
ग) व्याघ्रं दृष्ट्वा धूर्तः श्रृगालः अवदत् ।
प्रश्नम्- कं दृष्ट्वा धूर्तः श्रृगालः अवदत्?
घ) त्वं मानुषात् विभेषि ।
प्रश्नम्- त्वं कस्मात् विभेषि?
ङ) पुरा त्वया मह्यं व्याघ्रत्रयं दत्तम्।
प्रश्नम्- पुरा त्वया कस्मै व्याघ्रत्रयं दत्तम्?

३. अधोलिखितानि वाक्यानि घटनाक्रमानुसारेण योजयत-
क) व्याघ्रः व्याघ्रमारी इयमिति मत्वा पलायितः।
ख) प्रत्युत्पन्नमतिः सा श्रृगालं आक्षिपन्ती उवाच।
ग) जम्बुककृतोत्साहः व्याघ्रः पुनः काननम् आगच्छत्।
घ) मार्गे सा एकं व्याघ्रम् अपश्यत्।
ङ) व्याघ्रं दृष्ट्वा सा पुत्रौ ताड़यन्ती उवाच- अधुना एकमेव व्याघ्रं विभज्य भुज्यताम्।
च) बुद्धिमती पुत्रद्वयेन उपेता पितुर्गृहं प्रति चलिता।
छ) "त्वं व्याघ्रत्रयं आनेतुं" प्रतिज्ञाय एकमेव आनीतवान्।
ज) गलबद्धश्रृगालकः व्याघ्रः पुनः पलायितः।
घटनाक्रमाः -
च) बुद्धिमती पुत्रद्वयेन उपेता पितुर्गृहं प्रति चलिता।
घ) मार्गे सा एकं व्याघ्रम् अपश्यत्।
ङ) व्याघ्रं दृष्ट्वा सा पुत्रौ ताड़यन्ती उवाच- अधुना एकमेव व्याघ्रं विभज्य भुज्यताम्।
क) व्याघ्रः व्याघ्रमारी इयमिति मत्वा पलायितः।
ग) जम्बुककृतोत्साहः व्याघ्रः पुनः काननम् आगच्छत्।
ख) प्रत्युत्पन्नमतिः सा श्रृगालं आक्षिपन्ती उवाच।
छ) "त्वं व्याघ्रत्रयम् आनेतुं" प्रतिज्ञाय एकमेव आनीतवान्।
ज) गलबद्धश्रृगालकः व्याघ्रः पुनः पलायितः।
४. सन्धिं सन्धिविच्छेदं वा कुरुत-
क) पितुर्गृहम् - पितुः + गृहम्
ख) एकैकः - एकः + एकः
ग) अन्योऽपि - अन्यः + अपि
घ) इत्युक्त्वा - इति + उक्त्वा
ङ) यत्रास्ते - यत्र + आस्ते
५. अधोलिखितानां पदानाम् अर्थः कोष्ठकात् चित्वा लिखत-
क) ददर्श - दृष्टवान्
ख) जगाद - अकथयत्
ग) ययौ - गतवान्
घ) अत्तुम् - खादितुम्
ङ) मुच्यते - मुक्तो भवति
च) ईक्षते - पश्यति
६. ( अ) पाठात् चित्वा पर्यायपदं लिखत-
क) वनम् - काननम्
ख) श्रृगालः - जम्बुकः
ग) शीघ्रम् - सत्वरं तूर्णम् वा
घ) पत्नी - भार्या
ङ) गच्छसि - यासि
( आ) पाठात् चित्वा विपरीतार्थकं पदं लिखत-
क) प्रथमः - द्वितीयः
ख) उक्त्वा - श्रृत्वा
ग) अधुना - पश्चात्
घ) अवेला - वेला
ङ) बुद्धिहीना - बुद्धिमती
७. (अ) प्रकृतिप्रत्ययविभागं कुरुत-
क) चलितः - चल् + क्त
ख) नष्टः - नष् + क्त
ग) आवेदितः - आ + विद् + क्त
घ) दृष्टः - दृश् + क्त
ङ) गतः - गम् + क्त
च) हतः - हन् + क्त
छ) पठितः - पठ् + क्त
ज) लब्धः - लभ् + क्त
(आ) उदाहरणमनुसृत्य कर्तरि प्रथमा विभक्तेः क्रियायाञ्च क्तवतु प्रत्ययस्य प्रयोगं कृत्वा वाच्यपरिवर्तनं कुरुत-
यथा- तया अहं हन्तुम् आरब्धः - सा मां हन्तुम् आरब्धवती।
क) मया पुस्तकं पठितम्। - अहं पुस्तकं पठितवान्।
ख) रामेण भोजनं कृतम्। - रामः भोजनं कृतवान्।
ग) सीतया लेखः लिखितः। - सीता लेखं लिखितवती।
घ) अश्वेन तृणं भुक्तम्। - अश्वः तृणं भुक्तवान्।
ङ) त्वया चित्रं दृष्टम्। - त्वं चित्रं दृष्टवान्।

NCERT SANSKRIT SHEMUSHI CLASS-10 CHAPTER - 3 SHISHULALANAM



( श्रीराम सिंहासन पर विराजमान हैं। फिर विदूषक द्वारा उपदेश दिए जाते हुए तपस्वी लव और कुश का प्रवेश। )

विदूषकः - आर्य इधर!
कुशलवौ - ( राम के पास जाकर और प्रणाम करते हुए ) क्या महाराज कुशलपूर्वक हैं?
रामः - आपके दर्शन से कुशल के समान हो गया हूँ। हम यहाँ क्या आप दोनों के कुशल प्रश्न के पात्र ही हैं, फिर क्या अतिथिजनों के लिए आवश्यक गले लगाने का पात्र हम नहीं हैं।( आलिङ्गन करके) अरे! हृदय को छूनेवाला स्पर्ष है।                                                                                                                                                                   उभौ - निश्चित रूप से यह राजा का आसन है। यहाँ बैठना उचित नहीं है।                                                         रामः - रुकावट सहित चरित्र लोप के लिए नहीं है। इसलिए गोदि मात्र व्यवधानयुक्त सिंहासन पर बैठिये।

                        ( गोदि में बिठाकर )
उभौ - ( इच्छा न होने का नाटक करते हुए) हे राजन्! इतनी उदारता मत दिखाइए अथवा अधिक कुशलता नहीं करें।                                                                                                                                                                रामः - अत्यधिक शालीनता(अथवा भद्रता) बंद करो।                                                                                श्लोकः   - 

         अत्यधिक गुणी लोगों को भी छोटी उम्र के कारण बालक को लाड़ प्यार करना चाहिए। चन्द्रमा बालभाव के कारण ही भगवान शङ्कर के मस्तक का आभूूषण बनकर केतकी पुष्पों से निर्मित चूड़ा के रूप में विराजमान होते हैं।

रामः - यह आप दोनों के सौन्दर्य से उत्पन्न जिज्ञासा के कारण पुछ रहा हूँ- क्षत्रीय वंशीय पितामह सूर्य अथव चाँद में से आपके वंश का कर्त्ता कौन है?                                                                                                             लवः - भगवान सूर्य।                                                                                                                                 रामः - कैसे एक कुल में पैदा होने वाले हो गए?

विदूषकः - क्या दोनों का एक ही उत्तर है?
लवः - हम दोनों सगे भाई हैं।
रामः - शरीर की बनावट एक जैसे है। और उम्र में भी कोई अन्तर नहीं है।
लवः - हम दोनों जुड़वाँ हैं।
रामः - अभी ठीक है। क्या नाम है?
लवः - आर्य का वन्दना में लव एसा अपने आप को सुनाता हूँ। ( कुश को निर्देश कर) आर्य भी गुरु के चरण सेवा में…………………
कुशः - मैं भी आपने आप को कुश ऐसा कहता हूँ।

रामः - अरे! शिष्टाचार बहुत ही सुन्दर है। आपके गुरु के क्या नाम है?
लवः - अवश्य ही भगवान वाल्मीकि।
रामः - किस सम्बन्ध से?
लवः - उपनयन की संस्कारदीक्षा के द्वारा।
रामः - मैं आपके पिता का नाम जानना चाहता हूँ।
लवः - मैं इनका नाम नहीं जानता हूँ। इस तपोवन में उनका नाम कोई नहीं लेता है।
रामः - इतनी उदारता।                                                                                                                               कुशः - मैं उनका नाम जानता हूँ।                                                                                                               रामः - बताओ।                                                                                                                                           कुशः - दया रहित नाम….                                                                                                                               रामः - मित्र, निश्चित रूप से नाम अपूर्व है।

विदूषकः - (सोचकर) मैं पूछ रहा हूँ, दया रहित ऐसा कौन कहता है?
कुशः - माता।
विदूषकः - क्या गुस्से में वह ऐसा कहती है, अथवा स्वाभाविक रूप से?

कुशः - यदि हमारे लड़कपन के कारण किसी भी तरह के रूखा आचरण देखती है, तब इस प्रकार फटकारती है- क्रूर के पुत्रों, चंचलता मत करो।
विदूषकः - यदि इनके पिता का नाम क्रूर है और इनकी माता उनसे अपमानित है तथा घर से निकाल दिया गया हैै, इसलिए इसी वचन से पुत्रों को धमकाती है।

रामः - (मन में) एसे मुझ पर धिक्कार है। वह तपस्वी मेरे किए हुए अपराध के कारण अपनी संतान को इस प्रकार क्रोधपूर्ण अक्षरों से धमकाती है।
( आँसुओं सहित देखते हैं )
रामः - यह बहुत लम्बी और क्रूर प्रवास है। ( विदूषक को देखकर पास जा कर )
जिज्ञासा से युक्त मैं इनके माता को नाम से जानना चाहता हूँ। स्त्री के संबंध में टीका-टीप्पणी करना उचित नहीं,विशेषतः तपोवन में। तो यहाँ कौनसा उपाय है?
विदूषकः - ( पास जाकर ) मैं फिर से पुछता हूँ। क्या नाम है तुम्हारे माता का?
लवः - उनके दो नाम हैं।
विदूषकः - कैसे?
लवः - तपोवन निवासी देवी नाम से पुकारते हैं, भगवान वाल्मीकि वधू नाम से पुकारते हैं।
रामः - इधर आइए मित्र! थोड़ी देर के लिए।
विदूषकः - ( पास जाकर ) आप आदेश दीजिए।
रामः - इन दोनों कुमारों का और हमारे परिवार का वृत्तान्त एक जैसा हैै क्या ?
( परदे के पीछे )
इतना समय हो गया है रामायण गान का कार्य क्यों नहीं हुआ ?

उभौ - राजन्! गुरुजी का दूत हमको शीघ्रता कर रहा है।
रामः - मुझे भी मुनि के कार्य का सम्मान करना है।
श्लोकः - आप दोनों इस कथा का गान करने वाले हैं, तपोनिधि पुराण मुनि वाल्मीकि इस रचना के कवि हैं, धरती पर पहली बार अवतरित होनेवाला स्फुट वाणी का यह काव्य है और इसकी कथा कमलनाभि विष्णु से संबंध है और यह वो सेवकवृन्द निश्चय ही श्रोताओं को पवित्र और आनन्दित करने वाला है।
रामः - मित्र! यह मनुष्यों में सरस्वती का अपूर्व अवतार है, इसलिए मैं सुहृद लोगों में साधारण रूप से सुनना चाहता हूँ।

सभासदों को बुलाइए, लक्ष्मण को मेरे पास भेजिए, मैं भी इन दोनों के साथ बहुत समय तक बैठने के कारण हुई थकावट को विहार करके दूर करता हूँ।
( वह कहकर सभी निकल जाते हैं )

                                                          अभ्यासः


१. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत-
क) रामाय कुशलवयोः कण्ठाश्लेषस्य स्पर्शः कीदृशः आसीत्?
उत्तरम्- रामाय कुशलवयोः कण्ठाश्लेषस्य स्पर्शः हृदयग्राही आसीत्।
ख) रामः लवकुशौ कुत्र उपवेशयितुम् कथयति?
उत्तरम्- रामः लवकुशौ अर्धासने उपवेशयितुम् कथयति।
ग) बालभावात् हिमकरः कुत्र विराजते?
उत्तरम्- बालभावात् हिमकरः शङ्करस्य मस्तके विराजते।
घ) कुशलवयोः वंशस्य कर्त्ता कः?
उत्तरम्- कुशलवयोः वंशस्य कर्त्ता भवति भगवन् सूर्यः।

ङ) केन सम्बन्धेन वाल्मीकिः कुशलवयोः गुरुः आसीत्?
उत्तरम्- उपनयन-संस्कारदीक्षया सम्बन्धेन वाल्मीकिः कुशलवयोः गुरुः आसीत्।
च) कुुशलवयोः मातरं वाल्मीकिः केन नाम्ना आह्वयति?
उत्तरम्- कुशलवयोः मातरं वाल्मीकिः वधूः इति नाम्ना आह्वयति।

२. रेखाङ्कितेषु पदेषु विभक्तिं तत्कारणं च उदाहरणानुसारं निर्दिशत-
                                                                   विभक्तिः                              तत्कारणम्
यथा - राजन्! अलम् अतिदाक्षिण्येन।              तृतीया                               " अलम्" योगे
क) रामः लवकुशौ आसनार्धम् उपवेशयति।      द्वितीया                          "उपवेशयति" योगे
ख) धिङ् माम् एवं भूतम्।                                द्वितीया                            " धिङ्" योगे
ग) अङ्कव्यवहितम् अध्यास्यतां सिंहासनम्।     द्वितीया                         "अध्यास्यतां" योगे
घ) अलम् अतिविस्तरेण।                                   तृतीया                            " अलम्" योगे
ङ) रामम् उपसृत्य प्रणम्य च।                            द्वितीया                         " उपसृत्य" योगे

३. यथानिर्देशम् उत्तरत -
क) " जानाम्यहं तस्य नामधेयम्" अस्मिन् वाक्ये कर्तृपदं किम्?
उत्तरम्- अस्मिन् वाक्ये "अहं " कर्तृपदम् अस्ति।
ख) " किं कुपिता एवं भणति उत प्रकृतिस्था" अस्मात् वाक्यात् " हर्षिता" इति पदस्य विपरीतार्थकपदं चित्वा लिखत।
उत्तरम्- अत्र "हर्षिता" इति पदस्य विपरीतार्थकपदं भवति "कुपिता"।

ग) विदूषकः ( उपसृत्य ) " आज्ञापयतु भवान्!" अत्र भवान् इति पदं कस्मै प्रयुक्तम्?
उत्तरम्- अत्र भवान् इति पदं श्रीरामाय प्रयुक्तम्।
घ) " तस्मादङ्क-व्यवहितम् अध्यास्याताम् सिंहासनम्" -अत्र क्रियापदं किम्?
उत्तरम्- अत्र क्रियापदं अध्यास्याताम् अस्ति।
ङ) " वयसस्तु न किञ्चदन्तरम्" - अत्र आयुषः इत्यर्थे किं पदं प्रयुक्तम्?
उत्तरम्- अत्र " आयुषः" इत्यर्थे वयसः इति पदं प्रयुक्तम्।

४. अधोलिखितानि वाक्यानि कः कं प्रति कथयति-
                                                                         कः                              कम्
क) सव्यवधानं न चरित्रलोपाय।                         रामः                          लवकुुशौ
ख) किं कुपिता एवं भणति, उत प्रकृृतिस्था?      विदूषकः                       कुशलवौ

ग) जानाम्यहं तस्य नामधेयम्।                          कुशः                           रामम्
घ) तस्याः द्वे नाम्नी।                                        लवः                           विदूषकम् 
ङ) वयस्य! अपूर्वं खलु नामधेयम्।                       रामः                             कुशं
५. मञ्जूषातः पर्यायद्वयं चित्वा पदानां समक्षं लिखत-
क) हिमकरः      -   शशिः ,  निशाकरः
ख) सम्प्रति        -   इदानीम्,  अधुना
ग) समुदाचारः    -   शिष्टाचारः,  सदाचारः
घ) पशुपतिः       -     शिवः,   चन्द्रशेखरः
ङ) तनयः           -     सुतः,   पुत्रः
च) सहस्रदीधितिः   -    सूर्यः,  भानुः

६. अ)
           पदानि              प्रकृतिः        प्रत्ययः
यथा-  आसनम्   -       आस्      +     ल्युट् प्रत्ययः
क)      युक्तम्     -       युज्       +     क्त प्रत्ययः
ख)      भाजनम्   -       भाज्      +      ल्युट्
ग)      शालीनता  -      शालीन्    +      तल्

घ)      लालनीयः  -      लाल्      +      अनीयर्
ङ)       छदत्वम्    -       छद्       +       त्व
च)      संनिहितः   -     संनिधा    +      क्त
छ)    सम्माननीया   -   सम्मान   +     अनीयर्   +    टाप्

आ) विशेषण-विशेष्यपदानि योजयत-
            विशेषण पदानि      -         विशेष्य पदानि
 यथा-       श्लाघ्या             -                     कथा

  १)         उदात्तरम्यः         -        क)    समुदाचारः
  २)          अतिदीर्घः           -          घ)      प्रवासः
  ३)          समरूपः             -           ङ)     कुटुम्बवृत्तान्तः
  ४)          हृदयग्राही          -           ख)      स्पर्शः
  ५)          कुमारयोः           -           ग)      कुशलवयोः
७. ( क)  अधोलिखितपदेषु सन्धिं कुरुत-
क)  द्वयोः   +   अपि      -        द्वयोरपि
ख)   दौ       +    अपि       -        द्वावपि
ग)    कः     +     अत्र       -         कोऽत्र
घ)  अनभिज्ञः   +  अहम्    -      अनभिज्ञोऽहम्
ङ)   इति    +     आत्मानम्       - इत्यात्मानम्
(ख)    अधोलिखितपदेषु विच्छदं कुरुत-
क)   अहमप्येतयोः     -   अहम्   +  अपि     +      एतयोः
ख)    वयोऽनुरोधात्     -   वयोः   +      अनुरोधात्
ग)    समानाभिजनौ    -   समान    +    अभिजनौ
घ)    खल्वेतत्          -      खलु     +      एतत्


NCERT SANSKRIT SHEMUSHI CLASS-10 CHAPTER - 4 JANANEE TULYAVATSALA

                                          

         
           कोई एक किसान दो बैलों से खेत की जुताई करता था। उन दोनों बैल में से एक शरीर से दुर्वल था और तीव्रगति से नहीं चल पा रहा था। इसलिए किसान उस दुवले बैल को कष्ट दे कर धकेलते हुए ले रहा था। वो बैल हल ढोकर जाने में असमर्थ होकर खेत में गिर गया। क्रुद्ध किसान उसको उठाने के लिए बहुत कोशिश किया । फिर भी बैल उठा नहीं।
खेत में गिरा हुआ अपने बेटे को दुखी देखकर सभी गायों की माता सुरभि के दोनों आँखों से आँसू आने लगे। सुरभी की एसी अवस्था देखकर देवताओं के राजा उनको पूछा- " हे कल्याणकारीणि! ऐसे क्यों रो रही हैं ? कहें ।
और वह,
श्लोकः - हे इन्द्रदेव! भूमि में कोई गिरा हुआ आपको दिखाई नहीं दिया। लेकिन मैं पुत्र को याद कर रही हूँ, 
हे इन्द्र! इसलिए रो रही हूँ
"हे इन्द्र! पुत्र का दुख देख कर मैं रो रही हूँ। वो दुखी यह जानकर भी किसान उसको बहुत कष्ट देता है। वो कठिनाई से भार उठाता है। दूसरों के समान जुए को ढोने के लिए वो समर्थ नहीं है। यह आप देखे नहीं क्या?" ऐसा जवाब दिया।
" हे कल्याणकारीणि! निश्चय ही। हजार से अधिक पुत्र रहते हुए आपका इस पर ही इस प्रकार स्नेहभाव किसलिए?" ऐसा इन्द्र के द्वारा पूछेे जाने से सुरभि उत्तर दिया -
श्लोकः - यदि मेरे हजार बेटे हैं , सबके प्रति मेरा प्रेमभाव समान है। परन्तु हे इन्द्र! दुखी पुत्र पर मेरी कृपा अधिक होता है॥
" मेरे बहुत बेटे हैं यह सत्य है। तथापि इस पुत्र पर मैं विशेष कर कष्ट को अनुभव कर रही हूँ। क्योंकि यह दूसरे बेटों से दुर्बल है। सभी पुत्रों पर जननी समान रूप से प्यार करने वाली होती है। तथापि दुर्बल पुत्र पर माता का अत्यधिक कृपा अवश्यम्भावी है"। सुरभि के वाक्यों को सुनकर अत्यधिक आश्चर्य हुए इन्द्र का भी हृदय द्रवीभूत होगया। और वो सुरभि को इस प्रकार सान्त्वना दी - " जाओ बेटी! सवकुछ शुभ होगा।"
शीघ्र ही तीव्र हवा से और बादलों के गर्जन के साथ वर्षा होने लगा। देखते ही चारोंतरफ जलसंकट आगया। किसान खुसि से जोतने के काम छोड कर दोनों बैलों को ले कर घर चला गया।
श्लोकः - जननी सभी सन्तानों पर समस्नेहयुक्ता है। परन्तु दुखी पुत्र पर उस माता का हृदय कृपा से भर जाता है॥

अभ्यासः

१. अधोलिखितानां प्रश्नानामुत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत-
क) कृषकः किं करोति स्म?
उत्तरम्- कृषकः बलीवर्दाभ्याम् क्षेत्रकर्षणं करोति स्म।
ख) माता सुरभिः किमर्थं अश्रूणि मुञ्चति स्म?
उत्तरम्- भूमौ पतिते स्वपुत्रं दृष्ट्वा माता सुरभिः अश्रूणि मुञ्चति स्म।
ग) सुरभिः इन्द्रस्य प्रश्नस्य किमुत्तरं ददाति?
उत्तरम्- सुरभिः इन्द्रस्य प्रश्नस्य एतदुत्तरं ददाति यत् " भो वासव! पुत्रस्य दैन्यं दृष्ट्वा अहं रोदिमि" ।
घ) मातुः अधिका कृपा कस्मिन् भवति?
उत्तरम्- मातुः अधिका कृपा दीनेपुत्रे भवति।
ङ) इन्द्रः दुर्बलवृषभस्य कष्टानि अपाकर्तुम् किं कृतवान्?
उत्तरम्- इन्द्रः दुर्बलवृषभस्य कष्टानि अपाकर्तुम् वृष्टिः कृतवान्।
च) जननी कीदृशी भवति?
उत्तरम्- जननी तुल्यवत्सला भवति।
छ) पाठेऽस्मिन् कयोः संवादः विद्यते?
उत्तरम्- पाठेऽस्मिन् इन्द्रसुरभ्योः संवादः विद्यते।
२. क" स्तम्भे दत्तानां पदानां मेलनं "ख" स्तम्भे दत्तैः समानार्थकपदैः कुरुत-
   क स्तम्भ      ख स्तम्भ
क) कृच्छ्रेण      ६) काठिन्येन
ख) चक्षुभ्याम्    ३) नेत्राभ्याम्
ग)  जवेन       ५) द्रुतगत्या
घ)  इन्द्रः       २)  वासवः
ङ)  पुत्राः        ७)  सुताः
च) शीघ्रम        ४) अचिरम्
छ) बलीवर्दः      १)  वृषभः
३. स्थूलपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-
क) सः कृच्छ्रेण भारम् उद्वहति।
प्रश्नम्- सः केन कथं वा भारम् उद्वहति?
ख) सुराधिपः ताम् अपृच्छत्।
प्रश्नम्- कः ताम् अपृच्छत्?
ग) अयम् अन्येभ्यो दुर्बलः।
प्रश्नम्- अयम् केभ्यो दुर्बलः?
घ) धेनूनाम् माता सुरभिः आसीत्।
प्रश्नम्- कासाम् माता सुरभिः आसीत्?
ङ) सहस्राधिकेषु पुत्रेषु सत्स्वपि सा दुःखी आसीत्।
प्रश्नम्- केषु पुत्रेषु सत्स्वपि सा दुःखी आसीत्?
४. रेखाङ्कितपदे यथास्थानं सन्धिं विच्छेदं वा कुरुत-
क) कृषकः क्षेत्रकर्षणं कुर्वन्+आसीत्।  -  कुुर्वन्नासीत्
ख)तयोरेकः वृषभः दुर्बलः आसीत्।    -  तयोः + एकः
ग) तथापि वृषः न+उत्थितः।        -   नोत्थितः
घ) सत्स्वपि बहुषु पुत्रेषु अस्मिन् वात्सल्यं कथं?   -  सत्सु + अपि
ङ) तथा+अपि+अहम्+एतस्मिन् स्नेहम् अनुभवामि।  -  तथाप्यहमेतस्मिन्
च) मे बहूनि+अपत्यानि सन्ति।  -  बहून्यपत्यानि
छ) सर्वत्र जलोपप्लवः संजातः।  -  जल + उपप्लवः
५. अधोलिखितेषु वाक्येेषु रेखाङ्कितसर्वनामपदं कस्मै प्रयुक्तम्-
क) सा च अवदत् भो वासव! अहं भृशं दुःखिता अस्मि। - सुरभ्यै
ख) पुत्रस्य दैन्यं दृष्ट्वा अहं रोदिमि। - सुरभ्यै
ग) सः दीनः इति जानन् अपि कृषकः तं पीडयति। - वृषभाय
घ) मे बहूनि अपत्यानि सन्ति। - सुरभ्यै
ङ) सः च ताम् एवम् असान्त्वयत्। - इन्द्राय
च) सहस्रेषु पुत्रेषु सत्स्वपि तव अस्मिन प्रीतिः अस्ति। - सुरभ्यै

६. उदाहरणमनुसृत्य पाठात् चित्वा प्रकृति प्रत्यय विभागं कुरुत-
यथा- सुरभिवचनं श्रुत्वा इन्द्रः विस्मितः। (श्रु+क्त्वा)
क) बलीवर्दाभ्यां क्षेत्रकर्षणं कुर्वन्नासीत्। ( कृ+शतृ+आसीत्)
ख) स्वपुत्रं दृष्ट्वा सर्वधेनूनां मातुः नेत्राभ्यां अश्रूणि आविरासन्। (दृश्+क्त्वा)
ग) सः दीनःइति जानन् अपि पीडयति। (ज्ञा+शतृ)
घ) धुरं वोढुं सः न शक्नोति। (वहः+तुमुन्)
ङ) विशिष्य आत्मवेदनामनुभवामि। (वि+शिष्+ल्यप्)
च) वृषभौ नीत्वा गृहमगात्। (नी+क्त्वा)

७. "क" स्तम्भेविशेषणपदं लिखितम्, "ख" स्तम्भे पुनः विशेष्यपदम्। तयोः मेलनं कुरुत-
         क स्तम्भ    -          ख स्तम्भ
क)     कश्चित्      -       ७)   कृषकः
ख)     दुर्बलम्       -       १)   वृषभम्
ग)       क्रुद्धः        -        ३)  कृषीवलः
घ)   सहस्राधिकेषु   -      ६)   पुत्रेषु
ङ)    अभ्यधिका     -      २)   कृपा
च)     विस्मितः     -       ४)  आखण्डलः
छ) तुल्यवत्सला    -       ५)   जननी

Monday, May 10, 2021

NCERT SANSKRIT: SHEMUSHI CLASS -10 CHAPTER -1 SHUCHIPARYAVARANAM

हिन्दी अनुवाद -


              महानगरों में जीवन कठिन हो गया है व प्रकृति ही हमारा सहारा है। शुद्ध पर्यावरण चाहिए॥ महानगरों के बीच में दिन-रात चलता हुआ लोहे का पहिया मन को सुखाता हुआ और तन को पीसता हुआ हमेशा टेढ़ा रूप धारण करती है॥ इसके भयानक दाँतों से कहीं मानव जाति का विनाश न हो जाए। शुद्ध पर्यावरण चाहिए॥१॥

सैकड़ों मोटर गाड़ियाँ काजल- सा मैला धुआँ छोड़ती हैं। रेलगाड़ी की पंक्ति आवाज़ करती हुई दौड़ती हैं॥ क्योंकि वाहनों का पंक्ति असंख्य है, इसिलिए चलना मुश्किल हो जाता है। पर्यावरण को शुद्ध करना होगा॥२॥


वायुमण्डल अत्यधिक मैला हो गया है, साफ जल भी नहीं है। खाद्यपदार्थ निन्दनीयवस्तु से मिला हुआ है, धरती गन्दगी से युक्त है॥ संसार में बाहर और अन्दर बहुत साफ करना चाहिए। शुद्ध पर्यावरण चाहिए॥३॥

मुझे कुछ समय इस नगर से बहुत दूर ले चलो। गाँव की सीमा पर झरणा-नदी-जल से भरा हुआ तालाब देखुँ॥ निर्जन वन में मेरा थोड़ी देर के लिए भी विचरण होना चाहिए। शुद्ध पर्यावरण चाहिए॥४॥

हरेभरे पेड़ों कि तथा सुंदर लताओं कि पंक्ति शोभनीय है। हवा से चलायी हुई फूलों की पंक्ति मेरे लिए वरण करने योग्य है॥ आम के साथ मिली हुई सुंदर चमेली का सुंदर मेल हो। शुद्ध पर्यावरण चाहिए॥५॥

अरे मित्र! पक्षियों के समूह की सुंदर ध्वनि से गुंजते हुए वन प्रदेश की ओर चलो। जिसने नगर के शोर से त्रस्त लोगों के लिए शुभ समाचार धारण किया है॥ चकाचौंधभरि दुनिया जीवन के सार का विनाश न करदें॥६॥

पत्थरों के तल पर लता,वृक्ष और झाड़ी न पिसजाएँ। पत्थरीली सभ्यता प्रकृति में न समाजाए॥ मैं मनुष्य के जीवन के लिए कामना करता हूँ, मनुष्य के मृत्यु नहीं; कवि युँ कहते हैं॥७॥

                                 अभ्यासः

१. अधोलिखितानां प्रश्नानाम उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत -
क) कविः किमर्थं प्रकृतेः शरणमिच्छति?
उत्तरम्- महानगरे जीवनं कठिनं जातम्। एतदर्थं कविः प्रकृतेः शरणमिच्छति।                                                    ख) कस्मात् कारणात् महानगरेषु संसरणं कठिनं वर्तते?                                                                             उत्तरम - यानानां पङ्क्तयः ही अनन्ताः। अस्मात् कारणात् महानगरेषु संसरणं कठिनं वर्तते।                             ग) अस्माकं पर्यावरणे किं किं दूषितमस्ति?                                                                                            उत्तरम - अस्माकं पर्यावरणे वायुमण्डलं जलं भक्षं धरातलञ्च दूषितमस्ति।                                                      घ) कविः कुत्र सञ्चरणं कर्तुमिच्छति?                                                                                                      उत्तरम - कविः एकान्ते वने सञ्चरणं कर्तुमिच्छति।                                                                                      ङ) स्वस्थजीवनाय कीदृशे वातावरणे भ्रमणीयम्?                                                                                              उत्तरम - स्वस्थजीवनाय खगकुलकलरव गुञ्जितवनदेशयुक्त वातवरणे भ्रमणीयम्।                                      च) अन्तिम पद्यांशे कवेः का कामना अस्ति?उत्तरम - अन्तिमे पद्यांशे कविः मानवाय जीवनं कामये।

२. सन्धिं सन्धिविच्छेदं वा कुरुत-
क) प्रकृतिः + एव - प्रकृतिरेव
ख) स्यात् + न + एव - स्यान्नैव
ग) हि + अनन्ताः - ह्यनन्ताः
घ) बहिः + अन्तः +जगति - बहिरन्तर्जगति
ङ) अस्मात् + नगरात् - अस्मान्नगरात्
च) सम् + चरणम् - सञ्चरणम्
छ) धूमम् + मुञ्चति - धूमं मुञ्चति
३. अधोलिखितानां अव्ययानां सहायतया रिक्तस्थानानि पूरयत-
क) इदानीं वायुमण्डलं भृशं प्रदूषितमस्ति।
ख) अत्र जीवनं दुर्वहमस्ति ।
ग) प्राकृतिक-वातावरणे क्षणं सञ्चरणम् अपि लाभदायकं भवति ।
घ) पर्यावरणस्य संरक्षणम् एव प्रकृतेः आराधना।
ङ) सदा समयस्य सदुपयोगः करणीयः।
च) भूकम्पित-समये बहिः गमनमेव उचितं भवति।
छ) यत्र हरीतिमा तत्र शुचि पर्यावरणम्।
४. उदाहरणमनुसृत्य अधोलिखित-पदेषु प्रकृतिप्रत्ययविभागं संयोगं वा कुरुत-
यथा- जातम् - जन् + क्त
क) प्र + कृ + क्तिन् - प्रकृति
ख) नि + सृ + क्त + टाप् - निसृता
ग) दूष् + क्त - दूषितम्
घ) कृ + अनीयर् - करणीयम्
च) भक्ष् + यत् - भक्ष्यम्
छ) रम + अनीयर् + टाप् - रमणीया
ज) वृ + अनीयर् + टाप् - वरणीया
झ) पिष् + क्त - पिष्टाः

५. अ) अधोलिखितानां पदानां पर्यायपदं लिखत-

  क) सलिलम      -       जलम्
  ख) आम्रम        -        रसालम्
  ग) वनम         -        कान्तारम्
  घ) शरीरम      -        तनुः
  ङ) कुटिलम     -        वक्रम्
  च) पाषाणः     -        प्रस्तरः

आ) अधोलिखितपदानां विलोमपदानि पाठात चित्वा लिखत-

क) सुकरम् - दुष्करम्
ख) दूषितम् - शुद्धम्
ग) गृहणन्ती - वितरन्ती
घ) निर्मलम् - समलम्
ङ) दानवाय - मानवाय

६. उदाहरणमनुसृत्य पाठात् चित्वा च समस्तपदानि समस्तनाम च लिखत-
यथा- विग्रह पदानि समस्तपद समासनाम
क) मलेन सहितम् समलम् अव्ययीभाव
ख) हरिताः च ये तरवः (तेषां) हरिततरूणाम् तत्पुरष
ग) ललिताः च याः लताः (तासाम्) ललितलतानाम् तत्पुरुष
घ) नवा मालिका नवमालिका अव्ययीभाव
ङ) धृतः सुखसन्देशः येन (तम्) धृतसुखसन्देशम् बहुव्रीहि
च) कज्जलम् इव मलिनम् कज्जलमलिनम् तत्पुरुष
छ) दुर्दान्तैः दशनैः दुर्दान्तदशनैः बहुव्रीहि
७. रेखाङ्कित-पदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-
क) शकटीयानम् कज्जलमलिनं धूमं मुञ्चति।
प्रश्नम् - शकटीयानम् कीदृशं धूमं मुञ्चति?
ख) उद्याने पक्षीणां कलरवं चेतः प्रसादयति।
प्रश्नम - उद्याने केषां कलरवं चेतः प्रसादयति?
ग) पाषाणीसभ्यतायां लतातरुगुल्माः प्रस्तरतले पिष्टाः सन्ति।
प्रश्नम - पाषाणीसभ्यतायां के प्रस्तरतले पिष्टाः सन्ति?
घ) महानगरेषु वाहानानां अनन्ताः पङ्क्तयः धावन्ति।
प्रश्नम - कुत्र वाहानानां अनन्ताः पङ्कतयः धावन्ति?
ङ) प्रकृत्याः सन्निधौ वास्तविकं सुखं विद्यते।
प्रश्नम - कस्याः सन्निधौ वास्तविकं सुखं विद्यते?

सुभाषितम्(NOBLE THOUGHTS)

 अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः। चत्वारि तस्य बर्धन्ते आयुर्विद्यायशोबलम्॥(महर्षि मनुः)  अर्थ  -               प्रतिदिन नियमितरूपसे गुरु...