Monday, May 10, 2021

NCERT SANSKRIT: SHEMUSHI CLASS -10 CHAPTER -1 SHUCHIPARYAVARANAM

हिन्दी अनुवाद -


              महानगरों में जीवन कठिन हो गया है व प्रकृति ही हमारा सहारा है। शुद्ध पर्यावरण चाहिए॥ महानगरों के बीच में दिन-रात चलता हुआ लोहे का पहिया मन को सुखाता हुआ और तन को पीसता हुआ हमेशा टेढ़ा रूप धारण करती है॥ इसके भयानक दाँतों से कहीं मानव जाति का विनाश न हो जाए। शुद्ध पर्यावरण चाहिए॥१॥

सैकड़ों मोटर गाड़ियाँ काजल- सा मैला धुआँ छोड़ती हैं। रेलगाड़ी की पंक्ति आवाज़ करती हुई दौड़ती हैं॥ क्योंकि वाहनों का पंक्ति असंख्य है, इसिलिए चलना मुश्किल हो जाता है। पर्यावरण को शुद्ध करना होगा॥२॥


वायुमण्डल अत्यधिक मैला हो गया है, साफ जल भी नहीं है। खाद्यपदार्थ निन्दनीयवस्तु से मिला हुआ है, धरती गन्दगी से युक्त है॥ संसार में बाहर और अन्दर बहुत साफ करना चाहिए। शुद्ध पर्यावरण चाहिए॥३॥

मुझे कुछ समय इस नगर से बहुत दूर ले चलो। गाँव की सीमा पर झरणा-नदी-जल से भरा हुआ तालाब देखुँ॥ निर्जन वन में मेरा थोड़ी देर के लिए भी विचरण होना चाहिए। शुद्ध पर्यावरण चाहिए॥४॥

हरेभरे पेड़ों कि तथा सुंदर लताओं कि पंक्ति शोभनीय है। हवा से चलायी हुई फूलों की पंक्ति मेरे लिए वरण करने योग्य है॥ आम के साथ मिली हुई सुंदर चमेली का सुंदर मेल हो। शुद्ध पर्यावरण चाहिए॥५॥

अरे मित्र! पक्षियों के समूह की सुंदर ध्वनि से गुंजते हुए वन प्रदेश की ओर चलो। जिसने नगर के शोर से त्रस्त लोगों के लिए शुभ समाचार धारण किया है॥ चकाचौंधभरि दुनिया जीवन के सार का विनाश न करदें॥६॥

पत्थरों के तल पर लता,वृक्ष और झाड़ी न पिसजाएँ। पत्थरीली सभ्यता प्रकृति में न समाजाए॥ मैं मनुष्य के जीवन के लिए कामना करता हूँ, मनुष्य के मृत्यु नहीं; कवि युँ कहते हैं॥७॥

                                 अभ्यासः

१. अधोलिखितानां प्रश्नानाम उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत -
क) कविः किमर्थं प्रकृतेः शरणमिच्छति?
उत्तरम्- महानगरे जीवनं कठिनं जातम्। एतदर्थं कविः प्रकृतेः शरणमिच्छति।                                                    ख) कस्मात् कारणात् महानगरेषु संसरणं कठिनं वर्तते?                                                                             उत्तरम - यानानां पङ्क्तयः ही अनन्ताः। अस्मात् कारणात् महानगरेषु संसरणं कठिनं वर्तते।                             ग) अस्माकं पर्यावरणे किं किं दूषितमस्ति?                                                                                            उत्तरम - अस्माकं पर्यावरणे वायुमण्डलं जलं भक्षं धरातलञ्च दूषितमस्ति।                                                      घ) कविः कुत्र सञ्चरणं कर्तुमिच्छति?                                                                                                      उत्तरम - कविः एकान्ते वने सञ्चरणं कर्तुमिच्छति।                                                                                      ङ) स्वस्थजीवनाय कीदृशे वातावरणे भ्रमणीयम्?                                                                                              उत्तरम - स्वस्थजीवनाय खगकुलकलरव गुञ्जितवनदेशयुक्त वातवरणे भ्रमणीयम्।                                      च) अन्तिम पद्यांशे कवेः का कामना अस्ति?उत्तरम - अन्तिमे पद्यांशे कविः मानवाय जीवनं कामये।

२. सन्धिं सन्धिविच्छेदं वा कुरुत-
क) प्रकृतिः + एव - प्रकृतिरेव
ख) स्यात् + न + एव - स्यान्नैव
ग) हि + अनन्ताः - ह्यनन्ताः
घ) बहिः + अन्तः +जगति - बहिरन्तर्जगति
ङ) अस्मात् + नगरात् - अस्मान्नगरात्
च) सम् + चरणम् - सञ्चरणम्
छ) धूमम् + मुञ्चति - धूमं मुञ्चति
३. अधोलिखितानां अव्ययानां सहायतया रिक्तस्थानानि पूरयत-
क) इदानीं वायुमण्डलं भृशं प्रदूषितमस्ति।
ख) अत्र जीवनं दुर्वहमस्ति ।
ग) प्राकृतिक-वातावरणे क्षणं सञ्चरणम् अपि लाभदायकं भवति ।
घ) पर्यावरणस्य संरक्षणम् एव प्रकृतेः आराधना।
ङ) सदा समयस्य सदुपयोगः करणीयः।
च) भूकम्पित-समये बहिः गमनमेव उचितं भवति।
छ) यत्र हरीतिमा तत्र शुचि पर्यावरणम्।
४. उदाहरणमनुसृत्य अधोलिखित-पदेषु प्रकृतिप्रत्ययविभागं संयोगं वा कुरुत-
यथा- जातम् - जन् + क्त
क) प्र + कृ + क्तिन् - प्रकृति
ख) नि + सृ + क्त + टाप् - निसृता
ग) दूष् + क्त - दूषितम्
घ) कृ + अनीयर् - करणीयम्
च) भक्ष् + यत् - भक्ष्यम्
छ) रम + अनीयर् + टाप् - रमणीया
ज) वृ + अनीयर् + टाप् - वरणीया
झ) पिष् + क्त - पिष्टाः

५. अ) अधोलिखितानां पदानां पर्यायपदं लिखत-

  क) सलिलम      -       जलम्
  ख) आम्रम        -        रसालम्
  ग) वनम         -        कान्तारम्
  घ) शरीरम      -        तनुः
  ङ) कुटिलम     -        वक्रम्
  च) पाषाणः     -        प्रस्तरः

आ) अधोलिखितपदानां विलोमपदानि पाठात चित्वा लिखत-

क) सुकरम् - दुष्करम्
ख) दूषितम् - शुद्धम्
ग) गृहणन्ती - वितरन्ती
घ) निर्मलम् - समलम्
ङ) दानवाय - मानवाय

६. उदाहरणमनुसृत्य पाठात् चित्वा च समस्तपदानि समस्तनाम च लिखत-
यथा- विग्रह पदानि समस्तपद समासनाम
क) मलेन सहितम् समलम् अव्ययीभाव
ख) हरिताः च ये तरवः (तेषां) हरिततरूणाम् तत्पुरष
ग) ललिताः च याः लताः (तासाम्) ललितलतानाम् तत्पुरुष
घ) नवा मालिका नवमालिका अव्ययीभाव
ङ) धृतः सुखसन्देशः येन (तम्) धृतसुखसन्देशम् बहुव्रीहि
च) कज्जलम् इव मलिनम् कज्जलमलिनम् तत्पुरुष
छ) दुर्दान्तैः दशनैः दुर्दान्तदशनैः बहुव्रीहि
७. रेखाङ्कित-पदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-
क) शकटीयानम् कज्जलमलिनं धूमं मुञ्चति।
प्रश्नम् - शकटीयानम् कीदृशं धूमं मुञ्चति?
ख) उद्याने पक्षीणां कलरवं चेतः प्रसादयति।
प्रश्नम - उद्याने केषां कलरवं चेतः प्रसादयति?
ग) पाषाणीसभ्यतायां लतातरुगुल्माः प्रस्तरतले पिष्टाः सन्ति।
प्रश्नम - पाषाणीसभ्यतायां के प्रस्तरतले पिष्टाः सन्ति?
घ) महानगरेषु वाहानानां अनन्ताः पङ्क्तयः धावन्ति।
प्रश्नम - कुत्र वाहानानां अनन्ताः पङ्कतयः धावन्ति?
ङ) प्रकृत्याः सन्निधौ वास्तविकं सुखं विद्यते।
प्रश्नम - कस्याः सन्निधौ वास्तविकं सुखं विद्यते?

Sunday, May 9, 2021

NCERT SANSKRIT SHEMUSHI CLASS-9 CHAPTER-6 LOUHTULA

         


               किसीेे स्थानपर जीर्णधन नामक वणिजपुत्र रहता था। और वह धन के अभाव के कारण दूसरे देश या विदेश जाने की ईच्छा रख कर सोचा -श्लोकः - जिस देश में अथवा स्थान में अपने पराक्रम से भोग भोगे जाते हैं वहाँ जो धनहीन रहता है वह पुरुष नीच होता है॥

और उस के घर में लोहे से बनी हुई पूर्वजों के द्वारा खरीदि गई तराजू थी।और उसे किसी सेठ के घर में धरोहर के रूप में रखकर विदेश चला गया। फिर बहुत दिनों तक दूसरे देशों में अपनी ईच्छा से घूम कर दुबारा अपने नगर आकर उस सेठ को बोला-"हे सेठ! धरोहर के रूप में आपके द्वारा रखा गया उस तराजू को मुझे दीजिए।" वह बोला- " है महाशय! वह नहीं है, तुम्हारी तराजू चूहे खा गये"।

जीर्णधन बोला-"हे सेठ! अगर चूहों के द्वारा मेरी तराजू खा ली गई तो आपका दोष नहीं है। यह संसार ऐसा ही है। यहाँ कुछ भी शाश्वत(अर्थात लम्वे समय तक) नहीं है। परन्तु मैं नदी में स्नान के लिए जाऊँगा। तो तुम स्नान की सामग्री से युक्त हाथ वाले अपने इस धनदेव नामक बच्चे को मेरे साथ भेज दो"।

वह सेठ अपने पुत्र को बोला-"यह तुम्हारे चाचा, स्नान के लिए जा रहे हैं, तो तुम इनके साथ चले जाओ"।
फिर वह वणिक शिशु स्नान सामग्री लेकर खुशि मन से उस अतिथि के साथ चला गया। वैसा करने पर वह व्यापारी नहाकर उस शिशु को पर्वत की गुफ़ा में रखकर उस द्वार को बहुत बड़ी शिला से ढककर जल्द घर आ गया।
और उस वणिक द्वारा पुछागया- " हे अतिथि! बताओ मेरा बच्चा कहाँ है जो तुम्हारे साथ नदी को गया था"?
वह बोला- "बाज आपके शिशु को नदी के तट से उठाकर ले गया"। सेठ ने बोला- " झूठे! क्या कोई बाज बालक को उठाने में समर्थ हो सकता है? इसलिए मेरा बेटा मुझे दो नहीं तो राजकुल में निवेदन करुँगा।"
वह बोला - "अरे सत्यवादि! जैसे बाज़ बालक को नहीं ले जा सकता वैसे ही चूहे भी लोहे का तराजू नहीं खाते हैं। यदि आपना पुत्र चाहते हो तो मुझे मेरा तराजू वापस दो।"

इसी तरह झगड़ा करते हुए वो दोनों राजकुल के ओर गए। वहाँ सेठ जोर से बोला- " अरे! घोर अन्याय! घोर अन्याय! मेरा शिशु इस चोर के द्वारा चुरा लिया गया।"
फिर धर्माधिकारिओं ने बोला- " भोः! सेठ का पुत्र उसे दे दो"।
वह बोला - " क्या करता! मेरे देेखते हुए नदी के तट से बाज के द्वारा शिशुको उठा लिया गया"।
वह सुनकर वे बोले- आप से सच नहीं बोला गया है- क्या बाज बच्चे को उठाने में समर्थ हो सकता है?
वह बोला - अरे अरे! मेरी बात सुनो -

श्लोकः -

हे राजा! जहाँ लोहे से बने तराजू को चूहे खाते हैं, वहाँ बाज बालक को उठा ले जा सकता , इसमें कोई संदेह नहीं॥
वे बोले - "यह कैसे"।
फिर उस सेठ ने सबके सामने आरम्भ से सारी बातचित कह सुनाई। फिर वे हँसकर और उन दोनों को भी समझा बुझा कर परस्पर(अर्थात आपस)में तराजूू-शिशु प्रदान पूर्वक सन्तुष्ट कर दिया।


अभ्यासः


१. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत-
क) देशान्तरं गन्तुमिच्छन् वणिक्पुत्रः किं व्यचिन्तयत्?
उत्तरम्- देशान्तरं गन्तुमिच्छन् वणिक्पुत्रः व्यचिन्तयत् एतत्-" यस्मिन् देशे अथवा स्थाने स्वपराक्रमेण भोगाः भुक्ता तस्मिन् यः विभवहीनः वसेत् स पुरुषाधमः तिष्ठति।"
ख) स्वतुलां याचमानं जीर्णधनं श्रेष्ठी किम् अकथयत्?
उत्तरम्- स्वतुलां याचमानं जीर्णधनं श्रेष्ठी अकथयत्- "भोः! नास्ति सा, त्वदीया तुला मूषकैर्भक्षिता"।
ग) जीर्णधनः गिरिगुहाद्वारं कया आच्छाद्य गृहमागतः?
उत्तरम्- जीर्णधनः गिरिगुहाद्वारं बृहत् शिलया आच्छाद्य गृहमागतः।
घ) स्नानानन्तरं पुत्रविषये पृष्टः वणिक्पुत्रः श्रेष्ठिनं किम् उवाच?
उत्तरम्- स्नानानन्तरं पुत्रविषये पृष्टः वणिक्पुत्रः श्रेष्ठिनमुवाच- "नदी तटात् तव शिशुः श्येनेन हृतः"।
ङ) धर्माधिकारिभिः जीर्णधनश्रेष्ठिनौ कथं सन्तोषितौ?
उत्तरम्- धर्माधिकारिभिः विहस्य जीर्णधनश्रेष्ठिनौ परस्परं संबोध्य तुला-शिशु-प्रदानेन सन्तोषितौ।


२. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-
क) जीर्णधनः विभवक्षयात् देशान्तरं गन्तुमिच्छन् व्यचिन्तयत्।
उत्तरम्- कः विभवक्षयात् देशान्तरं गन्तुमिच्छन् व्यचिन्तयत्?
ख) श्रेष्ठिनः शिशुः स्नानोपकरणमादाय अभ्यागतेन सह प्रस्थितः। उत्तरम्- श्रेष्ठिनः शिशुः स्नानोपकरणमादाय केन सह प्रस्थितः? ग) श्रेष्ठी उच्चस्वरेण उवाच- भोः अब्रह्मण्यम् अब्रह्मण्यम्। उत्तरम्- श्रेष्ठी उच्चस्वरेण किं उवाच? घ) सभ्यैः तौ परस्परं संबोध्य तुला-शिशु-प्रदानेन सन्तोषितौ। उत्तरम्- सभ्यैः तौ परस्परं संबोध्य केन संतोषितौ?

३. अधोलिखितानां श्लोकानाम् अपूर्णोऽन्वयः प्रदत्तः पाठमाधृत्य तं पूरयत- क) यत्र देशे अथवा स्थाने स्ववीर्यतः भोगाः भुक्ता तस्मिन् विभवहीनः यः वसेत् स पुरुषाधमः। ख) राजन्! यत्र लौहसहस्रस्य तुलां मूषकाः खादन्ति तत्र श्येेनः बालकं हरेत् अत्र संशयः न।

४. तत्पदं रेखाङ्कितं कुरुत यत्र- क) ल्यप् प्रत्ययः नास्ति - लौहसहस्रस्य ख) यत्र द्वितीया विभक्तिः नास्ति - सत्वरम ग) यत्र षष्ठी विभक्तिः नास्ति - स्ववीर्यतः

५. सन्धिना/ सन्धिविच्छेदेन वा रिक्तस्थानानि पूरयत- क) श्रेष्ठ्याह - श्रेष्ठी + आह ख) द्वावपि - दौ + अपि ग) पुरुषोपार्जिता - पुरुष + उपार्जिता घ) यथेच्छया - यथा + इच्छया ङ) स्नानोपकरणम - स्नान + उपकरणम् च) स्नानार्थम - स्नान + अर्थम्

६. समस्तपदं विग्रहं वा लिखत-
विग्रहः समस्तपदम्
क) स्नानस्य उपकरणम् - स्नानोपकरणम्
ख) गिरेः गुहायाम् - गिरिगुहायाम्
ग) धर्मस्य अधिकारी - धर्माधिकारी
घ) विभवैः हीनाः - विभवहीनाः

Saturday, May 8, 2021

NCERT, SANSKRIT SHEMUSHI CLASS-9 CHAPTER-9 PARYAVARANAM


                              प्रकृति सभी प्राणियों की संरक्षण के लिए प्रयत्न करती है। यह प्रकृति सभी का भिन्न प्रकार से पोषण करती है, और सुखसाधनों से सन्तुष्ट करती है। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश प्रकृति की प्रमुख तत्व हैं। वह सब ही मिलकर अथवा अलग से हमारे पर्यावरण की रचना करते हैं। संसार चारों ओर से प्रकृति के द्वारा अच्छी तरह ढका होना ही पर्यावरण है। जैसे अजन्मा शिशु माँ के गर्भ में सुरक्षित रहता है, वैसे ही मानव प्रकृतिके गर्म में सुरक्षित रहते हैं। साफ और प्रदूषण रहित पर्यावरण हमको  सांसारिक जीवनसुख, सद्विचार, सत्यसङ्कल्प और माङ्गलिक सामग्री प्रदान करता है। प्रकृति के क्रोध से आतङ्कित मनुष्य क्या करसकता है? बाढ़ से, अग्निभय से, भूकम्प से, आँधी से और उल्का गिरना आदि से संतप्त मानव का मङ्गल कहाँ?
अतएव हमें प्रकृति की रक्षा करनी चाहिए। उस्से पर्यावरण सुरक्षित होगा। प्राचीनकाल में जनता के मङ्गल चाहने वाले ऋषि वन में रहते थे। जिसके कारण वन में ही सुरक्षित पर्यावरण प्राप्त होती थी। अनेक प्रकार के पक्षियों के चहचहाहट कानों को अच्छा लगता था।

नदी, पर्वत और झरना अमृत जैसी मीठी निर्मल जल प्रदान करते हैं। पेड़ और पौधे फल, पुष्प और इन्धन के लिए लकड़ियाँ बहु मात्रा में उपहार देते हैं। वन के शीतल, धीर तथा सुगन्धित पवन औषध जैसा प्राणवायु बाँटते हैं।

परन्तु स्वार्थ में अन्धा मनुष्य उसी पर्यावरण का आज नाश करता है। थोड़े से लाभ के लिए लोग बहुमूल्य वस्तुओं को नाश कर देते हैं। कारखानों का प्रदूषित जल नदियों में गिरते हैं जिस्से मच्छलियों और जलचर प्राणियोंका पलभर में ही नाश हो जाता है।नदी का वह जल भी सर्वथा पीने योग्य नहीं रहता। व्यापार के वृद्धि के लिए निर्विवेक वन के पेड़ों को काटा जाता है जिस्से अनावृष्टि(अकाल पड़ना) बढ़ रहा है, और वन के पशु शरण रहित होकर गाँवों में उत्पात मचाते हैं। वृक्षों को काटने से शुद्ध वायु भी संकट में आ जाती हैै। और भी स्वार्थान्ध मनुष्यों के द्वारा विकार( अथवा परिवर्तन ) को प्राप्त हो कर प्रकृति ही उनका विनाशकारी हो जाती है।पर्यावरण का हानि होने से अनेक रोग और भीषण समस्या उत्पन्न होते हैं। वह सब अभी चिन्ता का विषय है।

     रक्षित किया हुआ धर्म ही हमारी रक्षा करता है, ऐसा ऋषियों का मानना है। पर्यावरण का रक्षा भी धर्म का एक अङ्ग है- यह ऋषियों ने प्रतिपादित किया था। तब ही वापी, कूप, तड़ाग आदि का निर्माण और मन्दिर, विश्रामगृह आदि का स्थापना धर्मसिद्धि के साधन के रूप में माने गये हैं। कुत्ता, सुअर, साँप, नेवला आदि स्थलचरों की और मच्छली, कछुआ, मगरमछ प्रभृति जलचरों की भी रक्षा करनी चाहिए। क्योंकि वो सव स्थल और जल की गन्दगी को दूर करते हैं। प्रकृति की रक्षा करने से ही लोगों की रक्षा करना संभव है इसमें कोई संदेह नहीं।

                                                     अभ्यासः

१.   अधोलिखितानां प्रश्नानामुत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत-

      क)  प्रकृतेः प्रमुखतत्वानि कानि सन्ति?

 उत्तरम्-  पृृथ्वी,जलं, तेजो, वायुः आकाशश्च प्रकृतेः प्रमुखतत्त्वानि सन्ति।

ख)   स्वार्थान्धः मानवः किं करोति?

  उत्तरम्-  स्वार्थान्धः मानवः अद्य पर्यावरणम् नाशयति।

ग)  पर्यावरणे विकृते जाते किं भवति?

   उत्तरम्-  पर्यावरणे विकृति जाते विविधा रोगा भीषणसमस्याश्च  जायन्ते।

घ )   अस्माभिः पर्यावरणस्य रक्षा कथं करणीया?

 उत्तरम्-   प्रकृतिरक्षया एव पर्यावरणस्य रक्षा अस्माभिः करणीया ।

ङ)  लोकरक्षा कथं संभवति?

  उत्तरम्-  प्रकृतिरक्षया एव लोकरक्षा संभवति।

च)  परिष्कृतं पर्यावरणम् अस्मभ्यं किं किं ददाति?

  उत्तरम्-  परिष्कृतं पर्यावरणम् अस्मभ्यं सांसारिक जीवनसुखं, सद्विचारं, सत्यसंकल्पं माङ्गलिकसामग्रीञ्च प्रददाति।

२.  स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-

     क)  वनवृक्षाः निर्विवेकं छिद्यन्ते।

    प्रश्नम्-  के निर्विवेकं छिद्यन्ते?

    ख)  वृक्षकर्तनात् शुद्धवायुः न प्राप्यते।

   प्रश्नम्-  कस्मात् शुद्धवायुः न प्राप्यते?

   ग)  प्रकृतिः जीवनसुखं प्रददाति।

    प्रश्नम्-  प्रकृतिः किं प्रददाति?

   घ)  अजातशिश्शुः मातृृगर्भे सुरक्षितः तिष्ठति।

    प्रश्नम्-  अजातशिश्शुः कुत्र सुरक्षितः तिष्ठति?

    ङ)  पर्यावरणरक्षणं धर्मस्य अङ्गम् अस्ति।

    प्रश्नम्-  पर्यावरणरक्षणं कस्य अङ्गम् अस्ति?

३.   उदाहरणमनुसृत्य पदरचनां कुरुत-

     क)  यथा-  जले चरन्ति इति        -        जलचराः

               स्थले चरन्ति इति           -          स्थलचराः

               निशायां चरन्ति इति         -           निशाचराः

                व्योम्नि चरन्ति इति          -             व्योमचराः

                गिरौ चरन्ति इति           -            गिरिचराः

              भूमौ चरन्ति इति            -           भूमिचराः

     ख)     यथा-   न पेयम् इति             -            अपेयम्

                   न वृष्टि इति            -          अवृष्टिः

                   न सुखम् इति             -               असुखम्

                न भावः इति              -             अभावः

                 न पूर्णः इति              -           अपूर्णः

४.   उदाहरणमनुसृत्य पदनिर्माणं कुरुत-

           यथा-   वि  +   कृ  +   क्तिन्     -        विकृतिः

        क)    प्र   +   गम्    +    क्तिन्       -      प्रगतिः

           ख)   दृश्     +     क्तिन्        -         दृष्टिः

          ग)   गम्   +     क्तिन्     -            गतिः

        घ)   मन्     +      क्तिन्       -        मतिः

        ङ)   शम्    +     क्तिन्       -        शान्तिः

        च)   भी      +     क्तिन्      -       भीतिः

       छ)    जन्     +     क्तिन्       -         जातिः

       ज)    भज्     +     क्तिन्       -        भक्तिः

      झ)   नी    +      क्तिन्      -      नीतिः

५.   निर्देशानुसारं परिवर्तयत-

यथा - स्वार्थान्धो मानवः अद्य पर्यावरणम् नाशयति (बहुवचने)।

     स्वार्थान्धाः मानवाः अद्य पर्यावरणम् नाशयन्ति।

    क)  सन्तप्तस्य मानवस्य मङ्गलं कुतः? (बहुवचने)

    उत्तरम्-   सन्तप्तानां मानवानाम् मङ्गलं कुतः?

       ख)   मानवाः पर्यावरणकुक्षौ सुरक्षिताः भवन्ति। (एकवचने)

  उत्तरम्-  मानवः पर्यावरणकुक्षौ सुरक्षितः भवति।

   ग)  वनवृक्षाः निर्विवेकं छिद्यन्ते। (एकवचने)

  उत्तरम्-  वनवृक्षः निर्विवेकं छिद्यते।

   घ)  गिरिनिर्झराः निर्मलं जलं प्रयच्छन्ति।

   उत्तरम्-   गिरिनिर्झरौ निर्मलं जलं प्रयच्छतः।

     ङ)  सरित् निर्मलं जलं प्रयच्छति। (बहुवचने)

   उत्तरम्-  सरितः निर्मलं जलं प्रयच्छन्ति।


        

 

NCERT, SANSKRIT SHEMUSHI CLASS-9 CHAPTER-7 SIKATASETUH


तपोदत्तः - मैं तपोदत्त हूँ। बचपन में पिताजी के द्वारा व्याकुल किए जाने पर भी मैंने विद्या का अध्ययन नहीं किया। इसलिए सभी रिश्तेदारों, मित्रों और बन्धु-बान्धबों के द्वारा अपमानित हुआ।
(लम्बी साँस लेकर)
हे विधाता! यह मेरे द्वारा क्या किया गया? तब मैं कैसी दुष्टबुद्धिवाला था! यह भी मेरे द्वारा नहीं सोचा गया -
श्लोकः - वस्त्रों और आभूषणों से सुशोभित होने पर भी विद्याहीन मनुष्य घर पर या सभा में उसी प्रकार शोभा नहीं पाता जैसे मणिरहित साँप सुशोभित नहीं होता॥


(कुछ सोचकर)
ठीक है, उससे क्या? दिन में राह से भटका हुआ व्यक्ति साम तक यदि घर लौट जाता है तो भी श्रेष्ठ है। इसे भ्रमित नहीं माना जाता है। यह अभी तपस्या के द्वारा विद्यालाभ करने के लिए प्रवृत्त है।


(पानी के उछलने की आवाज शुनाई देता है)
अरे यह तरंगोें के उछलने की ध्वनि कहाँ से आ रहा है? शायद बहुत बड़ी मछली अथवा मगरमछ है

देखता हूँ।
(एक पुरुष को रेत से पुल बनाने के प्रयास करते हुए देखकर हँसते हुए)
इस संसार में मुर्खों की कमी नहीं है! नदी केे तीव्र प्रवाह में यह मुर्ख रेत से पुल बनाने की प्रयास कर रहा है!
(जोर से हँसकर पास जाकर)


महाशय! यह आप क्या कर रहे हैं! मेहनत करना बंद करो। देखो,
श्रीराम ने समुद्र पर जिस पुल को पत्थरों से बनाया था उस पुल को रेत से बनाते हुए अपने परिश्रम को बेकार कर रहे हो॥
तो सोचो। रेत से किसी पुल का निर्माण किया जा सकता है?

पुरुषः - हे तपस्वि! तुम मुझे क्यों रोकते हो। कोशिश करने से क्या सफल नहीं होता है? शिलाओं की क्या आवश्यकता? अपने दृढ संकल्प से रेत से ही पुल बनालुँगा।
तपोदत्तः - आश्चर्य! रेेत से ही सेतु बनाओगे? रेत जल के प्रवाह में कैसे टिकेगी? अथवा
आप सोचा नहीं है?
पुरुषः - (खिल्ली उड़ाते हुए) सोचा सोचा।

अच्छी तरह सोचा। मैं सोपान मार्ग सेे अटारी पर चढ़ने में विश्वास नहीं रखता हूँ। उछलकर ही जाने मेें समर्थ हूँ।
तपोदत्तः - (व्यंगपूर्वक) बहुत अच्छा बहुत अच्छा! अञ्जनी पुत्र हनुमान को भी लांघने की कोशिश कर रहे हो!
पुरुषः - (सोचकर)
इसमें कोई संदेह है? और क्या,
लिपि-अक्षर ज्ञान के विना केवल तपस्या से ही यदि विद्या वश मेें हो जाएगी तो मेरा यह पुल भी रेत से बन जाएगा॥३॥
तपोदत्तः - (मन में लज्जापूर्वक) अरे ! यह भद्र पुरुष मेरे उद्देश्य का ही तिरस्कार कर रहा है । अक्षर ज्ञान के विना ही विद्वता प्राप्त करना चाहता हूूँ! इसलिए यह भगवती शारदा की अपमान है। गुरुकुल जाकर ही मुझे विद्या का अभ्यास करना चाहिए। परिश्रम से ही लक्ष प्राप्त होता है।

(प्रकाश कर) है मनुष्य श्रेष्ठ! मैं नहीं जानता की आप कौन हैं। परन्तु आपने मेरी आँखें खोल दी हैं। तपस्या मात्र से विद्या प्राप्त करने के लिए कोशिश करने वाला मैं भी रेत से ही पुल बनाने का प्रयत्न कर रहा हूँ। इसलिए अभि विद्या अध्ययन के लिए गुरुकुल को ही जा रहा हूँ।
(प्रणाम करते हुए जाता है)
अभ्यासः


१. अधोलिखितानां प्रश्नानाम उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत -
क) अनधीतः तपोदत्तः कैः गर्हितोऽभवत्?
उत्तरम्- अनधीतः तपोदत्तः सर्वैः कुटुम्बिभिः मित्रैः ज्ञातिजनैश्च गर्हितोऽभवत्।
ख) तपोदत्तः कन प्रकारेण विद्यामवाप्तुं प्रवृत्तोऽभवत्?
उत्तरम्- तपोदत्त॓ः तपश्चर्यया विद्यामवाप्तुं प्रवृत्तोऽभवत्।
ग) तपोदत्तः पुरुषस्य कां चेष्टां दृष्ट्वा अहसत्?
उत्तरम्- तपोदत्तः पुरुषस्य सिकताभिः सेतुनिर्माण-प्रयासं दृष्ट्वा अहसत्।
घ) तपोमात्रेण विद्यां प्राप्तुं तस्य प्रयासः कीदृशः कथितः?
उत्तरम्-तपोमात्रेण विद्यां प्राप्तुं तस्य प्रयासः सिकताभिः सेतुनिर्माणसदृशः कथितः।
ङ) अन्ते तपोदत्तः विद्याग्रहणाय कुत्र गतः?
उत्तरम्- अन्ते तपोदत्तः विद्याग्रहणाय गुरुकुलं गतः।
२. भिन्नवर्गीयं पदं चिनुत-

यथा - अधिरोढुम्, गन्तुम्, सेतुम्, निर्मातुम - सेतुम्
क) निःश्वस्य, चिन्तय, विमृश्य, उपेत्य - चिन्तय
ख) विश्वसिमि, पश्यामि, करिष्यामि, अभिलषामि - करिष्यामि
ग) तपोभिः, दुर्बुद्धिः, सिकताभिः, कुटुम्बिभिः - कुटुम्बिभिः
३. (क) रेखाङ्कितानि सर्वनामपदानि कस्मै प्रयुक्तानि?
१) अलमलं तव श्रमेण। - पुरुषाय
२) न अहं सोपानमार्गैरट्टमधिरोढुं विश्वसिमि। - पुरुषाय
३) चिन्तितं भवता न वा। - पुरुषाय
४) गुरुगृहं गत्वैव विद्याभ्यासो मया करणीयः। - तपोदत्ताय
५) भवद्भिः उन्मीलितं मे नयनयुगलम्। - तपोदत्ताय
(ख) अधोलिखितानि कथनानि कः कं प्रति कथयति?
कथनानि - कः - कम्
१) हा विधे! किमिदं मया कृतम्? - तपोदत्तः - विधातारं
२) भो महाशय! किमिदं विधीयते। - तपोदत्तः - पुरुषम्
३) भोस्तपस्विन्! कथं माम उपरुणत्सि। - पुरुषः - तपोदत्तम्
४) सिकताः जलप्रवाहे स्थास्यन्ति किम्? - तपोदत्तः - पुरुषम्
५) नाहं जाने कोऽस्ति भवान्? - तपोदत्तः - पुरुषम्
४. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-

क) तपोदत्तः तपश्चर्यया विद्यामवाप्तुं प्रवृत्तोऽस्ति।
प्रश्नम्- तपोदत्तः कया अथवा केन प्रकारेण विद्यामवाप्तुं प्रवृत्तोऽस्ति?
ख) तपोदत्तः कुटुम्बिभिः मित्रैः गर्हितः अभवत्।
प्रश्नम्- कः कुटुम्बिभिः मित्रैः गर्हितः अभवत्?
ग) पुरुषः नद्यां सिकताभिः सेतुं निर्मातुं प्रयतते।
प्रश्नम्- पुरुषः कुत्र सिकताभिः सेतुं निर्मातुं प्रयतते?
घ) तपोदत्तः अक्षरज्ञानं विनैव वैदुष्यमवाप्तुम् अभिलषति।
प्रश्नम्- तपोदत्तः किं विनैव वैदुष्यमवाप्तुम अभिलषति?
ङ) तपोदत्तः विद्याध्ययनाय गुरुकुलमगच्छत्।
प्रश्नम्- तपोदत्तः किमर्थं गुरुकुलम अगच्छत्?
च) गुरुगृहं गत्वैव विद्याभ्यासः करणीयः।
प्रश्नम्- कुत्र गत्वैव विद्याभ्यासः करणीयः?
५. उदाहरणमनुसृत्य अधोलिखितविग्रहपदानां समस्तपदानि लिखत-
विग्रहपदानि समस्तपदानि
यथा- संकल्पस्य सातत्येन संकल्पसातत्येेन
क) अक्षराणां ज्ञानम् - अक्षरज्ञानम्
ख) सिकतायाः सेतुः - सिकतासेतुः
ग) पितुः चरणैः - पितृचरणैः
घ) गुरोः गृहम् - गुरुगृहम्
च) विद्यायाः अभ्यासः - विद्याभ्यासः
६. उदाहरणमनुसृत्य अधोलिखितानां समस्तपदानां विग्रहं कुरुत-
समस्तपदानि विग्रहः
यथा- नयनयुगलम् - नयनयोः युगलम्
क) जलप्रवाहे - जलस्य प्रवाहे
ख) तपश्चर्यया - तपसः चर्यया
ग) जलोच्छलनध्वनिः - जलोच्छलनस्य ध्वनिः
घ) सेतुनिर्माणप्रयासः - सेतुनिर्माणस्य प्रयासः ७. उदाहरणमनुसृत्य कोष्ठकात् पदम् आदाय नूतनं वाक्यद्वयं रचयत- क) यथा - अलं चिन्तया। १) अलं भयेन। २) अलं कोलाहलेन। ख) यथा - माम् अनु स गच्छति। ("अनु " योगे द्वितीया) १) गृहं अनु नदी प्रवहति। २) पर्वतं अनु ग्राममस्ति। ग) यथा - अक्षरज्ञानं विनैव वैदुष्यं प्राप्तुमभिलषसि। १) परिश्रमं विना सफलता न लभते। २) अभ्यासं विना विद्यार्जनं कष्टकरं भवति। घ) यथा - सन्ध्यां यावत् गृहमुपैति। १) मासं यावत् अभ्यासं करोषि। २) वर्षं यावत् तपः करिष्यामि।

Sunday, May 2, 2021

NCERT, SANSKRIT SHEMUSHI CHAPTER - 2 स्वर्णकाकः CLASS -9

       

                    प्राचीनकाल में एक गांव में एक गरीव वृद्धा रहती थी । उसकी एक विनम्र और सुन्दर लड़की थी । माता एकदिन थाली में चावल रख कर पुत्री को बोली - धूप में रखागया चावल को पक्षीओं से बचाना । कुछसमयवाद एक अद्भूत् कौवा उसके पास पहुँचा ।

सोने का पंख तथा चाँदी के चोंचवाले स्वर्णकौवा वो पहले कभी देखि नहीं थी । उसको चावल खाते हुए और हँसते हुए देखकर बालिका रोने लगी । चावल खाने से मना करती हुई बालिका उसे प्रार्थना किया - चावल मत खाओ । मेरी माता बहुत गरीव है । स्वर्णपंखयुक्त कौवा वोला, चिन्ता मत करो । सूर्योदय से पहले गाँव के वाहर स्थित पिप्पल बृक्ष के नीचे तुम आना । तुम्हे तुम्हारा चावलमूल्य मिलजाएगा ।

आनन्दिता बालिका रात को नीद्रा प्राप्त नहीं कर पाई ।
सूर्योदय से पहले ही बालिका बृक्ष के नीचे पहुँचगई और बृक्ष के ऊपर स्वर्णमय प्रासाद देखकर वो आश्चर्यचकित होगई ।कौवा नींद से जागा और स्वर्णखिड़की से देखकर बोला, हे बालिका ! तुम आगई, रुको, मैं तुम्हारेलिए सीढ़ी उताररहा हूँ, बोलो इनमें से कौनसा सीढ़ी चाहिए,- सोने का,चाँदी का अथवा ताम्बे का ? बालिका बोली - मैं गरीब माँ की बेटी हूँ । ताम्बे की सीढ़ी से ही आऊँगी ।लेकिन सोने की सीढ़ी से वो स्वर्णप्रासाद में पहुँची ।

भवन मै सुसज्जित चित्रविचित्र वस्तुुओं को देेखकर वो आश्चर्यचकित हो गई ।थकी हुई उसको देखकर कौवा बोला - पहले तुम सुवह का नाश्ता करो, बोलो क्या तुम स्वर्ण थाली में भोजन करोगी अथवा चाँदी की थाली या ताम्बे की थाली में ? बालिका बोली - निर्धनी मैं ताम्बे की थाली में ही भोजन करुंगी । लेकिन वो कन्या आश्चर्यचकित होगई जब स्वर्णकाक उसे स्वर्णथाली में भोजन परोसा ।

एसी स्वादिष्ट भोजन बालिका ने अबतक खाई नहीं थी । हे बालिका! मेरा ईच्छा हैै कि तुम यहाँ रुक जाओ लेकिन तुम्हारी माता अकेली रहती हैं । तुम शीघ्र ही अपने घर जाओ ।
यह बोलकर कौवा कमरे में से तीन पेटियाँ निकालकर उसको बोला - हे बालिका! अपनी ईच्छा से एक पेटी लेजाओ । सबसे छोटी पेटी को लेकर बालिका बोली यह ही मेरा चावलों का मूल्य है । घर पहुँचकर वह पेटी खोली, उसमें बहुमूल्य हीराएँ देखकर उसे खुसि हुई और उस दिन से वह धनी हो गई ।


उस गांव में एक लालची वृद्धा रहती थी । उसकी भी एक बेटी थी । ईर्ष्या के कारण वह स्वर्णकौवा का रहस्य जान गई ।धूप में चावलों को रखकर रक्षा के लिए वह भी अपनी बेटी को नियुक्त किया।

स्वर्ण पक्षयुक्त कौवा चावल खा कर उसको भी पेड़ के नीचे बुलाया । सुवह वहाँ जा कर वो कौवा को निन्दा करती हुई बोली - हे नीच कौवा ! मैं आ गई, मुझे चावलों का मूल्य दो ।

कौवा बोला - मैं तुम्हारेलिए सीढ़ी उतार रहा हूँ । बोलो सोने का , चाँदी का अथवा ताम्बे का चाहिए । बालिका गर्व से बोली - सोने की सीढ़ी सेे मैं आऊँगी लेकिन स्वर्ण काक उसके लिए ताम्बे की सीढ़ी ही भेजा । स्वर्ण कौवा ने उसको भोजन भी ताम्बे के पात्र में ही करवाया ।
लौटते समय सोने का कौवा कमरे में से तीन पेटियाँ ला कर उसके सामने रखा । लालच के कारण वो सवसे बड़ी पेटी ले गई । घर आ कर जब वो खुसि से पेटी खोलती है तब उसमें भयङ्कर कालासर्प दिखाई देता है । इस प्रकार लोभी बालिका को लोभ का फल मिलगया । उस दिन से वो लोभ करना छोड़ दिआ ।

अभ्यासः

१ अधोलिखितानां प्रश्नानाम उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत -
क. निर्धनायाः वृद्धायाः दुहिता कीदृशी आसीत ?
उत्तरम्- निर्धनायाः वृद्धयाः दुहिता विनम्रा मनोहरा चासीत ।
ख. बालिकया पूर्वं किं न दृष्टम आसीत ?
उत्तरम्- स्वर्णपक्षो रजतचञ्चुः स्वर्णकाकः बालिकया पूर्वं न दृष्टम आसीत ।
ग. रुदन्तीं बालिकां काकः कथं आश्वासयत ?
उत्तरम्- रुदन्ती बालिकां काकः प्रोवाच- मा शुचः । सूर्योदयात प्राग ग्रामाद बहिः पिप्पलवृक्षमनु त्वं आगच्छ । अहं त्वां तण्डुलमूल्यं दास्यामि इत्युक्त्वा काकः बालिकां आश्वासयत् ।

घ. बालिका किं दृष्ट्वा आश्चर्यचकिता जाता ?
उत्तरम्- वृक्षस्योपरि स्वर्णमयं प्रासादं दृष्ट्वा बालिका आश्चर्यचकिता जाता ।
ङ. बालिका केन सोपानेन स्वर्णभवनम आससाद ?
उत्तरम - बालिका स्वर्णसोपानेेन स्वर्णभवनम आससाद ।
च. सा ताम्रस्थाल्याः चयनाय किं तर्कं ददाति ?
उत्तरम्- बालिका निर्धना अस्तीति ताम्रस्थाल्याः चयनाय तर्कमेतत ददाति ।
छ. गर्विता बालिका कीदृशं सोपानम अयाचत कीदृशं च प्राप्नोत ?
उत्तरम्- गर्विता बालिका स्वर्णमयं सोपानम अयाचत ताम्रमयं च प्राप्नोत ।

२.क. अधोलिखितानां शब्दानां विलोमपदं पाठात चित्वा लिखत-
१.पश्चात ॒ पूर्वं
२.हसितुम - रोदितुम्
३.अधः - उपरि
४.श्वेतः - कृष्णः
५.सूर्यास्तः - सूर्योदयः
६.सुप्तः - प्रबुद्धः
ख. सन्धिं कुरुत -
१.नि+अवसत - न्यवसत्

     २.सूर्य + उदयः - सूर्योदयः
     ३.वृक्षस्य + उपरि - वृक्षस्योपरि
     ४.हि  +  अकारयत  -  ह्यकारयत्
     ५.च + एकाकिनी - चैकाकिनी
     ६.इति + उक्त्वा - इत्युक्त्वा
     ७.प्रति + अवदत - प्रत्यवदत्
     ८.प्र + उक्तम  -  प्रोक्तम्
     ९.अत्र + एव - अत्रैव
   १०.तत्र + उपस्थिता - तत्रोपस्थिता
   ११.यथा + इच्छम - यथेच्छम्
 ३. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत -
     क. ग्रामे का अवसत ?   
     ख. कं निवारयन्ती  बालिका प्रार्थयत ?
     ग. कस्मात पूर्वमेव बालिका तत्रोपस्थिता ?
     घ. बालिका कस्याः दुहिता आसीत ?
     ङ. लुब्धा वृद्धा कस्य रहस्यमभिज्ञातवती ?
 ४. प्रकृति-प्रत्यय-संयोगं  कुरुत (पाठात चित्वा वा लिखत) -
      क.   हस + शतृ   -  हसन्
      ख.   भक्ष  +  शतृ  -  भक्षयन्
      ग.   वि  +  लोक  +  ल्यप   -  विलोक्य
      घ.   नि  +  क्षिप   +  ल्यप  -  निक्षिप्य
      ङ.   आ  +  गम   +   ल्यप   -  आगम्य
      च.   दृश  +  क्त्वा  -  दृष्ट्वा
        छ.   शी  +  क्त्वा   -  शयित्वा
        ज.   वृद्ध  +  टाप    -  वृद्धा
        झ.   सुत  +  टाप   -   सुता
        ञ.   लघु  +  तमप  -  लघुतमा
 ५. प्रकृतिप्रत्यय-विभागं  कुरुत  -
        क.  हसन्तम  -  हस  +  शतृन्
        ख.  रोदितुम  -  रुद  +  तुमुन्
        ग. वृृद्ध  +  टाप  -  वृद्धा
        घ. भक्षयन  -  भक्ष  +  शतृृन्
        ङ. दृष्ट्वा  -   दृश  +  क्त्वा
        च. विलोक्य  -  वि + लुक + ल्यप्
        छ. निक्षिप्य  -  नि  +  क्षिप + ल्यप्
        ज. आगत्य   -  आ  +  गम  +  ल्यप्
        झ. शयित्वा  -  शी  +  क्त्वा
        ञ. सुता  -  सुत  +  टाप्
        ट.  लघुतमम  -  लघु  +  तमप्
 ६. अधोलिखितानि  कथनानि  कः \  का , कं \ कां  च  कथयति  -
                  कथनानि                             कः\ का ,     कं  \  काम    
     क. पूर्वं  प्रातराशः  क्रियाताम ।                        स्वर्णकाकः        बालिकाम्
     ख. सूर्यातपे  तण्डुुलान  खगेभ्यो  रक्ष  ।                  माता           बालिकाम्
     ग. तण्डुलान  मा  भक्षय  ।                          बालिका         स्वर्णकाकम्
     घ. अहं तुभ्यं तण्डुलमूल्यम  दास्यामि  ।               स्वर्णकाकः        बालिकाम्
     ङ. भो  नीचकाक!  अहमागता, मह्यं  
         तण्डुुुलमूल्यं  प्रयच्छ  ।                        गर्विता बालिका    स्वर्णकाकम्
  ७.  उदाहरणमनुसृत्य  कोष्ठकगतेषु पदेषु  पञ्चमविभक्तेः प्रयोगं कृत्वा रिक्तस्थानानि पूरयत -
        क. जनः ग्रामात  बहिः आगच्छति ।
        ख. नद्यः पर्वतात निस्सरन्ति ।
        ग. वृक्षात पत्राणि पतन्ति ।
        घ. बालकः सिंहात विभेति ।
        ङ. ईश्वरः क्लेशात त्रायते ।
        च. प्रभुः भक्तं पापात निवारयति ।

NCERT, SANSKRIT SHEMUSHI CLASS-9 CHAPTER-1 BHARATI VASANTA GEETIH


निनादय नवीनामये वाणि! वीणाम्
मृदुं गाय गीतिं ललित-नीति-लीनाम् ।
मधुर-मञ्जरी-पिञ्जरी-भूत-मालाः
वसन्ते लसन्तीह सरस रसालाः
कलापाः ललित-कोकिला-काकलीनाम् ॥१ ॥
निनादय….॥ 
अनुवाद -

हे वाणी! नवीन वीणा को बजाओ एवं सुन्दर नीतिओं से परिपूर्ण गीत का मधुर गान करो। इन वसन्त ऋतु में मधुर आम्रपुष्पों से हुए पीलेवर्णयुुक्त सरस आम्रवृक्षों कि पंक्तियाँ सुशोभित हो रही हैं। मनोहर ध्वनियुक्त कोकिलों के समूह सुन्दर लग रहे हैं। हे वाणी! नूतन वीणा को बजाओ।

वहति मन्दमन्दं सनीरे समीरे
कलिन्दात्मजायास्सवानीरतीरे,
नतांपङ्क्तिमालोक्य मधुमाधवीनाम ॥२॥

निनादय….. ॥
हिन्दी अनुवाद

यमुना नदी के तट वेतसलताओं से युक्त है। नदीतट का वायु जलविन्दुओं से पूर्ण होने के कारण मन्दमन्द बह रहा है। इसिलिए झुकी हुई मधुर मालतीलताओं को देखकर, हे वाणी! नवीन वीणा बजाओ ।

ललित-पल्लवे पादपे पुष्पपुञ्जे
मलयमारुतोच्चुम्बिते मञ्जुकुञ्जे,
स्वनन्तीन्ततीम्प्रेक्ष मलिनामलीनाम्॥३॥
निनादय….॥

हिन्दी अनुवाद
मलयपवन से स्पृष्ट सुन्दर पत्तोंवाले वृक्षों, पुष्पसमूहों तथा शोभन लताओं पर काले भौंरों की गुञ्जार करती हुई पंक्ति को देखकर, हे वाणी! नवीन वीणा को बजाओ।

लतानां नितान्तं सुमं शान्तिशीलम्
चलेदुच्छलेत्कान्तसलिलं सलीलम्,
तवाकर्ण्य वीणामदीनां नदीनाम ॥४॥
निनादय….॥

हिन्दी अनुवाद

तुम्हारी ओजस्विनी वीणा को सुनकर लताओं के अतीव शान्ती से युक्त पुष्प हिल उठे, नदीओं का मनोहर जल क्रीड़ा करता हुआ उछल पड़े । हे वाणी ! नवीन वीणा को बजाओ I

                      अभ्यासः

१ अधोलिखितानां प्रश्नानामुत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत ।
क) कविः वीणापाणिं किं कथयति ?
उत्तरम्- कविः वीणापाणिं वाणी इति कथयति ।
ख) वसन्ते किं भवति ?                                                                                                                               उत्तरम् -  वसन्ते मधुरआम्रपुष्पैः पीतवर्णयुक्ताः सरसाः आम्रमालाः सुशोभन्ते । अपि च मनोहरध्वनियुक्ताः कोकिलसमूहाः विलसन्ति ।                                                                                                                             ग) सरस्वत्याः वीणां श्रुत्वा किं परिवर्तनं भवतु इति कवेः इच्छां लिखत ।                                                              उत्तरम् -   सरस्वत्याः ओजस्विनीं वीणां श्रुत्वा यत परिवर्तनं भवतु इति कवेः इच्छा अस्ति तत भवति, -       लतानां अतीव शान्तसुमनम चलेत ; तथा च नदीनां मनोहरजलं सक्रीड़म उच्छलेत ।                                       घ) कविः भगवतीं भारतीं कस्याः नद्याः तटे मधुमाधवीनां नतां पङ्क्तिम अवलोक्य वीणां वादयितुम कथयति ?उत्तरम्- कविः भगवतीं भारतीं यमुनायाः तटेे मधुमाधवीनां नतां पङ्क्तिमवलोक्य वीणां वादयितुम कथयति ।

२. (क) स्तम्भे पदानि, (ख) स्तम्भे तेषां पर्यायपदानि दत्तानि । तानि चित्वा पदानां समक्षे लिखत-

             (क) स्तम्भः                         (ख) स्तम्भः
          क) सरस्वती                         १) तीरे
          ख) आम्रम                            २) अलीनाम्
          ग) पवनः                             ३)समीरः
          घ) तटे                                ४) वाणी
          ङ) भ्रमराणाम                       ५) रसालः
   उत्तरम्- ४)वाणी, ५)रसालः, ३)समीरः, १)तीरे, २)अलीनाम्


४) प्रथमश्लोकस्य आशयं हिन्दीभाषया आङ्ग्लभाषया वा लिखत -
उत्तरम - हे वाणी ? नवीन वीणा को बजाओ तथा सुन्दर नीतिओं से परिपूर्ण गीत का मधुर गान करो । वसन्त ऋतु में मधुर आम्रपुष्प से पीली हो गई रसयुक्त आम के वृक्षों की पङ्क्तियां सुशोभित हो रही हैं । मनोहर ध्वनियुक्त कोयलों के समूह सुन्दर लग रहे हैं । हे वाणी ! नूतन वीणा को बजाओ ।

५) अधोलिखितपदानां विलोमपदानि लिखत -
क) कठोरम् - मृदुं
ख) कटु - मधुरम्
ग) शीघ्रम् - मन्दमन्दम्
घ) प्राचीनम् - नवीनम्
ङ) नीरसः - सरसः

Thursday, April 15, 2021

NCERT, SANSKRIT SHEMUSHI CLASS-9 CHAPTER-8 जटायोः शौर्यम्


१) तब करुण वाणी में विलाप करती हुई अत्यन्त दुःखी, विशाल नेत्रोंवाली सीता विशाल वृक्ष पर बैठे हुए जटायु को देखा॥
२.  आर्य जटायू! बूरे काम करने वाले इस राक्षस राज रावण के द्वारा अनाथ की तरह ले जाए जाती हुई मुझे देखो॥

३. तब सोये हुए जटायु ने वह शब्द सुना तथा रावण को देखकर शीघ्र ही उसने सीता को देखा॥
४. तब पर्वत की शिखर के समान सुंदरता वाले, तीखी चोंच वाले, वृक्ष पर स्थित शोभायुक्त तथा श्रेष्ठ पक्षी उस जटायु ने सुंदर वाणी में कहा॥
५. परयी स्त्री स्पर्षदोष से अपनी नीच बुद्धि को रोको। बुद्धिमान मनुष्य को ऐसा आचरण नहीं करना चाहिए जिससे दुसरे लोग उसकी निंदा करें॥
६. मैं वृद्ध हूँ । किन्तु तुम युवक हो, धनुर्धारी हो, रथ सहित हो,कवचधारी हो एवं वाण धारण किए हुए हो। फिर भी तुम सीता को लेकर कुशलपूर्वक नहीं जा सकोगे॥
७. उस उत्तम और महाबल पक्षी ने अपने तीखे नाखूनों तथा दोनों पैरों से प्रहार कर रावण के शरीर पर अनेक घाव बनादिया॥
८. तब अत्यंत तेजस्वी उस जटायु ने रावण के मुक्तामणि से सुशोभित तथा बाण सहित विशाल धनुष को तोड़ दिया॥
९. तब टूटे हुए धनुष वाला, रथहीन, मारे गए घोड़ों वाला तथा मारे गए सारथि वाला उस रावण ने सीता को गोद में ले कर पृथ्वी पर गिर गया॥
१०. तब अत्यंत क्रोध से रावण ने बाँये गोद में धारण कर तलवार की मूठ से जटायु पर शीघ्र ही प्रहार किया॥
११. तब शत्रुओं को नष्ट करने वाला पक्षियों का राजा जटायु ने उस को लांघ कर अपने चोंच से झपट कर उस रावण के दस बाँये भुजाओं को नष्ट कर दिया॥

                                         अभ्यासः

१. अधोलिखितानां प्रश्नानाम उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत -
क) " जटायो! पश्य" इति का वदति?
उत्तरम्- " जटायो पश्य" इति सीता वदति।
ख) जटायुः रावणं किं कथयति?
उत्तरम्- जटायुः रावणं कथयति यत् "परस्त्रीस्पर्शात् नीचां मतिं निवर्तय। धीरः न तत् समाचरेत् यत् परः अस्य विगर्हयेत्"।
ग) क्रोधवशात् रावणः किं कर्तुम् उद्यतः अभवत्?
उत्तरम्- क्रोधवशात् रावणः वामेनाङ्केन वैदेहीं संपरिष्वज्य तलेन जटायुं शीघ्रम् हन्तुं उद्यतः अभवत्।

घ) पतगेश्वरः रावणस्य कीदृशं चापं सशरं बभञ्ज?
उत्तरम्- पतगेश्वरः रावणस्य मुक्तामणिविभूषितं चापं सशरं बभञ्ज।
ङ) हताश्वो हतसारथिः रावणः कुत्र अपतत्?
उत्तरम्- हताश्वो हतसारथिः रावणः भुवि अपतत्।
२. उदाहरणमनुसृत्य णिनि-प्रत्ययप्रयोगं कृत्वा पदानि रचयत-
यथा- गुण + णिनि - गुणिन्(गुणी)
दान + णिनि - दानिन्(दानी)
क) कवच + णिनि - कवचिन्
ख) शर + णिनि - शरिन्
ग) कुशल + णिनि - कुशलिन्
घ) धन + णिनि - धनिन्
ङ) दण्ड + णिनि - दण्डिन्
३. रावणस्य जटायोश्च विशेषणानि सम्मिलितरूपेण लिखितानि तानि पृथक्-पृथक कृत्वा लिखत-
रावणः - जटायुः
यथा- युवा - वृद्धः
सशरः - महाबलः
हताश्वः - पतगसत्तमः
भग्नधन्वा - महागृध्रः
क्रोधमूर्च्छितः - खगाधिपः
सरथः पतगेश्वरः
कवची
शरी
४. सन्धिं सन्धिविच्छेदं वा कुरुत-
यथा- च + आदाय - चादाय
क) हत + अश्वः - हताश्वः
ख) तुण्डेन + अस्य - तुण्डेनास्य
ग) बभञ्ज + अस्य - बभञ्जास्य
घ) अङ्केन + आदाय - अङ्केनादाय
ङ) खग + अधिपः - खगाधिपः

५. "क" स्तम्भे लिखितानां पदानां पर्यायाः "ख" स्तम्भे लिखिताः। तान यथासमक्षम योजयत-
"क" - "ख"
कवची - कवचधारी
आशु - शीघ्रम्
विरथः - रथविहीनः
पपात - अपतत्
भुवि - पृथिव्याम्
पतगसत्तमः - पक्षिश्रेष्ठः

६. अधोलिखितानां पदानां विलोमपदानि मञ्जूषायां दत्तेषु पदेषु चित्वा यथासमक्षं लिखत-
पदानि - विलोमशब्दाः
क) विलपन्ती - हसन्ती
ख) आर्य - अनार्य
ग) राक्षसेन्द्रेण - देवेन्द्रेण
घ) पापकर्मणा - पुण्यकर्मणा
ङ) क्षिप्रम् - मन्दम्
च) विगर्हयेत् - प्रशंसेत्
छ) वृद्धः - युवा
ज) आदाय - प्रदाय
झ) वामेन - दक्षिणेन
ञ) अतिक्रम्य - अनतिक्रम्य

सुभाषितम्(NOBLE THOUGHTS)

 अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः। चत्वारि तस्य बर्धन्ते आयुर्विद्यायशोबलम्॥(महर्षि मनुः)  अर्थ  -               प्रतिदिन नियमितरूपसे गुरु...