Thursday, May 23, 2024

NCERT, SANSKRIT SHEMUSHI CLASS- 10 CHAPTER- 5 SUBHASITANI

                                                 



१.  आलस्य ही मनुष्यों का शरीर स्थित महान शत्रु है। परिश्रम के समान कोई भी बन्धु नहीं जिसको करके मनुष्य दुःखी नहीं होता है।

२.  गुणवान व्यक्ति गुणों को जानता है, परन्तु गुणहीन पुरुष गुणों को नहीं जानता। बलवान व्यक्ति बल को जानता है तथा निर्बल बल को नहीं जानता। कोयल वसंत के गुण को जानती है, कौआ नहीं। शेर के बल को हाथी जानता है, चूहा नहीं॥

३.  जो कारण को मानकर ही क्रोधित होता है, निश्चित रूप से उस कारण के समाप्त होने पर वह प्रसन्न होता है। परन्तु जिसका मन अकारण ही द्वेष करने वाला है, उसको व्यक्ति किस प्रकार सन्तुष्ट करेगा।

४.  कहा हुआ वाक्य पशु के द्वारा भी प्राप्त किया जाता है। प्रेरित किए गए घोड़े और हाथी भी भार वहन करते हैं। बुद्धिमान व्यक्ति बिना कही गई बात का भी अंदाजा लगा लेते हैं, क्योंकि दूसरे व्यक्तियों के द्वारा संकेत से लिए गए ज्ञान रूपी फल वाले होती हैं बुद्धियाँ॥

५.  क्रोध व्यक्तियों के शरीर के विनाश के लिए देह में स्थित पहला शत्रु है। जैसे लकड़ी में अग्नि समाई  होती है, और वह अग्नि ही शरीर को जलाता है॥

६.  हिरन हिरनों का अनुसरण करते हैं, गाय गायों के साथ, घोड़े घोड़ों का , मुर्ख मुर्खों का और विद्वान विद्वानों का अनुसरण करते हैं। मनुष्य की मित्रता समान स्वभाववालों में होती है॥

७.  फल और छाया से युक्त महान वृक्षों का आश्रय लेना चाहिए। यदि भाग्य से फल प्राप्त न हो तो छाया को कौन रोक सकता है॥

८.  मन्त्र से हीन अक्षर नहीं होता, औषधी से जड़ नहीं होती है। इस संसार में कोई भी अयोग्य नहीं होता है,  जोड़ने वाला ही दुर्लभ होता है॥

९. संपत्ति में  और विपत्ति में (- उभय काल में) महापुरुषोँ की स्थिति समान रहती है ॥ जैसै उदय काल में सूर्य रक्तवर्ण होते हैं, उसी प्रकार अस्त समय में लाल रंग के होते हैं॥

१०.  इस विचित्र संसार में कुछ भी व्यर्थ नहीं है। यदि घोड़ा दौड़ने में वीर है, तो गधा बोझ ढोने में वीर होता है॥

                                               अभ्यासः

१.  अधोलिखितानां प्रश्नानाम उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत-

    (क)  केन समः बन्धुः नास्ति?

 उत्तरम्-   उद्यमेन  समः बन्धुः नास्ति।

  (ख)  वसन्तस्य गुणं कः जानाति?

  उत्तरम्-  पिकः वसन्तस्य गुणं जानाति।

 (ग)  बुद्धयः कीदृश्यः भवन्ति?

 उत्तरम्-  बुद्धयः परेङ्गितज्ञानफला भवन्ति।

(घ)  नराणां प्रथमः शत्रुः कः?

  उत्तरम्-  क्रोधः नराणां प्रथमः शत्रुः अस्ति।

 (ङ)  सुधियः सख्यं केन सह भवति?

  उत्तरम्- सुधियः सख्यं सुधिभिः सह भवति।

  (च)  अस्माभिः कीदृशः वृक्षः सेवितव्यः?

  उत्तरम्-  अस्माभिः फलच्छायासमन्वितः वृक्षः सेवितव्यः।

 २.  अधोलिखिते अन्वयद्वये रिक्तस्थानपूर्तिं कुरुत-

      (क)  यः निमित्तम् उद्दिश्य प्रकुप्यति सः तस्य अपगमे ध्रुवं प्रसीदति। यस्य मनः अकारणद्वेषी अस्ति, जनः तं कथं परितोषयिष्यति?

   (ख)   विचित्रे संसारे खलु किञ्चित् निरर्थकम् नास्ति। अश्वः चेत् धावने वीरः खरः भारस्य वहनेे (वीरः)   (भवति)

३.  अधोलिखितानां वाक्यानां कृते समानार्थकान श्लोकांशान पाठात चित्वा लिखत-

     (क)  श्लोकांश-   अनुक्तमप्यूहति पण्डितो जनः।

    (ख)  समान-शील-व्यसनेषुु सख्यम्।

   (ग)   नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति।

  (घ)  संपत्तौ च विपत्तौ च महतामेकरूपता।

 ४.  यथानिर्देशं परिवर्तनं विधाय वाक्यानि रचयत-

   (क)  गुणिनः गुणान् जानन्ति।

   (ख)  पशुना उदीरितः अर्थः गृह्यते।

   (ग)  मृगः मृगेण सह अनुब्रजति।

   (घ)   केन छाया निवारयतेे।

  (ङ)  स एव वह्निः शरीरं दहति।

५.   (अ)   सन्धिं सन्धिविच्छेदं वा कुरत-

        क)     न   +    अस्ति   +    उद्यमसमः        -      नास्त्युद्यमसमः

      ख)  तस्य    +    अपगमे    -      तस्यापगमे

     ग)    अनुक्तम्     +      अपि      +     ऊहति     -      अनुक्तमप्यूहति

    घ)   गावः   +    च    -      गावश्च

     ङ)   न    +     अस्ति      -      नास्ति

    च)   रक्तः     +     च    +    अस्तमये    -     रक्तश्चास्तमये

   छ)    योजकः  +     तत्र     -    योजकस्तत्र


Friday, May 17, 2024

वृक्षः ( निबन्धः ) ESSAY


             अहं एकः वृक्षः अस्मि। पुष्पिणः फलिनश्चैव वृक्षास्तूभयतः स्मृतः । मदर्थे  कुठतरुद्रुमपादपपर्ण्यादि  प्रतिशब्दाः  सन्ति ।  पृथिव्यां विविधनामे अपि अहं अभिहितमस्मि  । मानवस्य अङ्गानीव मम एकं मूलं  स्कन्दं  हस्तपदरूपेण च शाखापल्लवाः सन्ति। मम शाखापल्लवेभ्यो पत्रकण्टकानि निर्गच्छन्ति। पत्रं मम भोजनम् पाचयति सूर्यरश्मिं जलं मानववर्जितं वायुं च मिश्रयित्वा। अस्मिन् कार्ये मम सर्वाण्यङ्गानि सहायकानि  भवन्ति। यथा मम मूलं भूवः जलमितरखणिजद्रव्यम् च संगृह्य स्कन्दं  प्रेषयति। तस्मात् शाखापल्लवमाध्यमेन तत्सर्वम् पत्रं निकषा प्राप्यते।
      
 मम पुष्पाणि देवपूजानिमित्तानि व्यवहृतानि। अपि च पुष्पेभ्यो रसं  संगृह्य मधुमक्षिका मधुं प्रस्तुयति निर्माति वा। उक्तं यत् - 

                     एकेनापि सुवृक्षेण पुष्पितेन सुगन्धिना।

                                  वासितं तद् वनं सर्वं सुपुत्रेण कुलं यथा॥

अर्थात्,

   एकेन अपि सुगन्धितपुष्पयुक्तेन उत्तमवृक्षेण समग्रं वनं सुवासितं भवति  यथा   उत्तमगुणयुक्तेन पुत्रेण   कुलस्य(वंशस्य) गौरवम् बर्धते  ।

       पुष्पेभ्यो फलानि विकसन्ति। फलान्येव बीजो भूत्वा नूतनवृक्षरूपेण जातोऽस्मि। खगानां आश्रयस्थली भवन्ति मम शाखाः। अपि च जन्तवः मम छायायां आश्रयं नयन्ति। अतेवोक्तम् -  

                    सेवितव्यो महावृक्षः फलछाया समन्वितः

                               यदि दैवात् फलम् नास्ति छाया केन निवार्यते॥

अर्थात्, 

                फलछायायुक्तः विशालवृक्षः सेवनीयः अस्ति। यदि दैवात् बृक्षे फलं न आगच्छति तर्हि छायां कः निवारयति। अर्थात् छाया अवश्यं प्राप्यते।

एव च,

                    मूले भुजङ्गैः शिखरे विहङ्गैः शाखाः प्लवङ्गैः कुसुमानि भृङ्गैः।

                              आश्चर्यमेतत् खलु चन्दनस्य परोपकाराय सतां विभूतयः॥  

अर्थात्, 

                  चन्दनवृक्षस्य मूले सर्पाः, तस्य शाखायाः अग्रे खगाः, शाखायां मर्कटाः भ्रमराश्च पुष्पे आश्रयं  नयन्ति। एतत् आश्चर्यमेवास्ति। यथा सज्जनानां सम्पदाः परोपकारार्थमेव ।

     विविध आकारप्रकारवर्णस्य च पृथिव्यां उपलब्धमस्मि। स्वादिष्टाम्लतिक्तादि विविधरसयुक्तमहमस्मि। गिरिसागरदेवालयगृहादिषु अहं विराजे।

    भारतीय संस्कृतौ अहं सर्वदा वन्दनीयः अस्मि। अतः मम कुठाराघातं उत्खातमपि च वर्जितमेव। अथोक्तम् -

                  दशकूपसमा वापी दशवापी समो ह्रदः।

                             दशह्रदसमः पुत्रो दशपुत्रसमो द्रुमः॥ 

अर्थात्,

                एकः सरोवरः दशकूपसदृशः।  एकः ह्रद दशसरोवरतुल्यः । दशह्रदसमः  एको पुत्रः । परं एकः वृक्षः  दशपुत्रतुल्यः एव अस्ति।

अपि तु धार्मिकचिकित्सादृष्ट्याश्च मम महत्त्वमस्ति।

                 'तुलसी' कानने चैव गृहे यस्यावतिष्ठते।

                             तद् गृहं तीर्थमित्याहुः नायान्ति यमकिङ्कराः॥

अर्थात्,

                 'तुलसी' यस्मिन् कानने यस्य गृहे च स्थितं भवति तद् गृहं तीर्थमिति उच्यते। यमदूताः नागच्छन्ति तत्र॥

 जीवानां श्वासक्रिया इव ममापि श्वसनकार्यः भवति। अहं अनावृष्ट्याः अवर्षणात् वा पर्यावरणस्य रक्षां करोमि। 
उक्तं ही,

                  अश्वत्थमेकम् पिचुमन्दमेकम्     

                                                            न्यग्रोधमेकम् दश चिञ्चिणीकान्।

                             कपित्थविल्वाऽऽमलकत्रयञ्च   

                                                              पञ्चाम्रमुप्त्वा नरकन्न पश्येत्॥

अर्थात्,

           अश्वत्थनीमवटतिन्त्रीणी कपित्थविल्वऽऽमलकं आम्रं च रोपयित्वा तेषां पोषणं कृत्वा च जनः नरकं न पश्येत्। यतः एभिः वृक्षैः पर्यावरणे अम्लजानवायोः मात्रा वर्धते तथा च धरित्र्याः तापमानमपि ह्रासं भवति स्म। 

वायुप्रदूषणं दूरं करोमि(दूरीकरोमि)। उच्यते -

                  तुलसीगन्धमादाय यत्र गच्छति मारुतः।

                             दिशो दश पुनात्याशु भूतग्रामांश्चतुर्विधान्॥

अर्थात्,

        तुलसीगन्धः वायुना सह यत्र यत्र गच्छति शीघ्रं ही तत्रत्यः परिवेशं जीवान् च पवित्रं नीरोगं च करोति।

         अन्ततः अस्त्यहं प्राणीनां जीवनकं जीविका एव च। प्रकृत्याः पूरक सदृशमहं अवस्थितम्। एतदर्थं मां जलं सेचयित्वा जनाः उपकृताः भवन्ति स्म। सत्यमेतत् - 'वृक्षो रक्षति रक्षितः'।

Saturday, May 11, 2024

ऐकपद्यम् ( Unity of words )

                 पशवः  (Animals)

 १.      आजकं  -   A flock of goats

 २.      गविनी  -   A herd of cows

 ३.      औट्रकं   -   A multitude of camels

 ४.      औरभ्रकं -  A flock of sheep

 ५.      औक्षकं   -  A multitude of oxen

      

Thursday, May 9, 2024

सम्बन्धाः (RELATIONS)

      

तनयः, पुत्रः - A son                                              दुहिता, सुता - A  daughter

 पिता - Father                                    माता - Mother 

 पितृव्यः - A father's brother

 पितामहः - A paternal grandfather      पितामही - A paternal                                                                                        grandmother

 मातामहः - A maternal grandfather      मातामही - The maternal                                                                                            grandmother

 मातामहौ (dual)- The maternal 

         grandfather and grandmother

 मातुलः - A maternal uncle                     मातुला  - The wife of a                                                                                         maternal uncle           मातुलेयः - The son of a maternal uncle                                      

                                                             मातृष्वसा- A mother's sister, a                                                                               maternal aunt

 भ्राता - A brother                             भगिनी - A sister


भ्रातृव्यः,भ्रात्रीयः, भ्रात्रेयः- A brother's    आंतिका - An elder sister

             son, nephew 

अनुभ्राता - A younger brother           

 कन्यसः -  The youngest brother         कन्यसी - The youngest sister

 आवुत्तः - A sister's husband 

स्वामी, पति - Husband                          स्त्री, पत्नी - A wife



Sunday, May 5, 2024

सुभाषितम् (NOBLE THOUGHTS)



अपृष्टोऽपि हितं व्रूयात् यस्य नेच्छेत् पराभवम्।

एष एव सतां धर्मो विपरीत मतोऽन्यथा॥

अर्थात् -

        जिसका पराजय नहीं चाहते होंगे वो न पुछने पर भी उसको हितकर(अच्छा) परामर्श देना सज्जनों का कर्तव्य है। असज्जन इसका विपरीत आचरण करते हैं॥

Meaning - 

            If you don't want failure or defeat of  anyone, without asking of that person advising beneficially is the righteousness or duty of learned persons. But dishonorable persons behave oppositely.

Friday, May 3, 2024

खगानां नामानि (NAMES OF BIRDS)



 

१.     शूकः  -  तोता  (A Parrot)

२. चित्रकंठः  - कबुतर  (A Pigeon)

३.  चित्रपिच्छकः  - मोर (A Peacock) 

४.  चित्रपादा, चित्राक्षी - मैना    (A  Sarika)

५.  चित्रपृष्ठः  - गौरेया (A Sparrow)

६.  बकः   - वक  (Indian Crane)


सुभाषितम्(NOBLE THOUGHTS)

 अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः। चत्वारि तस्य बर्धन्ते आयुर्विद्यायशोबलम्॥(महर्षि मनुः)  अर्थ  -               प्रतिदिन नियमितरूपसे गुरु...