Sunday, May 2, 2021

NCERT, SANSKRIT SHEMUSHI CHAPTER - 2 स्वर्णकाकः CLASS -9

       

                    प्राचीनकाल में एक गांव में एक गरीव वृद्धा रहती थी । उसकी एक विनम्र और सुन्दर लड़की थी । माता एकदिन थाली में चावल रख कर पुत्री को बोली - धूप में रखागया चावल को पक्षीओं से बचाना । कुछसमयवाद एक अद्भूत् कौवा उसके पास पहुँचा ।

सोने का पंख तथा चाँदी के चोंचवाले स्वर्णकौवा वो पहले कभी देखि नहीं थी । उसको चावल खाते हुए और हँसते हुए देखकर बालिका रोने लगी । चावल खाने से मना करती हुई बालिका उसे प्रार्थना किया - चावल मत खाओ । मेरी माता बहुत गरीव है । स्वर्णपंखयुक्त कौवा वोला, चिन्ता मत करो । सूर्योदय से पहले गाँव के वाहर स्थित पिप्पल बृक्ष के नीचे तुम आना । तुम्हे तुम्हारा चावलमूल्य मिलजाएगा ।

आनन्दिता बालिका रात को नीद्रा प्राप्त नहीं कर पाई ।
सूर्योदय से पहले ही बालिका बृक्ष के नीचे पहुँचगई और बृक्ष के ऊपर स्वर्णमय प्रासाद देखकर वो आश्चर्यचकित होगई ।कौवा नींद से जागा और स्वर्णखिड़की से देखकर बोला, हे बालिका ! तुम आगई, रुको, मैं तुम्हारेलिए सीढ़ी उताररहा हूँ, बोलो इनमें से कौनसा सीढ़ी चाहिए,- सोने का,चाँदी का अथवा ताम्बे का ? बालिका बोली - मैं गरीब माँ की बेटी हूँ । ताम्बे की सीढ़ी से ही आऊँगी ।लेकिन सोने की सीढ़ी से वो स्वर्णप्रासाद में पहुँची ।

भवन मै सुसज्जित चित्रविचित्र वस्तुुओं को देेखकर वो आश्चर्यचकित हो गई ।थकी हुई उसको देखकर कौवा बोला - पहले तुम सुवह का नाश्ता करो, बोलो क्या तुम स्वर्ण थाली में भोजन करोगी अथवा चाँदी की थाली या ताम्बे की थाली में ? बालिका बोली - निर्धनी मैं ताम्बे की थाली में ही भोजन करुंगी । लेकिन वो कन्या आश्चर्यचकित होगई जब स्वर्णकाक उसे स्वर्णथाली में भोजन परोसा ।

एसी स्वादिष्ट भोजन बालिका ने अबतक खाई नहीं थी । हे बालिका! मेरा ईच्छा हैै कि तुम यहाँ रुक जाओ लेकिन तुम्हारी माता अकेली रहती हैं । तुम शीघ्र ही अपने घर जाओ ।
यह बोलकर कौवा कमरे में से तीन पेटियाँ निकालकर उसको बोला - हे बालिका! अपनी ईच्छा से एक पेटी लेजाओ । सबसे छोटी पेटी को लेकर बालिका बोली यह ही मेरा चावलों का मूल्य है । घर पहुँचकर वह पेटी खोली, उसमें बहुमूल्य हीराएँ देखकर उसे खुसि हुई और उस दिन से वह धनी हो गई ।


उस गांव में एक लालची वृद्धा रहती थी । उसकी भी एक बेटी थी । ईर्ष्या के कारण वह स्वर्णकौवा का रहस्य जान गई ।धूप में चावलों को रखकर रक्षा के लिए वह भी अपनी बेटी को नियुक्त किया।

स्वर्ण पक्षयुक्त कौवा चावल खा कर उसको भी पेड़ के नीचे बुलाया । सुवह वहाँ जा कर वो कौवा को निन्दा करती हुई बोली - हे नीच कौवा ! मैं आ गई, मुझे चावलों का मूल्य दो ।

कौवा बोला - मैं तुम्हारेलिए सीढ़ी उतार रहा हूँ । बोलो सोने का , चाँदी का अथवा ताम्बे का चाहिए । बालिका गर्व से बोली - सोने की सीढ़ी सेे मैं आऊँगी लेकिन स्वर्ण काक उसके लिए ताम्बे की सीढ़ी ही भेजा । स्वर्ण कौवा ने उसको भोजन भी ताम्बे के पात्र में ही करवाया ।
लौटते समय सोने का कौवा कमरे में से तीन पेटियाँ ला कर उसके सामने रखा । लालच के कारण वो सवसे बड़ी पेटी ले गई । घर आ कर जब वो खुसि से पेटी खोलती है तब उसमें भयङ्कर कालासर्प दिखाई देता है । इस प्रकार लोभी बालिका को लोभ का फल मिलगया । उस दिन से वो लोभ करना छोड़ दिआ ।

अभ्यासः

१ अधोलिखितानां प्रश्नानाम उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत -
क. निर्धनायाः वृद्धायाः दुहिता कीदृशी आसीत ?
उत्तरम्- निर्धनायाः वृद्धयाः दुहिता विनम्रा मनोहरा चासीत ।
ख. बालिकया पूर्वं किं न दृष्टम आसीत ?
उत्तरम्- स्वर्णपक्षो रजतचञ्चुः स्वर्णकाकः बालिकया पूर्वं न दृष्टम आसीत ।
ग. रुदन्तीं बालिकां काकः कथं आश्वासयत ?
उत्तरम्- रुदन्ती बालिकां काकः प्रोवाच- मा शुचः । सूर्योदयात प्राग ग्रामाद बहिः पिप्पलवृक्षमनु त्वं आगच्छ । अहं त्वां तण्डुलमूल्यं दास्यामि इत्युक्त्वा काकः बालिकां आश्वासयत् ।

घ. बालिका किं दृष्ट्वा आश्चर्यचकिता जाता ?
उत्तरम्- वृक्षस्योपरि स्वर्णमयं प्रासादं दृष्ट्वा बालिका आश्चर्यचकिता जाता ।
ङ. बालिका केन सोपानेन स्वर्णभवनम आससाद ?
उत्तरम - बालिका स्वर्णसोपानेेन स्वर्णभवनम आससाद ।
च. सा ताम्रस्थाल्याः चयनाय किं तर्कं ददाति ?
उत्तरम्- बालिका निर्धना अस्तीति ताम्रस्थाल्याः चयनाय तर्कमेतत ददाति ।
छ. गर्विता बालिका कीदृशं सोपानम अयाचत कीदृशं च प्राप्नोत ?
उत्तरम्- गर्विता बालिका स्वर्णमयं सोपानम अयाचत ताम्रमयं च प्राप्नोत ।

२.क. अधोलिखितानां शब्दानां विलोमपदं पाठात चित्वा लिखत-
१.पश्चात ॒ पूर्वं
२.हसितुम - रोदितुम्
३.अधः - उपरि
४.श्वेतः - कृष्णः
५.सूर्यास्तः - सूर्योदयः
६.सुप्तः - प्रबुद्धः
ख. सन्धिं कुरुत -
१.नि+अवसत - न्यवसत्

     २.सूर्य + उदयः - सूर्योदयः
     ३.वृक्षस्य + उपरि - वृक्षस्योपरि
     ४.हि  +  अकारयत  -  ह्यकारयत्
     ५.च + एकाकिनी - चैकाकिनी
     ६.इति + उक्त्वा - इत्युक्त्वा
     ७.प्रति + अवदत - प्रत्यवदत्
     ८.प्र + उक्तम  -  प्रोक्तम्
     ९.अत्र + एव - अत्रैव
   १०.तत्र + उपस्थिता - तत्रोपस्थिता
   ११.यथा + इच्छम - यथेच्छम्
 ३. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत -
     क. ग्रामे का अवसत ?   
     ख. कं निवारयन्ती  बालिका प्रार्थयत ?
     ग. कस्मात पूर्वमेव बालिका तत्रोपस्थिता ?
     घ. बालिका कस्याः दुहिता आसीत ?
     ङ. लुब्धा वृद्धा कस्य रहस्यमभिज्ञातवती ?
 ४. प्रकृति-प्रत्यय-संयोगं  कुरुत (पाठात चित्वा वा लिखत) -
      क.   हस + शतृ   -  हसन्
      ख.   भक्ष  +  शतृ  -  भक्षयन्
      ग.   वि  +  लोक  +  ल्यप   -  विलोक्य
      घ.   नि  +  क्षिप   +  ल्यप  -  निक्षिप्य
      ङ.   आ  +  गम   +   ल्यप   -  आगम्य
      च.   दृश  +  क्त्वा  -  दृष्ट्वा
        छ.   शी  +  क्त्वा   -  शयित्वा
        ज.   वृद्ध  +  टाप    -  वृद्धा
        झ.   सुत  +  टाप   -   सुता
        ञ.   लघु  +  तमप  -  लघुतमा
 ५. प्रकृतिप्रत्यय-विभागं  कुरुत  -
        क.  हसन्तम  -  हस  +  शतृन्
        ख.  रोदितुम  -  रुद  +  तुमुन्
        ग. वृृद्ध  +  टाप  -  वृद्धा
        घ. भक्षयन  -  भक्ष  +  शतृृन्
        ङ. दृष्ट्वा  -   दृश  +  क्त्वा
        च. विलोक्य  -  वि + लुक + ल्यप्
        छ. निक्षिप्य  -  नि  +  क्षिप + ल्यप्
        ज. आगत्य   -  आ  +  गम  +  ल्यप्
        झ. शयित्वा  -  शी  +  क्त्वा
        ञ. सुता  -  सुत  +  टाप्
        ट.  लघुतमम  -  लघु  +  तमप्
 ६. अधोलिखितानि  कथनानि  कः \  का , कं \ कां  च  कथयति  -
                  कथनानि                             कः\ का ,     कं  \  काम    
     क. पूर्वं  प्रातराशः  क्रियाताम ।                        स्वर्णकाकः        बालिकाम्
     ख. सूर्यातपे  तण्डुुलान  खगेभ्यो  रक्ष  ।                  माता           बालिकाम्
     ग. तण्डुलान  मा  भक्षय  ।                          बालिका         स्वर्णकाकम्
     घ. अहं तुभ्यं तण्डुलमूल्यम  दास्यामि  ।               स्वर्णकाकः        बालिकाम्
     ङ. भो  नीचकाक!  अहमागता, मह्यं  
         तण्डुुुलमूल्यं  प्रयच्छ  ।                        गर्विता बालिका    स्वर्णकाकम्
  ७.  उदाहरणमनुसृत्य  कोष्ठकगतेषु पदेषु  पञ्चमविभक्तेः प्रयोगं कृत्वा रिक्तस्थानानि पूरयत -
        क. जनः ग्रामात  बहिः आगच्छति ।
        ख. नद्यः पर्वतात निस्सरन्ति ।
        ग. वृक्षात पत्राणि पतन्ति ।
        घ. बालकः सिंहात विभेति ।
        ङ. ईश्वरः क्लेशात त्रायते ।
        च. प्रभुः भक्तं पापात निवारयति ।

NCERT, SANSKRIT SHEMUSHI CLASS-9 CHAPTER-1 BHARATI VASANTA GEETIH


निनादय नवीनामये वाणि! वीणाम्
मृदुं गाय गीतिं ललित-नीति-लीनाम् ।
मधुर-मञ्जरी-पिञ्जरी-भूत-मालाः
वसन्ते लसन्तीह सरस रसालाः
कलापाः ललित-कोकिला-काकलीनाम् ॥१ ॥
निनादय….॥ 
अनुवाद -

हे वाणी! नवीन वीणा को बजाओ एवं सुन्दर नीतिओं से परिपूर्ण गीत का मधुर गान करो। इन वसन्त ऋतु में मधुर आम्रपुष्पों से हुए पीलेवर्णयुुक्त सरस आम्रवृक्षों कि पंक्तियाँ सुशोभित हो रही हैं। मनोहर ध्वनियुक्त कोकिलों के समूह सुन्दर लग रहे हैं। हे वाणी! नूतन वीणा को बजाओ।

वहति मन्दमन्दं सनीरे समीरे
कलिन्दात्मजायास्सवानीरतीरे,
नतांपङ्क्तिमालोक्य मधुमाधवीनाम ॥२॥

निनादय….. ॥
हिन्दी अनुवाद

यमुना नदी के तट वेतसलताओं से युक्त है। नदीतट का वायु जलविन्दुओं से पूर्ण होने के कारण मन्दमन्द बह रहा है। इसिलिए झुकी हुई मधुर मालतीलताओं को देखकर, हे वाणी! नवीन वीणा बजाओ ।

ललित-पल्लवे पादपे पुष्पपुञ्जे
मलयमारुतोच्चुम्बिते मञ्जुकुञ्जे,
स्वनन्तीन्ततीम्प्रेक्ष मलिनामलीनाम्॥३॥
निनादय….॥

हिन्दी अनुवाद
मलयपवन से स्पृष्ट सुन्दर पत्तोंवाले वृक्षों, पुष्पसमूहों तथा शोभन लताओं पर काले भौंरों की गुञ्जार करती हुई पंक्ति को देखकर, हे वाणी! नवीन वीणा को बजाओ।

लतानां नितान्तं सुमं शान्तिशीलम्
चलेदुच्छलेत्कान्तसलिलं सलीलम्,
तवाकर्ण्य वीणामदीनां नदीनाम ॥४॥
निनादय….॥

हिन्दी अनुवाद

तुम्हारी ओजस्विनी वीणा को सुनकर लताओं के अतीव शान्ती से युक्त पुष्प हिल उठे, नदीओं का मनोहर जल क्रीड़ा करता हुआ उछल पड़े । हे वाणी ! नवीन वीणा को बजाओ I

                      अभ्यासः

१ अधोलिखितानां प्रश्नानामुत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत ।
क) कविः वीणापाणिं किं कथयति ?
उत्तरम्- कविः वीणापाणिं वाणी इति कथयति ।
ख) वसन्ते किं भवति ?                                                                                                                               उत्तरम् -  वसन्ते मधुरआम्रपुष्पैः पीतवर्णयुक्ताः सरसाः आम्रमालाः सुशोभन्ते । अपि च मनोहरध्वनियुक्ताः कोकिलसमूहाः विलसन्ति ।                                                                                                                             ग) सरस्वत्याः वीणां श्रुत्वा किं परिवर्तनं भवतु इति कवेः इच्छां लिखत ।                                                              उत्तरम् -   सरस्वत्याः ओजस्विनीं वीणां श्रुत्वा यत परिवर्तनं भवतु इति कवेः इच्छा अस्ति तत भवति, -       लतानां अतीव शान्तसुमनम चलेत ; तथा च नदीनां मनोहरजलं सक्रीड़म उच्छलेत ।                                       घ) कविः भगवतीं भारतीं कस्याः नद्याः तटे मधुमाधवीनां नतां पङ्क्तिम अवलोक्य वीणां वादयितुम कथयति ?उत्तरम्- कविः भगवतीं भारतीं यमुनायाः तटेे मधुमाधवीनां नतां पङ्क्तिमवलोक्य वीणां वादयितुम कथयति ।

२. (क) स्तम्भे पदानि, (ख) स्तम्भे तेषां पर्यायपदानि दत्तानि । तानि चित्वा पदानां समक्षे लिखत-

             (क) स्तम्भः                         (ख) स्तम्भः
          क) सरस्वती                         १) तीरे
          ख) आम्रम                            २) अलीनाम्
          ग) पवनः                             ३)समीरः
          घ) तटे                                ४) वाणी
          ङ) भ्रमराणाम                       ५) रसालः
   उत्तरम्- ४)वाणी, ५)रसालः, ३)समीरः, १)तीरे, २)अलीनाम्


४) प्रथमश्लोकस्य आशयं हिन्दीभाषया आङ्ग्लभाषया वा लिखत -
उत्तरम - हे वाणी ? नवीन वीणा को बजाओ तथा सुन्दर नीतिओं से परिपूर्ण गीत का मधुर गान करो । वसन्त ऋतु में मधुर आम्रपुष्प से पीली हो गई रसयुक्त आम के वृक्षों की पङ्क्तियां सुशोभित हो रही हैं । मनोहर ध्वनियुक्त कोयलों के समूह सुन्दर लग रहे हैं । हे वाणी ! नूतन वीणा को बजाओ ।

५) अधोलिखितपदानां विलोमपदानि लिखत -
क) कठोरम् - मृदुं
ख) कटु - मधुरम्
ग) शीघ्रम् - मन्दमन्दम्
घ) प्राचीनम् - नवीनम्
ङ) नीरसः - सरसः

Thursday, April 15, 2021

NCERT, SANSKRIT SHEMUSHI CLASS-9 CHAPTER-8 जटायोः शौर्यम्


१) तब करुण वाणी में विलाप करती हुई अत्यन्त दुःखी, विशाल नेत्रोंवाली सीता विशाल वृक्ष पर बैठे हुए जटायु को देखा॥
२.  आर्य जटायू! बूरे काम करने वाले इस राक्षस राज रावण के द्वारा अनाथ की तरह ले जाए जाती हुई मुझे देखो॥

३. तब सोये हुए जटायु ने वह शब्द सुना तथा रावण को देखकर शीघ्र ही उसने सीता को देखा॥
४. तब पर्वत की शिखर के समान सुंदरता वाले, तीखी चोंच वाले, वृक्ष पर स्थित शोभायुक्त तथा श्रेष्ठ पक्षी उस जटायु ने सुंदर वाणी में कहा॥
५. परयी स्त्री स्पर्षदोष से अपनी नीच बुद्धि को रोको। बुद्धिमान मनुष्य को ऐसा आचरण नहीं करना चाहिए जिससे दुसरे लोग उसकी निंदा करें॥
६. मैं वृद्ध हूँ । किन्तु तुम युवक हो, धनुर्धारी हो, रथ सहित हो,कवचधारी हो एवं वाण धारण किए हुए हो। फिर भी तुम सीता को लेकर कुशलपूर्वक नहीं जा सकोगे॥
७. उस उत्तम और महाबल पक्षी ने अपने तीखे नाखूनों तथा दोनों पैरों से प्रहार कर रावण के शरीर पर अनेक घाव बनादिया॥
८. तब अत्यंत तेजस्वी उस जटायु ने रावण के मुक्तामणि से सुशोभित तथा बाण सहित विशाल धनुष को तोड़ दिया॥
९. तब टूटे हुए धनुष वाला, रथहीन, मारे गए घोड़ों वाला तथा मारे गए सारथि वाला उस रावण ने सीता को गोद में ले कर पृथ्वी पर गिर गया॥
१०. तब अत्यंत क्रोध से रावण ने बाँये गोद में धारण कर तलवार की मूठ से जटायु पर शीघ्र ही प्रहार किया॥
११. तब शत्रुओं को नष्ट करने वाला पक्षियों का राजा जटायु ने उस को लांघ कर अपने चोंच से झपट कर उस रावण के दस बाँये भुजाओं को नष्ट कर दिया॥

                                         अभ्यासः

१. अधोलिखितानां प्रश्नानाम उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत -
क) " जटायो! पश्य" इति का वदति?
उत्तरम्- " जटायो पश्य" इति सीता वदति।
ख) जटायुः रावणं किं कथयति?
उत्तरम्- जटायुः रावणं कथयति यत् "परस्त्रीस्पर्शात् नीचां मतिं निवर्तय। धीरः न तत् समाचरेत् यत् परः अस्य विगर्हयेत्"।
ग) क्रोधवशात् रावणः किं कर्तुम् उद्यतः अभवत्?
उत्तरम्- क्रोधवशात् रावणः वामेनाङ्केन वैदेहीं संपरिष्वज्य तलेन जटायुं शीघ्रम् हन्तुं उद्यतः अभवत्।

घ) पतगेश्वरः रावणस्य कीदृशं चापं सशरं बभञ्ज?
उत्तरम्- पतगेश्वरः रावणस्य मुक्तामणिविभूषितं चापं सशरं बभञ्ज।
ङ) हताश्वो हतसारथिः रावणः कुत्र अपतत्?
उत्तरम्- हताश्वो हतसारथिः रावणः भुवि अपतत्।
२. उदाहरणमनुसृत्य णिनि-प्रत्ययप्रयोगं कृत्वा पदानि रचयत-
यथा- गुण + णिनि - गुणिन्(गुणी)
दान + णिनि - दानिन्(दानी)
क) कवच + णिनि - कवचिन्
ख) शर + णिनि - शरिन्
ग) कुशल + णिनि - कुशलिन्
घ) धन + णिनि - धनिन्
ङ) दण्ड + णिनि - दण्डिन्
३. रावणस्य जटायोश्च विशेषणानि सम्मिलितरूपेण लिखितानि तानि पृथक्-पृथक कृत्वा लिखत-
रावणः - जटायुः
यथा- युवा - वृद्धः
सशरः - महाबलः
हताश्वः - पतगसत्तमः
भग्नधन्वा - महागृध्रः
क्रोधमूर्च्छितः - खगाधिपः
सरथः पतगेश्वरः
कवची
शरी
४. सन्धिं सन्धिविच्छेदं वा कुरुत-
यथा- च + आदाय - चादाय
क) हत + अश्वः - हताश्वः
ख) तुण्डेन + अस्य - तुण्डेनास्य
ग) बभञ्ज + अस्य - बभञ्जास्य
घ) अङ्केन + आदाय - अङ्केनादाय
ङ) खग + अधिपः - खगाधिपः

५. "क" स्तम्भे लिखितानां पदानां पर्यायाः "ख" स्तम्भे लिखिताः। तान यथासमक्षम योजयत-
"क" - "ख"
कवची - कवचधारी
आशु - शीघ्रम्
विरथः - रथविहीनः
पपात - अपतत्
भुवि - पृथिव्याम्
पतगसत्तमः - पक्षिश्रेष्ठः

६. अधोलिखितानां पदानां विलोमपदानि मञ्जूषायां दत्तेषु पदेषु चित्वा यथासमक्षं लिखत-
पदानि - विलोमशब्दाः
क) विलपन्ती - हसन्ती
ख) आर्य - अनार्य
ग) राक्षसेन्द्रेण - देवेन्द्रेण
घ) पापकर्मणा - पुण्यकर्मणा
ङ) क्षिप्रम् - मन्दम्
च) विगर्हयेत् - प्रशंसेत्
छ) वृद्धः - युवा
ज) आदाय - प्रदाय
झ) वामेन - दक्षिणेन
ञ) अतिक्रम्य - अनतिक्रम्य

सुभाषितम्(NOBLE THOUGHTS)

 अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः। चत्वारि तस्य बर्धन्ते आयुर्विद्यायशोबलम्॥(महर्षि मनुः)  अर्थ  -               प्रतिदिन नियमितरूपसे गुरु...