Wednesday, August 28, 2024

NCERT SANSKRIT BHASHWATI CLASS -11 CHAPTER- 6 BHAVYAH SATYAGRAHASHRAMAH

 


१.   साबरमती नदी के तटपर सत्याग्रह आश्रम है। अपने अनुयायियों के साथ(मिलकर) महात्मा ने वहाँ सदन का स्थापना किया।

२.   यह सत्य प्रमाण है कि मन, वाक्य, काय तथा कर्म से(द्वारा) उस पवित्र निवासस्थान में वो आश्रम है, वह यथार्थ है।

३.   अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचारी, धन संचय न करने का स्वभाव, स्वदेशी वस्तुओं के प्रति निष्ठा भाव, भय रहित, रुचि-स्वाद पर नियन्त्रण रखना

४.   और हरिजनों का उद्धार - यह नौ व्रत  भारतवर्ष के विकाश के लिए आश्रम के महात्मा के हैं।

५.   निर्मम, सर्वदा सत्त्वगुण से युक्त, कम् भोजन करने वाला, स्मितमुख, उत्तम स्त्री युक्त, शिशुप्रेमी, आश्रमवासिओं के पिता स्वरूप हैं।

६.  अपने बन्धुओं के कष्ट को ध्यान कर उनके हित के लिए (उनके सम्मुख) उपस्थित होते हैं। जैसे बोधि वृक्ष के नीचे मुनिश्रेष्ठ बुद्ध विराजमान होते हैं।

७.   साक्षातरूप से ये सत्य का प्रदीप हैं। स्वबन्धुओं के हृदय से मोहजनित अन्धकार दूरकर शोभायमान होते हैं।

८.   सभी बलों से भी बलवान् सत्य है। क्योंकि सत्यरहित बलवान् व्यक्ति से बलहीन सत्यवान् जन अधिक कल्याणकारी होता है।

९. उस(सत्य)को जो प्रजा अथवा राज्यशासक धर्म के साथ आचरण करते हैं उनका विकाश होता है; किन्तु दूसरों का विनाश निश्चय है। 

१०.   यह 'गान्धीआख्याति' वहाँ स्थित अन्य अनुयायीजनों को सहवासिओं ने कहते थे।

    महात्मा कहते हैं  -

११.  अधर्म को देखकर भी जो समावस्था (/प्रतिबन्धु) नहीं चाहता है और जो सत्य में होते हुए भी  भय  के कारण (वह) प्रतिपादन योग्य नहीं  है।

१२.   और  स्वार्थ नष्ट होने के भय से जिस मिथ्या जीवनको वो रक्षा करते हैं, शक्तिहीन उन दोनों का जीवन  निष्फल है।

१४.  वो निश्चित रूप से भीरू है जो मन से पलायन किया गया हिंसा को करता है और स्वयं के मृत्यु के डर से  आत्महिंसा करता है। 

१५.  इसिलिए मेरे द्वारा सत्याग्रहाश्रम नाम दिया गया है। सत्यानुयायिओं से युक्त यह मेरे सज्जनों की वस्ती      है। 
१६.  सत्यादि धर्मों के अमोघ अद्भुत बल को वर्णन कर व्रतों  को अनेकों गुरुओं को ग्रहण करवाया। 
१७.  सत्यसार उस आश्रम में (दूसरों के द्वारा) अपराध किया जाने पर भी सभी दोषों को स्वीकार कर उपवासों से तपस्या  करता है। 
१८.  आश्रम से बाहर अन्यत्र लोगों के झगड़े में भी उसको स्वयं के ही कारण मान कर वो कलङ्क से पीडीत होता      है।  
१९.  सभी प्राणियों में  अपनी जैसे देखने वाले परवशीभूत गुणों के द्वारा इनके पदानुयायी हजारों में बढ़ गए।
२०.   सत्यादि  नौ व्रतों को   सर्वदा आचरण करेंगे - यह उत्साही जनों के द्वारा निश्चय किया गया। 

 अभ्यासः

१.प्रश्नानामुत्तराणि संस्कृतभाषया देयानि -

क)  अयं पाठः 'सत्याग्रहगीता' इति ग्रन्थात् सङ्कलितः।

ख) महात्मा ( गाँधी ) सत्याग्रहाश्रमं सबरमत्याः ( नद्याः ) तीरे स्थापयामास।                                                    ग)  निर्ममः नित्यसत्वस्थः मिताशी सुस्मिताननः सुकलत्रः शिशुप्रेमी तथा पिता इव आश्रमवासिनाम् कृते महात्मा आसीत्। 

घ)  अस्मिन् पाठे महात्मनः तुलना मुनिना बुद्धेन सह कृता।
ङ)  ये प्रजा वा राज्यशासकाः सत्यं धर्मेण चरन्ति, तेषां वृद्धिर्जायते।
च)  सत्याग्रहाश्रमः इति नाम महात्मना अनुयात्रिकै सह भारतस्य उत्कर्षसिद्ध्यर्थं दतम्।
छ) श्रीमती क्षमाराव अस्य पाठस्य रचयित्री। 
ज)  अहिंसा सत्यमस्तेयं व्रह्मचर्यापरिग्रहौ स्वदेशवस्तुनिष्ठा निर्भीतीः रुचिसंयमः अन्त्यजानां समुद्धारः इति महात्मनः एतानि नवानि व्रतानि आसन्। 
झ)   महात्मा अन्येषां दोषैः उपवासमकरोत्।
ञ) सर्वभूतानि आत्मवत् पश्यतः गान्धिनः गुणैः जनाः तस्य पदानुगाः जाताः।
२.
क)  अन्वयः - अहिंसा सत्यं अस्तेयं व्रह्मचर्य अपरिग्रहः स्वदेशवस्तुनिष्ठा निर्भीतीः रुचिसंयमः च। 
 श्लोकार्थः - अहिंसा, सत्य, चोरी न करना, व्रह्मचारी, धन संचय न करना , स्वदेशी वस्तुओं के प्रति निष्ठावान, भयरहित और स्वाद पर नियंत्रण। 
 ख)  अन्वयः - अयं साक्षात् सत्यप्रदीपः। स्वबन्धूनां हृदयात्  मोहजं तमः अपाकुर्वन् अखिलभारते दीप्यते। 
 श्लोकार्थः  -  ये साक्षात् रूप से सत्य के प्रदीप हैं। अपने बन्धूओं के हृदय से मोहजनित अन्धकार  दूर कर समग्र भारत में शोभा पाते हैं। 
 ग)  अन्वयः - यः अधर्मं अपि दृष्ट्वा प्रतिबन्धुं न वाञ्छति। यो च सत्ये सति अपि भीत्या तत् न प्रतिपद्यते। 
  श्लोकार्थः - जो अधर्म को भी देखकर समावस्था नहीं चाहता है। और  जो सच्चाई में रहते हुए भी भय के कारण उस(सत्य) को सम्मुखिन  नहीं  कर पाता है। 
३.  परिचयं दत -
   क)  समुद्धारः - सम् + उत् उपसर्ग धृ धातुः पुं. प्र. ए. व. 
ख)  प्रतिबन्धुं -  प्रति उपसर्ग बन्ध् धातुः तुमुन् प्रत्ययः 
ग)   समृद्धिः - सम् उपसर्गः ध् धातुः क्तिन् प्रत्ययः 
घ)   ध्यायन् - ध्यै धातुः शतृ प्रत्यय पुं. प्र. ए. व.
ङ)   दृष्ट्वा  -  दृश् धातुः क्त्वाच् प्रत्ययः (अव्ययः)
च)  समाश्रित्य - सम्+आ उपसर्गः श्रि धातुः ल्यप् प्रत्ययः
छ) दत्तम्   -  दा धातुः क्त प्रत्ययः पुं. ए. व.(कर्मवाच्ये विशेषणम्) 
ज) मत्वा  -  मन् धातुः क्त्वाच् प्रत्ययः (अव्ययः)
४.  सविग्रहं समासनाम लिखत -
  क) सत्याग्रहाश्रमम् - सत्याग्रहश्चासौ  आश्रश्चेति, तम्  - कर्मधारय समासः
 ख)  महात्मा - महान् च असौ आत्मा - कर्मधारय समासः
ग) व्रह्मचर्यापरिग्रहौ  -  व्रह्मचर्यश्च अपरिग्रहश्च -  द्वन्द्व समासः
 घ) सुकलत्रः - शोभनं कलत्रं यस्य सः - वहुव्रीहि समासः
 ङ) निष्फलम् - फलानां अभावः, तम् - अव्ययीभाव समासः
६.
   नवैतानि - नव + एतानि 
  मिताशी  - मित + आशी 
 मुनिर्बुद्धः - मुनिः + बुद्धः
  दीप्यतेऽखिलभारते  - दीप्यते + अखिलभारते
 सत्यपि - सति + अपि
 पितेव - पिता + इव
व्यवर्धन्त - वि + वर्धन्त 
सर्वदाप्याचरिष्यामः - सर्वदा + अपि +आचरिष्यामः




        

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