किसीेे स्थानपर जीर्णधन नामक वणिजपुत्र रहता था। और वह धन के अभाव के कारण दूसरे देश या विदेश जाने की ईच्छा रख कर सोचा -श्लोकः - जिस देश में अथवा स्थान में अपने पराक्रम से भोग भोगे जाते हैं वहाँ जो धनहीन रहता है वह पुरुष नीच होता है॥
और उस के घर में लोहे से बनी हुई पूर्वजों के द्वारा खरीदि गई तराजू थी।और उसे किसी सेठ के घर में धरोहर के रूप में रखकर विदेश चला गया। फिर बहुत दिनों तक दूसरे देशों में अपनी ईच्छा से घूम कर दुबारा अपने नगर आकर उस सेठ को बोला-"हे सेठ! धरोहर के रूप में आपके द्वारा रखा गया उस तराजू को मुझे दीजिए।" वह बोला- " है महाशय! वह नहीं है, तुम्हारी तराजू चूहे खा गये"।
जीर्णधन बोला-"हे सेठ! अगर चूहों के द्वारा मेरी तराजू खा ली गई तो आपका दोष नहीं है। यह संसार ऐसा ही है। यहाँ कुछ भी शाश्वत(अर्थात लम्वे समय तक) नहीं है। परन्तु मैं नदी में स्नान के लिए जाऊँगा। तो तुम स्नान की सामग्री से युक्त हाथ वाले अपने इस धनदेव नामक बच्चे को मेरे साथ भेज दो"।
वह सेठ अपने पुत्र को बोला-"यह तुम्हारे चाचा, स्नान के लिए जा रहे हैं, तो तुम इनके साथ चले जाओ"।
फिर वह वणिक शिशु स्नान सामग्री लेकर खुशि मन से उस अतिथि के साथ चला गया। वैसा करने पर वह व्यापारी नहाकर उस शिशु को पर्वत की गुफ़ा में रखकर उस द्वार को बहुत बड़ी शिला से ढककर जल्द घर आ गया।
और उस वणिक द्वारा पुछागया- " हे अतिथि! बताओ मेरा बच्चा कहाँ है जो तुम्हारे साथ नदी को गया था"?
वह बोला- "बाज आपके शिशु को नदी के तट से उठाकर ले गया"। सेठ ने बोला- " झूठे! क्या कोई बाज बालक को उठाने में समर्थ हो सकता है? इसलिए मेरा बेटा मुझे दो नहीं तो राजकुल में निवेदन करुँगा।"
वह बोला - "अरे सत्यवादि! जैसे बाज़ बालक को नहीं ले जा सकता वैसे ही चूहे भी लोहे का तराजू नहीं खाते हैं। यदि आपना पुत्र चाहते हो तो मुझे मेरा तराजू वापस दो।"
इसी तरह झगड़ा करते हुए वो दोनों राजकुल के ओर गए। वहाँ सेठ जोर से बोला- " अरे! घोर अन्याय! घोर अन्याय! मेरा शिशु इस चोर के द्वारा चुरा लिया गया।"
फिर धर्माधिकारिओं ने बोला- " भोः! सेठ का पुत्र उसे दे दो"।
वह बोला - " क्या करता! मेरे देेखते हुए नदी के तट से बाज के द्वारा शिशुको उठा लिया गया"।
वह सुनकर वे बोले- आप से सच नहीं बोला गया है- क्या बाज बच्चे को उठाने में समर्थ हो सकता है?
वह बोला - अरे अरे! मेरी बात सुनो -
श्लोकः -
हे राजा! जहाँ लोहे से बने तराजू को चूहे खाते हैं, वहाँ बाज बालक को उठा ले जा सकता , इसमें कोई संदेह नहीं॥
वे बोले - "यह कैसे"।
फिर उस सेठ ने सबके सामने आरम्भ से सारी बातचित कह सुनाई। फिर वे हँसकर और उन दोनों को भी समझा बुझा कर परस्पर(अर्थात आपस)में तराजूू-शिशु प्रदान पूर्वक सन्तुष्ट कर दिया।
अभ्यासः
१. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत-
क) देशान्तरं गन्तुमिच्छन् वणिक्पुत्रः किं व्यचिन्तयत्?
उत्तरम्- देशान्तरं गन्तुमिच्छन् वणिक्पुत्रः व्यचिन्तयत् एतत्-" यस्मिन् देशे अथवा स्थाने स्वपराक्रमेण भोगाः भुक्ता तस्मिन् यः विभवहीनः वसेत् स पुरुषाधमः तिष्ठति।"
ख) स्वतुलां याचमानं जीर्णधनं श्रेष्ठी किम् अकथयत्?
उत्तरम्- स्वतुलां याचमानं जीर्णधनं श्रेष्ठी अकथयत्- "भोः! नास्ति सा, त्वदीया तुला मूषकैर्भक्षिता"।
ग) जीर्णधनः गिरिगुहाद्वारं कया आच्छाद्य गृहमागतः?
उत्तरम्- जीर्णधनः गिरिगुहाद्वारं बृहत् शिलया आच्छाद्य गृहमागतः।
घ) स्नानानन्तरं पुत्रविषये पृष्टः वणिक्पुत्रः श्रेष्ठिनं किम् उवाच?
उत्तरम्- स्नानानन्तरं पुत्रविषये पृष्टः वणिक्पुत्रः श्रेष्ठिनमुवाच- "नदी तटात् तव शिशुः श्येनेन हृतः"।
ङ) धर्माधिकारिभिः जीर्णधनश्रेष्ठिनौ कथं सन्तोषितौ?
उत्तरम्- धर्माधिकारिभिः विहस्य जीर्णधनश्रेष्ठिनौ परस्परं संबोध्य तुला-शिशु-प्रदानेन सन्तोषितौ।
२. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-
क) जीर्णधनः विभवक्षयात् देशान्तरं गन्तुमिच्छन् व्यचिन्तयत्।
उत्तरम्- कः विभवक्षयात् देशान्तरं गन्तुमिच्छन् व्यचिन्तयत्?
ख) श्रेष्ठिनः शिशुः स्नानोपकरणमादाय अभ्यागतेन सह प्रस्थितः। उत्तरम्- श्रेष्ठिनः शिशुः स्नानोपकरणमादाय केन सह प्रस्थितः? ग) श्रेष्ठी उच्चस्वरेण उवाच- भोः अब्रह्मण्यम् अब्रह्मण्यम्। उत्तरम्- श्रेष्ठी उच्चस्वरेण किं उवाच? घ) सभ्यैः तौ परस्परं संबोध्य तुला-शिशु-प्रदानेन सन्तोषितौ। उत्तरम्- सभ्यैः तौ परस्परं संबोध्य केन संतोषितौ?
३. अधोलिखितानां श्लोकानाम् अपूर्णोऽन्वयः प्रदत्तः पाठमाधृत्य तं पूरयत- क) यत्र देशे अथवा स्थाने स्ववीर्यतः भोगाः भुक्ता तस्मिन् विभवहीनः यः वसेत् स पुरुषाधमः। ख) राजन्! यत्र लौहसहस्रस्य तुलां मूषकाः खादन्ति तत्र श्येेनः बालकं हरेत् अत्र संशयः न।
४. तत्पदं रेखाङ्कितं कुरुत यत्र- क) ल्यप् प्रत्ययः नास्ति - लौहसहस्रस्य ख) यत्र द्वितीया विभक्तिः नास्ति - सत्वरम ग) यत्र षष्ठी विभक्तिः नास्ति - स्ववीर्यतः
५. सन्धिना/ सन्धिविच्छेदेन वा रिक्तस्थानानि पूरयत- क) श्रेष्ठ्याह - श्रेष्ठी + आह ख) द्वावपि - दौ + अपि ग) पुरुषोपार्जिता - पुरुष + उपार्जिता घ) यथेच्छया - यथा + इच्छया ङ) स्नानोपकरणम - स्नान + उपकरणम् च) स्नानार्थम - स्नान + अर्थम्
६. समस्तपदं विग्रहं वा लिखत-
विग्रहः समस्तपदम्
क) स्नानस्य उपकरणम् - स्नानोपकरणम्
ख) गिरेः गुहायाम् - गिरिगुहायाम्
ग) धर्मस्य अधिकारी - धर्माधिकारी
घ) विभवैः हीनाः - विभवहीनाः
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