श्रीरामचन्द्र ने जटाजुट धारण किये हुए और पेड़ के छाल के बने वस्त्र पहने हुए भरतजी को हाथ जोड़कर(नमस्कार करते हुए) , पृथिवी पर पड़ा हुआ देखा । जैसे प्रलय कालीन दुर्दर्श सूर्य तेजहीन होकर पृथिवी पर पड़ा हो।।१।।
२. बड़ी कठिनाई से विवर्ण मुख और अत्यन्त दुवले पतले अपने भाई भरत को पहचान , श्रीरामचंद्र जी ने उन्हें दोनों हाथों से पकड कर उठाया।
३. रघुवंशी श्रीरामचंद्र जी ने भरत के मस्तक को सूँघ कर, उन्हें आलिङ्गन कर और उनको गोदी में विठा कर, आदर पूर्वक यह बात पूछे।
४. हे ताज! विश्वसनीय,धीर, नीतिशास्त्रज्ञ, लालच में न फँसने वाले और प्रामाणिक कुलोत्पन्न लोगों को तुमने अपना मंत्री वनाया या नहीं?
५. क्योंकि हे राघव! नीतिशास्त्रनिपुण एकान्त भेद की परामर्श करने योग्य मंत्रियों द्वारा रक्षित , गुप्त परामर्श ही, राजाओं के लिये विजय का मूल है।
६. तुम निद्रा के वश में तो नहीं रहते? यथा समय जाग तो जाते हो? तुम पिछली रात में अर्थ की प्राप्ति के उपाय तो विचार करते हो?
७. अकेले तो किसी विषय पर विचार नहीं करते अथवा वहुत से लोगों के बीच बैठकर तो सलाह नहीं करते? तुम्हारा विचार कार्य रूप में परिणत होने से पहले दूसरे राजाओे को विदित तो नहीं हो जाता है?
८. अल्प प्रयास से सिद्ध होने वाले और बड़ा फल देने वाले कार्य को करने का निश्चय कर , शीघ्र ही उसको करना तुम आरम्भ कर देते हो कि नहीं? उसे पूरा करने में विलम्ब तो नहीं करते।
९. तुम हजार मुर्खों को त्याग कर एक पण्डित को आश्रय करते हो कि नहीं? क्योंकि यदि सङ्कट के समय एक भी पण्डित पास हो, तो बड़े ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। अर्थात् बड़ा लाभ होता है।
१०. किन्तु यदि एक भी बुद्धिमान, स्थिरबुद्धि, विचारकुशल और नीतिशास्त्र में अभ्यस्त मन्त्री हो, तो राजा अथवा राजकुमार को बड़ी लक्ष्मी प्राप्त करा देता है।
११. हे तात! तुम उत्तम जाति के नौकरों को उत्तम कार्य में, मध्यम जाति के नौकरों को मध्यम कार्य में और छोटी जाति के नौकरों को छोटे कामों में लगाते हो न?
१२. तुम उन मंत्रियों को जो ईमानदार हैं , जो कुलपरंपरा से मंत्री होते आते हैं, जो शुद्ध हृदय और श्रेष्ठ स्वभाव के हैं, श्रेष्ठ कार्यों में नियुक्त करते हो न?
१३. हे भरत! तुमने किसी ऐसे पुरुष को, जो व्यवहार में चतुर, शत्रु को जितने वाला , सैनिक कार्यों में (व्यूहादि रचना में) चतुर, विपत्ति के समय धैर्य धारण करने वाला , स्वामी का विश्वासपात्र, सत्कुलोद्भव, स्वामिभक्त और कार्यकुशल हो, अपना सेनापति बनाया है कि नहीं?
१४. तुम सेना वालों को कार्यानुरूप भोजन और वेतन यथासमय देने में विलम्ब तो नहीं करते ।
१५. क्योंकि भोजन और वेतन समय पर न मिलने से , नौकर लोग कुपित होते हैं और मलिक की निन्दा करते हैं । नौकरों का ऐसा करना , एक बड़े भारी अनर्थ की वात है ।
अभ्यासः
१. संस्कृतेन उत्तरं देयम् -
क) अयं पाठः आदिकाव्याद् वाल्मीकिरामायणग्रन्थात् सङ्कलितः।
ख) जटिलः चीरवसनः भुवि पतितः भरतः आसीत् ।
ग) रामः भरतं पाणिना परिजग्राह।
घ) भरतं रामो अपृच्छत्।
ङ) मन्त्रो राज्ञां विजयमूलं भवति।
च) उपधातीतः पितृपैतामहकुलात् निर्वाहितः शुचिः श्रेष्ठात्श्रेष्ठेषु च अमात्यः राज्ञः कृते क्षेमकरः भवेत्।
छ) धृष्टश्च शूरश्च धृतिमान् मतिमाञ्छुचिः कुलीनः अनुरक्तः दक्षश्च गुणयुक्तः सेनापतिः भवेत्।
ज) बलेभ्यः यथाकालं यथोचितं भक्तवेतनञ्च दातव्यम्।
झ) मन्त्रः राज्ञां विजयमूलं भवति यत् नैकः मन्त्रितः न च बहुभिः सह विमर्षितः।
ञ) मेधावी अमात्यः राजानं महतीं श्रियम् प्रापयेत्।
२. रिक्तस्थानपूर्तिः क्रियताम् -
क) रामः ददर्श दुर्दर्शं युगान्ते भास्करं यथा ।
ख) अङ्के भरतं आरोप्य रामः सादरं पर्यपृच्छत ।
ग) कच्चित् काले अवबुध्यसे?
घ) पण्डितः हि अर्थकृच्छ्रेषु महत् निःश्रेयसं कुर्यात्।
ङ) श्रेष्ठाच्छ्रेष्ठेषु कच्चित् एवं कर्मसु नियोजयसि।
५. अधोलिखितपदानां उचितमर्थं कोष्ठकात् चित्वा लिखत -
क) दुर्दर्शनम् - कठिनाई से देखने योग्य
ख) परिष्वज्य - आलिंगन करके
ग) आघ्राय - सूंघकर
घ) मुर्ध्नि - सिर में
ङ) निःश्रेयसं - कल्याण को
च) विचक्षणः - निपुण
छ) बलस्य - सेना का
६. विपरीतार्थमेलनं क्रियताम् -
क) एकः - बहवः
ख) क्षिप्रं - शनैः
ग) पण्डितः - मुर्खः
घ) महत् - लघु
७. सन्धिविच्छेदः क्रियताम् -
क) कुलीनश्च - कुलीनः + च
ख) भृत्याश्च - भृत्याः + च
ग) धृष्टश्च - धृष्टः + च
घ) अनुरक्तश्च - अनुरक्तः + च
ङ) शूरश्च - शूरः + च
८. अधोलिखितेषु शब्देषु प्रकृतिं प्रत्ययं च पृथक् कुरुत -
क) पतितम् - पत् + क्त, तम्
ख) आघ्राय - आ + घ्रा + ल्यप्
ग) मन्त्रिणः - मन्त्र + इन्, प्रथमा विभक्ति बहुवचने
घ) पण्डिताः - पण्डा + इतच्, प्रथमा विभक्ति बहुवचने
ङ) मेधावी - मेधा + विनि + स्त्री : ईप्
च) दातव्यम् - दा + तव्य, तम्
छ) स्मृतः - स्मृ + क्त
समाप्तम्