( श्रीराम सिंहासन पर विराजमान हैं। फिर विदूषक द्वारा उपदेश दिए जाते हुए तपस्वी लव और कुश का प्रवेश। )
विदूषकः - आर्य इधर!
कुशलवौ - ( राम के पास जाकर और प्रणाम करते हुए ) क्या महाराज कुशलपूर्वक हैं?
रामः - आपके दर्शन से कुशल के समान हो गया हूँ। हम यहाँ क्या आप दोनों के कुशल प्रश्न के पात्र ही हैं, फिर क्या अतिथिजनों के लिए आवश्यक गले लगाने का पात्र हम नहीं हैं।( आलिङ्गन करके) अरे! हृदय को छूनेवाला स्पर्ष है। उभौ - निश्चित रूप से यह राजा का आसन है। यहाँ बैठना उचित नहीं है। रामः - रुकावट सहित चरित्र लोप के लिए नहीं है। इसलिए गोदि मात्र व्यवधानयुक्त सिंहासन पर बैठिये।
( गोदि में बिठाकर )
उभौ - ( इच्छा न होने का नाटक करते हुए) हे राजन्! इतनी उदारता मत दिखाइए अथवा अधिक कुशलता नहीं करें। रामः - अत्यधिक शालीनता(अथवा भद्रता) बंद करो। श्लोकः -
अत्यधिक गुणी लोगों को भी छोटी उम्र के कारण बालक को लाड़ प्यार करना चाहिए। चन्द्रमा बालभाव के कारण ही भगवान शङ्कर के मस्तक का आभूूषण बनकर केतकी पुष्पों से निर्मित चूड़ा के रूप में विराजमान होते हैं।
रामः - यह आप दोनों के सौन्दर्य से उत्पन्न जिज्ञासा के कारण पुछ रहा हूँ- क्षत्रीय वंशीय पितामह सूर्य अथव चाँद में से आपके वंश का कर्त्ता कौन है? लवः - भगवान सूर्य। रामः - कैसे एक कुल में पैदा होने वाले हो गए?
विदूषकः - क्या दोनों का एक ही उत्तर है?
लवः - हम दोनों सगे भाई हैं।
रामः - शरीर की बनावट एक जैसे है। और उम्र में भी कोई अन्तर नहीं है।
लवः - हम दोनों जुड़वाँ हैं।
रामः - अभी ठीक है। क्या नाम है?
लवः - आर्य का वन्दना में लव एसा अपने आप को सुनाता हूँ। ( कुश को निर्देश कर) आर्य भी गुरु के चरण सेवा में…………………
कुशः - मैं भी आपने आप को कुश ऐसा कहता हूँ।
रामः - अरे! शिष्टाचार बहुत ही सुन्दर है। आपके गुरु के क्या नाम है?
लवः - अवश्य ही भगवान वाल्मीकि।
रामः - किस सम्बन्ध से?
लवः - उपनयन की संस्कारदीक्षा के द्वारा।
रामः - मैं आपके पिता का नाम जानना चाहता हूँ।
लवः - मैं इनका नाम नहीं जानता हूँ। इस तपोवन में उनका नाम कोई नहीं लेता है।
रामः - इतनी उदारता। कुशः - मैं उनका नाम जानता हूँ। रामः - बताओ। कुशः - दया रहित नाम…. रामः - मित्र, निश्चित रूप से नाम अपूर्व है।
विदूषकः - (सोचकर) मैं पूछ रहा हूँ, दया रहित ऐसा कौन कहता है?
कुशः - माता।
विदूषकः - क्या गुस्से में वह ऐसा कहती है, अथवा स्वाभाविक रूप से?
कुशः - यदि हमारे लड़कपन के कारण किसी भी तरह के रूखा आचरण देखती है, तब इस प्रकार फटकारती है- क्रूर के पुत्रों, चंचलता मत करो।
विदूषकः - यदि इनके पिता का नाम क्रूर है और इनकी माता उनसे अपमानित है तथा घर से निकाल दिया गया हैै, इसलिए इसी वचन से पुत्रों को धमकाती है।
रामः - (मन में) एसे मुझ पर धिक्कार है। वह तपस्वी मेरे किए हुए अपराध के कारण अपनी संतान को इस प्रकार क्रोधपूर्ण अक्षरों से धमकाती है।
( आँसुओं सहित देखते हैं )
रामः - यह बहुत लम्बी और क्रूर प्रवास है। ( विदूषक को देखकर पास जा कर )
जिज्ञासा से युक्त मैं इनके माता को नाम से जानना चाहता हूँ। स्त्री के संबंध में टीका-टीप्पणी करना उचित नहीं,विशेषतः तपोवन में। तो यहाँ कौनसा उपाय है?
विदूषकः - ( पास जाकर ) मैं फिर से पुछता हूँ। क्या नाम है तुम्हारे माता का?
लवः - उनके दो नाम हैं।
विदूषकः - कैसे?
लवः - तपोवन निवासी देवी नाम से पुकारते हैं, भगवान वाल्मीकि वधू नाम से पुकारते हैं।
रामः - इधर आइए मित्र! थोड़ी देर के लिए।
विदूषकः - ( पास जाकर ) आप आदेश दीजिए।
रामः - इन दोनों कुमारों का और हमारे परिवार का वृत्तान्त एक जैसा हैै क्या ?
( परदे के पीछे )
इतना समय हो गया है रामायण गान का कार्य क्यों नहीं हुआ ?
उभौ - राजन्! गुरुजी का दूत हमको शीघ्रता कर रहा है।
रामः - मुझे भी मुनि के कार्य का सम्मान करना है।
श्लोकः - आप दोनों इस कथा का गान करने वाले हैं, तपोनिधि पुराण मुनि वाल्मीकि इस रचना के कवि हैं, धरती पर पहली बार अवतरित होनेवाला स्फुट वाणी का यह काव्य है और इसकी कथा कमलनाभि विष्णु से संबंध है और यह वो सेवकवृन्द निश्चय ही श्रोताओं को पवित्र और आनन्दित करने वाला है।
रामः - मित्र! यह मनुष्यों में सरस्वती का अपूर्व अवतार है, इसलिए मैं सुहृद लोगों में साधारण रूप से सुनना चाहता हूँ।
सभासदों को बुलाइए, लक्ष्मण को मेरे पास भेजिए, मैं भी इन दोनों के साथ बहुत समय तक बैठने के कारण हुई थकावट को विहार करके दूर करता हूँ।
( वह कहकर सभी निकल जाते हैं )
अभ्यासः
क) रामाय कुशलवयोः कण्ठाश्लेषस्य स्पर्शः कीदृशः आसीत्?
उत्तरम्- रामाय कुशलवयोः कण्ठाश्लेषस्य स्पर्शः हृदयग्राही आसीत्।
ख) रामः लवकुशौ कुत्र उपवेशयितुम् कथयति?
उत्तरम्- रामः लवकुशौ अर्धासने उपवेशयितुम् कथयति।
ग) बालभावात् हिमकरः कुत्र विराजते?
उत्तरम्- बालभावात् हिमकरः शङ्करस्य मस्तके विराजते।
घ) कुशलवयोः वंशस्य कर्त्ता कः?
उत्तरम्- कुशलवयोः वंशस्य कर्त्ता भवति भगवन् सूर्यः।
ङ) केन सम्बन्धेन वाल्मीकिः कुशलवयोः गुरुः आसीत्?
उत्तरम्- उपनयन-संस्कारदीक्षया सम्बन्धेन वाल्मीकिः कुशलवयोः गुरुः आसीत्।
च) कुुशलवयोः मातरं वाल्मीकिः केन नाम्ना आह्वयति?
उत्तरम्- कुशलवयोः मातरं वाल्मीकिः वधूः इति नाम्ना आह्वयति।
२. रेखाङ्कितेषु पदेषु विभक्तिं तत्कारणं च उदाहरणानुसारं निर्दिशत-
विभक्तिः तत्कारणम्
यथा - राजन्! अलम् अतिदाक्षिण्येन। तृतीया " अलम्" योगे
क) रामः लवकुशौ आसनार्धम् उपवेशयति। द्वितीया "उपवेशयति" योगे
ख) धिङ् माम् एवं भूतम्। द्वितीया " धिङ्" योगे
ग) अङ्कव्यवहितम् अध्यास्यतां सिंहासनम्। द्वितीया "अध्यास्यतां" योगे
घ) अलम् अतिविस्तरेण। तृतीया " अलम्" योगे
ङ) रामम् उपसृत्य प्रणम्य च। द्वितीया " उपसृत्य" योगे
३. यथानिर्देशम् उत्तरत -
क) " जानाम्यहं तस्य नामधेयम्" अस्मिन् वाक्ये कर्तृपदं किम्?
उत्तरम्- अस्मिन् वाक्ये "अहं " कर्तृपदम् अस्ति।
ख) " किं कुपिता एवं भणति उत प्रकृतिस्था" अस्मात् वाक्यात् " हर्षिता" इति पदस्य विपरीतार्थकपदं चित्वा लिखत।
उत्तरम्- अत्र "हर्षिता" इति पदस्य विपरीतार्थकपदं भवति "कुपिता"।
ग) विदूषकः ( उपसृत्य ) " आज्ञापयतु भवान्!" अत्र भवान् इति पदं कस्मै प्रयुक्तम्?
उत्तरम्- अत्र भवान् इति पदं श्रीरामाय प्रयुक्तम्।
घ) " तस्मादङ्क-व्यवहितम् अध्यास्याताम् सिंहासनम्" -अत्र क्रियापदं किम्?
उत्तरम्- अत्र क्रियापदं अध्यास्याताम् अस्ति।
ङ) " वयसस्तु न किञ्चदन्तरम्" - अत्र आयुषः इत्यर्थे किं पदं प्रयुक्तम्?
उत्तरम्- अत्र " आयुषः" इत्यर्थे वयसः इति पदं प्रयुक्तम्।
४. अधोलिखितानि वाक्यानि कः कं प्रति कथयति-
कः कम्
क) सव्यवधानं न चरित्रलोपाय। रामः लवकुुशौ
ख) किं कुपिता एवं भणति, उत प्रकृृतिस्था? विदूषकः कुशलवौ
ग) जानाम्यहं तस्य नामधेयम्। कुशः रामम्
घ) तस्याः द्वे नाम्नी। लवः विदूषकम्
ङ) वयस्य! अपूर्वं खलु नामधेयम्। रामः कुशं
५. मञ्जूषातः पर्यायद्वयं चित्वा पदानां समक्षं लिखत-
क) हिमकरः - शशिः , निशाकरः
ख) सम्प्रति - इदानीम्, अधुना
ग) समुदाचारः - शिष्टाचारः, सदाचारः
घ) पशुपतिः - शिवः, चन्द्रशेखरः
ङ) तनयः - सुतः, पुत्रः
च) सहस्रदीधितिः - सूर्यः, भानुः
६. अ)
पदानि प्रकृतिः प्रत्ययः
यथा- आसनम् - आस् + ल्युट् प्रत्ययः
क) युक्तम् - युज् + क्त प्रत्ययः
ख) भाजनम् - भाज् + ल्युट्
ग) शालीनता - शालीन् + तल्
घ) लालनीयः - लाल् + अनीयर्
ङ) छदत्वम् - छद् + त्व
च) संनिहितः - संनिधा + क्त
छ) सम्माननीया - सम्मान + अनीयर् + टाप्
आ) विशेषण-विशेष्यपदानि योजयत-
विशेषण पदानि - विशेष्य पदानि
यथा- श्लाघ्या - कथा
१) उदात्तरम्यः - क) समुदाचारः
२) अतिदीर्घः - घ) प्रवासः
३) समरूपः - ङ) कुटुम्बवृत्तान्तः
४) हृदयग्राही - ख) स्पर्शः
५) कुमारयोः - ग) कुशलवयोः
७. ( क) अधोलिखितपदेषु सन्धिं कुरुत-
क) द्वयोः + अपि - द्वयोरपि
ख) दौ + अपि - द्वावपि
ग) कः + अत्र - कोऽत्र
घ) अनभिज्ञः + अहम् - अनभिज्ञोऽहम्
ङ) इति + आत्मानम् - इत्यात्मानम्
(ख) अधोलिखितपदेषु विच्छदं कुरुत-
क) अहमप्येतयोः - अहम् + अपि + एतयोः
ख) वयोऽनुरोधात् - वयोः + अनुरोधात्
ग) समानाभिजनौ - समान + अभिजनौ
घ) खल्वेतत् - खलु + एतत्
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