Wednesday, April 16, 2025

NCERT SANSKRIT BHASWATI CLASS -11 CHAPTER -7 संगीतानुरागी सुब्बण्णः

             

               

              सुब्बण्ण का संगीत में जो स्वाभाविकी इच्छा थी, वो एकदिन  राजभवन में होनेवाली  संगति से और अधिक दृढ हो गई। एक दिन  पुराणिकशास्त्री पुत्र के साथ राजभवन में आ कर वहाँ अन्तःपुर की स्त्रीयों के सम्मुख पुराण की कथा आरम्भ करते हुए पहले अपने पुत्र से शुक्लाम्वरधर आदि श्लोकों को गवाया। यह देखकर वहाँ उपस्थित सभी जन प्रसन्न हुए।   कुछ समय पश्चात् वहाँ आये हुए राजा पास  वैठ कर पुराण सुनते हैं। पिता के समीप बैठा हुआ सुब्बण्ण पुराणप्रवचन आग्रह पूर्वक सुनते हुए ही मध्य में महाराजा को भी आश्चर्य सहित देख रहा था। महाराजा के सुन्दर मुख, मुख पर विशाल तिलक धारण किए हुए, उसमे भी विशाल गाल का शोभा बढ़ाने वाला दाढ़ी और मूँछ आदि सब कुछ उसका विस्मय का कारण था। राजा भी उस बालक को दो तीन बार  देख कर यह बालक चतुर है - ऐसा  सोचा। और पुराण समाप्त होने पर है शास्त्री! यह बालक क्या आपका पुत्र है? ऐसा पूछा। हाँ, महाप्रभु, ऐसा  शास्त्री ने उत्तर दिया।  फिर से विस्मयपूर्वक राजा बालक को सम्बोधित करके है वत्स! क्या आप भी पिता के जैसे पुरणप्रवचन करोगे? ऐसे पूछा। तब वह बालक - मैं पुराण प्रवचन नहीं करता हूँ। संगीत गाता हूँ यह कहा। तब राजा वोले - निश्चय । तो फिर तब तक (हम)  एक संगीत सुनते हैं  ऐसा कहा। तत्पश्चात ही सुब्बण्ण श्रीराघव दशरथात्मज इत्यादि श्लोकों को संगीत में गा कर सुनाया। उसके अन्त में वो  पुनः कस्तूरीतिलक इत्यादि श्लोक भी मुझे स्मरण है ऐसा कहा। 

          महाराजा अत्यधिक सन्तुष्ट हुए। इस प्रकार आनन्दित होकर राजा पारितोषिक के रूप में बालक को पान सहित उत्तरीय वस्त्र देकर, हे बालक! तुम बुद्धिमान हो। उत्तम रूप से संगीत शिख कर अच्छी तरह गाने के लिए आप अभ्यास करो। इसे भी अधिक पारितोषिक हम आपको देंगे  - ऐसा बालक को कहकर और पुनः शास्त्री जी को उद्देश्य कर, हे शास्त्री जी! पुत्र चतुर है , उसका  शिक्षा अच्छे से कीजीए, प्रायः महाकुशल होंगे ऐसा कहा। इसके बाद शास्त्री और पुत्र अपने घर को लौट गए। 


                                 अभ्यासः

१. संस्कृतेन उत्तरं दीयताम् -

क)  सुब्बण्णस्य सहजाभिलाषः संगीते आसीत्।
ख)  पुराणिकशास्त्री पुत्रेण सह राजभवनम् अगच्छत्। 
ग)  पुराणिकशास्त्री स्वपुत्रेण शुक्लाम्बरधरमित्यादि श्लोकं गापयामास। 
घ)  पुराणप्रवचनं श्रृण्वन् सुब्बण्णः महाराजं सविस्मयं पश्यति स्म। 
ङ)  सुब्बण्णः पितृवत् पुराणप्रवचनं करिष्यति वा न इति महाराजस्य विस्मयकारणम् आसीत्।
च)  राजा बालं द्वित्रिवारम् अपश्यत्।
छ) राजा बालं अपृच्छदिदं यत् " अये वत्स! किं भवानपि पितृवत् पुराणप्रवचनं करिष्यति? '"
ज) स बालः - 'अहं पुराणप्रवचनं न करोमि। सङ्गीतं गायामिति राजानं व्याहरत्।
झ)  परितुष्टः राजा बालाय सताम्बूलमुत्तरीयवस्त्रं अयच्छत्। 
ञ) राज्ञः कथनानन्तरं शास्त्री तत्पुत्रः च ग्रामं प्रति अगच्छताम्। 

२.   
क)   सुब्बण्णस्य सङ्गीतेऽभिलाषः राजभवने संवृत्तया कया दृढीवभूव?
ख)   तच्छ्रुत्वा कुत्रत्याः सर्वे पर्यनन्दन्? 
ग)    समागतो कः पुराणम् आकर्णयति स्म? 
घ)   कः पितुः पार्श्वे महाराजं सविस्मयं पश्यति स्म?
ङ)   कस्य मुखे तिलकालङ्कारः आसीत्?
च)   राजा कस्मै सताम्बूलम् उत्तरीयवस्त्रम् अयच्छत्? 

३.  
        विशेषण                  विशेष्य 
        संवृत्तया                 सङ्गत्या 
        समागतः                  राजा
        सविस्मयं               महाराजम् 
        सुन्दरम्                    मुखम्
        विशालस्य                गण्डस्थलस्य
        कण्ठस्थः                 श्लोकः 
        शोभावहम्                श्मश्रुकूर्चम्
 ५.  
    क)   एकस्मिन् दिने पुराणिक शास्त्री पुत्रेण साकं राजभवनम् अगच्छत्। 
    ख)   पितुः पार्श्वे उपविष्टः सुब्बण्णः महाराजम् सविस्मयं पश्यति स्म। 
    ग)   राजा बालं संबोध्य पर्यपृच्छत्। 
    घ)   त्वं मेधावी असि। 
    ङ)   पारितोषिकं भवते वयं दास्यामः। 
६.
   १.  साकम्  -   सह -       भ्रात्रा साकं अहं वीपणीं गच्छामि। 
   २.   पार्श्वे -    समीपे  -   मम पार्श्वे माता उपविश्य दूरदर्शनं पश्यति। 
   ३.  तत्र -       तस्मिन्  -     तत्र उड्डीयमानान् खगान् दृष्टवा शिशुः अत्र उत्पतितुं प्रयासं करोति।
   ४.   सुष्ठु -    उत्तमरूपेण -   रघुवीरः सुष्ठु मन्त्रोच्चारणं कृत्वा प्रतिस्पर्धायां प्रथमं पुरस्कारंं प्राप्तवान्।
   ५.  सम्यक् -      कस्यचिदपि कार्यस्य प्रारम्भे तद् कार्यविषये सम्यग्ज्ञानं नीत्वा एव प्रारब्धं कुर्यात्। 
   ६.  पुनः -          ओडिशा प्रदेशस्य कोणार्क क्षेत्रस्य मनोरम चित्रकला मां  पुनः भ्रमणार्थं आकर्षयति। 


७.  विलोमपद 
    
   अत्रत्याः -  तत्रत्याः
   परागतः  -   समागतः
    दूरे   -   पार्श्वे
    उदतरत्   -   पर्यपृच्छत् 
    प्रारब्धे -   अन्ते
    कदा   -   तदा 
    मुर्खः  -   चतुरः 
    असन्तोषः  -   सन्तोषः
    अल्पम् -  अधिकम् 


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