Saturday, June 1, 2024

NCERT, SANSKRIT SHEMUSHI CLASS --10 CHAPTER - 6 SOUHARDAM PRAKRITEH SHOBHA



                   (वन का दृश्य, पास में ही एक नदी भी बह रही है।) एक शेर सुखपूर्वक विश्राम कर रहा है तभी एक बन्दर आकर उसका पूंछ पकड़ कर घुमा देता है। क्रोधित शेर उसको मारना चाहता है परंतु बंदर छलांग मार कर पेड़ पर चढ़ जाता है। तभी दूसरे पेड़ से एक और बंदर आकर शेर के कान खींच कर फिर पेड़ पर चढ़ जाता है। इस प्रकार बंदरों ने शेर को तंग करते हैं। क्रोधित शेर इधर उधर दौड़ता है, गरजता है परंतु कुछ भी करने में असमर्थ ही रहता है। बंदर सब हंसते हैं और पेड़ पर स्थित अनेक पक्षियाँ भी शेर की ऐसी अवस्था देख कर हर्षमिश्रित चहचहाहट करते हैं। 

      नींद टूट जाने के दुःख से दुःखी होते हुए भी  तुच्छ जीवों से अपनी ऐसी बुरी दशा से थका हुआ वनराज सभी जन्तुओं को देखकर पुछता है -- 
 सिंहः   -- ( गुस्से से गरजते हुए)  अहो! मैं वनराज हूँ क्या तुम्हें डर नहीं लगता है? क्यों तुम सब मिल कर मुझे इस तरह तंग करते हो? 
एकः वानरः -- क्योंकि तुम वनराज  होने के लिए सर्वथा अयोग्य हो। राजा  तो रक्षक होता है परंतु आप तो भक्षक हैं।और अपनी रक्षा करने में भी आप असमर्थ हैं तो हमारी रक्षा कैसे करेंगे?
अन्यः वानरः --  क्या तुम ने पंचतंत्र के उक्ति नहीं सुना है -- 
     श्लोकः  -- जो सर्वदा विशेष रूप से डरे हुए पीड़ित जीवजन्तुओं को दूसरों से रक्षा नहीं करता है वह मनुष्यरूप में यमराज के समान है । इसमें कोई संदेह नहीं। 
काकः -- हाँ तुम ने सत्य कहा -- वास्तव में मैं ही वनराज बनने के लायक हूँ। 
पिंकः --  (मज़ाक  उड़ाते हुए)  तुम कैसे जंगल का राजा बन ने के लायक हो, जहाँ तहाँ का-का इस कटु ध्वनि से वातावरण को व्याकुल करते हो। न रूप है न ध्वनि है। काला रंग युक्त, शुद्ध और अशुद्ध भक्षण करने वाले तुम्हें हम कैसे वनराज मान लें? 
काकः  -- अरे! अरे! क्या बोल रहे हो? यदि मैं काले रंग का हूँ तो तुम क्या गोरे रंग की हो? और भी क्या भूल गए हो कि    मेरी सत्यप्रियता लोगों के लिए उदाहरण जैसी है-- 'झूठ बोलोगे तो कौवा काटेगा'। हमारे परिश्रम और एकता विश्वप्रसिद्ध है और भी कौए की तरह कोशिश करने वाला विद्यार्थी ही आदर्श छात्र माना जाता है। 

पिकः  -  डींगे मारना बन्द करो। क्या यह नहीं सुना कि -

       कौवा और कोयल दोनों काले होते हैं, दोनों में अन्तर कैसा? किन्तु वसन्त ऋतु आने पर कौवा  कौवा होता है और कोयल कोयल होती है।

काकः -- अरे दूसरों के द्वारा पाली गई! यदि मैं तुम्हारे सन्तानों को न पालुं, तो तुम कोयल कहाँ होते? इसलिए मैं ही पक्षिसम्राट कौवा हूँ।

गजः --  (पास आते हुए) अरे! अरे! सभी की वातचित सुनते हुए ही मैं यहाँ आया हूँ। मैं विशाल शरीरवाला, बलवान और पराक्रमी हूँ। चाहे शेर हो या अन्य कोई भी जीव। जंगली पशुओं को तंग करते हुए प्राणी को मैं अपनी शुण्ड से पटक पटक कर मारता हूँ। क्या और कोई भी ऐसा पराक्रमी है। इसलिए मैं ही वनराज पद के लिए योग्य हूँ।

वानरः - अरे! अरे! एसा है (शीघ्र ही हाथी का पुंछ खींचकर पेड़ पर चढ़ जाता है।)

(हाथी उस पेड़ को ही अपनी शुण्ड से उखाड़ना चाहता है किन्तु बंदर भी कूद कर दूसरे पेड़ पर चढ़ जाता है। इस प्रकार हाथी को एक पेड़ से दूसरे पेड़ की ओर दौड़ता देखकर सिंह भी हँसता है और कहता है।)

सिंहः -  अरे हाथी! मुझे भी इन बंदरों ने इस प्रकार तंग किया।

वानरः - इस कारण से ही कहता हूँ की मैं ही वनराजपद के लिए योग्य जिस्से वा जिसके द्वारा विशालकाय ,पराक्रमी और भयंकर होने पर भी सिंह अथवा हाथी को पराजित करने में हमारा जाति समर्थ है। इसलिए वन्यप्राणीओं के रक्षा के लिए हम ही योग्य अथवा सक्षम हैं।

      (यह सव सुनकर नदी से एक बगुला)

बकः  -  अरे! अरे! मुझे छोडकर ओर कोई मी राजा बनने के लिए योग्य या समर्थ है? मैं तो ठंडे पानी में अधिक समय तक बुद्धिमान जैसा(या स्थितप्रज्ञ सदृश) अविचल ध्यानमग्न रहकर सभी के रक्षा के लिए उपायें( तरिकाएँ) सोचुँगा, और योजना बना कर अपनी सभा में विभिन्नपदाधिकारी और  प्राणियों के साथ मिलकर रक्षाउपायों को क्रियान्वित करवाउँगा। इसलिए मैं ही वनराज पद प्राप्त करने के लिए योग्य हूँ।

मयूरः  -   (पेड के ऊपर से - ठहाका मारते हुए) आत्मप्रशंसा से दूर रहो दूर रहो (अथवा अपनी प्रशंसा मत करो) क्या तुम नहीं जानते कि -

      यदि राजा अच्छा  नेेता न हो तो प्रजा नाविकरहित नौका के समान यहाँ समुद्र में डूब जाती है। 

    तुम्हारे ध्यानावस्था को कौन नहीं जानता। स्थिर बुद्धि वाले की तरह स्थिर होकर  छलपूर्वक मछलियों को क्रुरता से खा जाते हो। तुम्हे धिक्कार है। तुम्हारे कारण से तो सम्पूर्ण पक्षियों के कुुल अपमानित हो गया है।

वानरः  - (गर्व सहित) इसलिए कह रहा हूँ कि मैं ही वनराजपद के योग्य हूँ। शीघ्र ही मेरे राज्याभिषेक के लिए सभी वन्यप्राणी तैयार हो जाओ।

मयूरः - अरे बंदर! चुप हो जाओ। तुम वनराज पद के योग्य कैैसे हो? देखो देखो मेरे सिर पर राजमुकुट सदृश शिखा को स्थापित कर विधाता ने मुझे पक्षिराज बना दिया। इसलिए वन में रहनेवाले मुझे वनराज के रूप में भी देखने के लिए वर्तमान तैयार हो जाओ। क्योंकि अन्य कोई भी विधाता के निर्णय(फैसले) को कैसे बदल सकता है।

काकः - (व्यङ्ग के साथ) अरे सर्प को खानेवाले! नृत्य के अतिरिक्त तुम्हारी और क्या विशेषता है कि हम सव तुम्हे वनराज पद के लिए योग्य मानलें?

मयूरः  -  क्योंकि मेरा नृत्य तो प्रकृति की आराधना है। देखो! देखो! मेरे पंखों का अनुपम सौन्दर्य को (पंखों को खोलकर नृत्य की मुद्रा में खडे होकर) तीनों लोकों में मेरे जैसा सुन्दर कोई भी नहीं है। वन्यप्राणियों के ऊपर आक्रमण करने वाले को तो में अपनी सौन्दर्य और नृत्य से आकर्षित कर जंगल से बहिष्कार (बाहर) कर दुंगी। इसलिए मैं ही वनराजपद के लिए योग्य हूँ।

(इसी समय ही बाघ और चिता भी नदी का जल पीने आए और इस विवाद(झगडे) को सुनकर बोलते हैं)

ब्याघ्रचित्रकौ - अरे क्या वनराजपद के लिए सुपात्र का चयन कर रहे हो?

   इस के लिए तो हम दोनों योग्य हैं। जिस किसी का भी सर्वसम्मति से आपसब चयन करो।

सिंहः - अरे चुप हो। तुम दोनों भी मेरे जैसे भक्षक हो रक्षक नहीं। यह जंगल के जीव भक्षक को रक्षक पद के योग्य नहीं मानते। इसलिए विचारविमर्श चल रहा है।

बकः  - शेर महोदय के द्वारा सम्पूर्ण रूप से ठीक कहा गया। वास्तव में शेर के द्वारा बहुत समयतक शासन किया गया। परन्तु अव तो कोई पक्षी ही राजा बनेगा यह निश्चित है। इसमें बिलकुल भी सन्देह की अवकाश(गुंजाइश) नहीं है।

 सभी पक्षी - (ऊँचे स्वर से) कोई पक्षी ही जंगल का राजा बनेगा(लेकिन कोई भी पक्षी अपने अतिरिक्त किसी ओर को इस पद के योग्य नहीं मानता तो निर्णय कैसे हो?) 

तब उन सब के द्वारा गहरी नींद में बेफिक्र  सोये हुए उल्लू को देखकर विचार किया  कि ये अपनी प्रशंसा से रहित पद को चाहने से रहित उल्लू ही हमारा राजा होगा। 
तो राज्याभिषेक से सम्बन्धित सारी सामग्री ले आओ ऐसी आदेश एक दूसरे को दे दिया। 
सभी पक्षी तैयारी के लिए जाना चाहते हैँ तभी अचानक  ही --

काकः  -  (अट्टहासपूर्ण स्वर सेे) - यह सर्वथा अनुचित है कि मयूर-हंस-कोयल-चटवा-तोता-सारस आदि उपस्थित प्रधान पक्षिओं से सभी इस दिवान्ध तथा भयङ्कर मुखवाले का अभिषेक के लिए तैयार(प्रस्तुत) हो रहे हैं। सारा दिन नींद में डुबा हुआ यह  हमको कैसे रक्षा करेगा( बचाएगा)।

 वास्तव में - 

    स्वभाव से क्रोधी, अत्यन्त उग्र, क्रूर, अप्रिय बोलनेवाले उल्लू को राजा बनाकर कौनसा सिद्धि प्राप्त  होगा।

               (तव प्रकृतिमाता प्रवेश करती है)

(स्नेहपूर्वक) हे प्राणियों! तुम सभी ही मेरे बच्चे हो। आपस में क्यों झगडा कर रहे हो। वास्तव में जंगल के सभी प्राणी एक दूसरे पर निर्भर हैं। सदैव(हमेशा) स्मरण रखो - 

    प्रदान करता है स्वीकार करता है, रहस्य कहता है पूछता है, खाता और खिलाता है - यह छह प्रकार स्नेह के लक्षण हैं।

      (सभी प्राणी एक स्वर से)

हे माता! आप बिलकुल ठीक कह रहे हैं परन्तु हम सव आपको नहीं जानते हैं। आपका परिचय क्या है?

प्रकृतिमाता - मैं प्रकृति तुम सबके माता  हूँ। तुम सव मेरे प्रिय हो। सवका ही मेरे लिए उचित समय पर महत्त्व है। झगडे से समय को बेकार मत जाने दो और भी तुम सब मिल कर  प्रसन्न हो जाओ एवं जीवन को रसमय बनाओ। जैसे कि कहा गया है - 

       प्रजा के सुख में राजा का सुख होता है और प्रजाओं के हित में राजा का हित है। आत्मप्रियता में राजा का हित नहीं है, प्रजा की प्रियता ही राजा का हित है॥

और भी -

   अत्यधिक जलधारा में संचरण करने वाला रोहित (रोहू) नामक बडी मछली घमंड(गर्व) नहीं करता है। परन्तु अंगुठे के बराबर जल में(अर्थात् थोडे से जल में) छोटी मछली उछलति रहती है।

   इसलिए आपसब भी छोटी मछली के समान परस्पर का गुण का चर्चा(आलोचना ) छोड कर, मिलकर प्रकृति की सौन्दर्य के लिए और वन की रक्षा के लिए प्रयत्न(प्रचेष्टा) कीजीए।

सब प्रकृतिमाता को प्रणाम करते हैैं और मिलकर दृढसंकल्पपूर्वक गाते हैं - 

 आपस(एक दूसरे) में झगडनेसे प्राणियों की हानि (क्षति) होती है। परस्पर के सहयोग से उनका लाभ उत्पन्न होता है॥


 अभ्यासः 


१.    अधोलिखित प्रश्नानामुत्तराणि एकपदेन लिखत -

  क)      

 उत्तरम् -  तुच्छजीवैः 

   ख)

उत्तरम् - काकः 

  ग) 

 उत्तरम् -  आदर्शः 

   घ)

 उत्तरम् - गजः  

ङ)

 उत्तरम् -  वराकान् 

   च)

 उत्तरम् -  पिच्छान् उद्घाट्य 

   छ) 

 उत्तरम् -  उलूकस्य 

   ज)

 उत्तरम् -  दश  

२.  अधोलिखितप्रश्नानामुत्तराणि पूर्णवाक्येन लिखत -  

 क)  

उत्तरम् -      निःसंशयं सिंहः कृतान्तः मन्यते।

ख) 

 उत्तरम् -   बकः वन्यजन्तूूनां रक्षोपायान् शीतले जले बहुकालपर्यन्तं अविचलः ध्यानमग्नः स्थितप्रज्ञ इव स्थित्वा चिन्तयितुं कथयति।

ग) 

 उत्तरम् -  अन्ते प्रकृतिमाता प्रविश्य सर्वप्रथममिदं वदति यत्, भोः प्राणिनः! यूयं सर्वे एव मे सन्ततिः।

घ)  

उत्तरम् -   यदि राजा सम्यक् न भवति तदा प्रजा अकर्णधारा नौः इव जलधौ विप्लवेत्।

३. रेखाङ्कितपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत  -

क)  सिंहः वानराभ्यां कस्याम् असमर्थः एव आसीत्?

ख) गजः वन्यपशून् तुदन्तं केन पोथयित्वा मारयति?

ग)  वानरः आत्मानं कस्मै योग्यः मन्यते?

घ)  मयूरस्य नृत्यं कस्याः आराधना?

ङ)  सर्वे काम् प्रणमन्ति?

४.  शुद्धकथनानां समक्षम्   "आम्" अशुद्धकथनानां  च समक्षं "न" इति लिखत  -

   क)  न

   ख)   न

   ग)  आम्

   घ)   न

   ङ)   आम्

   च)   आम्

५. 

  क)   काकः मेध्यामेध्यभक्षकः भवति।

   ख)  पिकः परभृत् अपि कथ्यते।

   ग)  बकः अविचलः स्थितप्रज्ञ इव तिष्ठति।

   घ)   मयूरः अहिभुक् इति नाम्नाऽपि ज्ञायते।

   ङ)   सर्वेषामेव महत्त्वं विद्यते यथासमयम्।

६. 

   क)   गजः

   ख)   काकः

  ग)  मयूरः

   घ)   वानरः

    ङ)   सिंहः

   च)   रोहितः

    छ)   प्रकृतिमाता

   ज)    उलूकः

७.

  क)  त्वं सत्यं अकथयः।

   ख)   सिंहेन सर्वजन्तवः पृष्टाः।

   ग)    काकेन पिकस्य सन्ततिः पालयते।

घ)   मयूरं विधाता एव पक्षिराजं वनराजं वा कृतवान्।

ङ)   सर्वे खगाः कमपि खगं वनराजं कर्तुमिच्छन्ति स्म।

च)   सर्वैः मिलित्वा प्रकृतिसौन्दर्याय प्रयत्नः कर्तव्यः।

८.   क)   तुच्छजीवैः -  तुच्छैः जीवैः।
       ख)   वृक्षोपरि    -  वृक्षस्य उपरि। 
       ग)    पक्षीणां सम्राट्  -  पक्षिसम्राट्। 
       घ)    स्थिता प्रज्ञा यस्य सः  -  स्थितप्रज्ञः।
       ङ)    अपूर्वम्  -  न पूर्वम् ।
       च)    व्याघ्रचित्रका -  व्याघ्रः च चित्रकः च।
९. 
क)    क्रुध् + क्त  -  क्रुद्धः 
ख)  आकृष्य  -   आ + कृष् + ल्यप् 
ग)   सत्यप्रियता -  सत्यप्रिय + तल्  +टाप् 
घ)   पराक्रमी -  पराक्रम + णिनि
ङ)   कूर्द् + क्तवा   -   कूर्दित्वा
च)  श्रृण्वन् -  श्रृ + शतृन् 

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