Saturday, June 12, 2021

NCERT SANSKRIT - SHEMUSHI CLASS-10 CHAPTER-2 BUDDHIRBALAVATI SADA

 हिन्दी अनुवाद-

      देउलाख्यो नाम के एक गांव है। वहाँ राजसिंह नाम के राजपुत्र रहता था। एकदिन कोई जरुरी काम से उसका पत्नी बुद्धिमती दोनों बेटों के साथ मिलकर पिता के घर की ओर चली गई। रस्ते में गहरा जंगल में वो एक बाघ देखा। वो बाघ को आते हुए देखकर ढिठाई से दोनों बेटों को थप्पड़ मारकर कहा- "बाघ को खाने के लिए क्यों एक दुसरे से झगड़ा कर रहे हो? यह एक है, इसलिए दोनों बाँटकर खाना। बाद में ओर कोई दुसरा बाघ कहीं से ढूढेंगे।"

      वह सब बातें सुन कर यह कोई बाघ को मारने वाली होगी ,ये सोच कर भयभीतचित्तयुक्त बाघ भाग गया।
वो रूपवती स्त्री अपनी बुद्धि से बाघ के भय से मुक्त हो गई। अन्य बुद्धिमान मनुष्य भी संसार में महान भय से मुक्त हो जाता है॥
भय से व्याकुल बाघ को देखकर कोई दुष्ट सियार हँसते हुए कहने लगा- "बाघ, आप भय से क्यों भाग रहे हैं?"
व्याघ्रः - जाओ जाओ सियार! तुम भी किसी गुप्त स्थान में चले जाऔ। क्योंकि बाघ हत्यारन एसा शास्त्र में जो सुना जाता है, वह मुझे मारने के लिए तैयार है। परन्तु मैं उसके आगे से हथेली पर प्राण रख कर जल्दी भाग आया हूँ।

श्रृगालः - बाघ! तुमने बड़ी हैरानी की बात बताया कि तुम मनुष्य से भी डरते हो?
व्याघ्रः - आँखों के सामने ही एक एक करके मुझे खाने के लिए झगड़ा करते हुए अपने दोनों पुत्रों को वो चपेट से मारती हुई मैंने देखा।
जम्बुकः - स्वामी! जहाँ वह धूर्त स्त्री बैठी हुई है वहाँ चलो। बाघ! तुम्हारा वहाँ दोबारा पहुँचने पर यदि वह सामने भी देख लेती है, तो तुमसे मैं मारा जाऊँगा।
व्याघ्रः - सियार! यदि तुम मुझे छोड़ कर जाते हो तब वह समय ही समाप्त हो जाएगा।                              जम्बुकः - यदि इस प्रकार है तो तुम मुझे अपने गले में बाँध कर जल्दी ले चलो। वह बाघ वैसा करके जंगल की ओर चल पड़ा। सियार के साथ दोबारा दूर से आते हुए बाघ को देख कर बुद्धिमती सोचने लगी - गीदड़ के द्वारा उत्साहित किए गए बाघ से मैं कैसे बचुँ?                                                                                                       परंतु हाजिरजवाब वह स्त्री गीदड़ को अंगुली से आक्षेप करती हुई तथा डाँटती हुई कहने लगी -                                                हे धूर्त! पहले तुमने मुझे विश्वास दिलाकर तीन बाघ देने के लिए कहा था । अभी बताओ, आज एक ही बाघ लेकर क्यों आए हो ॥

एसा कहकर भयोत्पादिका बाघ हत्यारन जल्दी भाग गई ।
गले में गीदड़ बंधा हुआ बाघ भी अचानक भाग गया ॥
इस प्रकार बुद्धिमती स्त्री बाघ से उत्पन्न भय से दोबारा मुक्त हो गई । इसलिए ठीक ही कहा गया है-
हे देवी! सर्वदा सभी कार्यों में बुद्धि बलवान होती है॥


अभ्यासः

१. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत -
क) बुद्धिमती केन उपेता पितुर्गृहं प्रति चलिता?
उत्तरम्- बुद्धिमती पुत्रद्वयेन उपेता पितुर्गृहं प्रति चलिता ।
ख) व्याघ्रः किं विचार्य पलायितः ?
उत्तरम् - इयं काचित् व्याघ्रमारी इति विचार्य व्याघ्रः पलायितः ।

ग) लोके महतो भयात् कः मुच्यते ?
उत्तरम्- लोके अन्यः बुद्धिमान् मनुष्यः महतो भयात् मुच्यते ।
घ) जम्बुकः किं वदन् व्याघ्रस्य उपहासं करोति ?
उत्तरम्- मानुषादपि विभेषि इति वदन् जम्बुकः व्याघ्रस्य उपहासं करोति ।
ङ) बुद्धिमती श्रृगालं किम् उक्तवती?
उत्तरम्- बुद्धिमती श्रृगालं इदं उक्तवती यत् " त्वं व्याघ्रत्रयम् आनेतुं " प्रतिज्ञाय एकमेव आनीतवान् ।

२. स्थूलपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत -
क) तत्र राजसिंहो नाम रजपुत्रः वसति स्म ।
प्रश्नम्- तत्र को नाम राजपुत्रः वसति स्म?
ख) बुद्धिमती चपेटया पुत्रौ प्रहृतवती ।

प्रश्नम्- बुद्धिमती कया पुत्रौ प्रहृतवती?
ग) व्याघ्रं दृष्ट्वा धूर्तः श्रृगालः अवदत् ।
प्रश्नम्- कं दृष्ट्वा धूर्तः श्रृगालः अवदत्?
घ) त्वं मानुषात् विभेषि ।
प्रश्नम्- त्वं कस्मात् विभेषि?
ङ) पुरा त्वया मह्यं व्याघ्रत्रयं दत्तम्।
प्रश्नम्- पुरा त्वया कस्मै व्याघ्रत्रयं दत्तम्?

३. अधोलिखितानि वाक्यानि घटनाक्रमानुसारेण योजयत-
क) व्याघ्रः व्याघ्रमारी इयमिति मत्वा पलायितः।
ख) प्रत्युत्पन्नमतिः सा श्रृगालं आक्षिपन्ती उवाच।
ग) जम्बुककृतोत्साहः व्याघ्रः पुनः काननम् आगच्छत्।
घ) मार्गे सा एकं व्याघ्रम् अपश्यत्।
ङ) व्याघ्रं दृष्ट्वा सा पुत्रौ ताड़यन्ती उवाच- अधुना एकमेव व्याघ्रं विभज्य भुज्यताम्।
च) बुद्धिमती पुत्रद्वयेन उपेता पितुर्गृहं प्रति चलिता।
छ) "त्वं व्याघ्रत्रयं आनेतुं" प्रतिज्ञाय एकमेव आनीतवान्।
ज) गलबद्धश्रृगालकः व्याघ्रः पुनः पलायितः।
घटनाक्रमाः -
च) बुद्धिमती पुत्रद्वयेन उपेता पितुर्गृहं प्रति चलिता।
घ) मार्गे सा एकं व्याघ्रम् अपश्यत्।
ङ) व्याघ्रं दृष्ट्वा सा पुत्रौ ताड़यन्ती उवाच- अधुना एकमेव व्याघ्रं विभज्य भुज्यताम्।
क) व्याघ्रः व्याघ्रमारी इयमिति मत्वा पलायितः।
ग) जम्बुककृतोत्साहः व्याघ्रः पुनः काननम् आगच्छत्।
ख) प्रत्युत्पन्नमतिः सा श्रृगालं आक्षिपन्ती उवाच।
छ) "त्वं व्याघ्रत्रयम् आनेतुं" प्रतिज्ञाय एकमेव आनीतवान्।
ज) गलबद्धश्रृगालकः व्याघ्रः पुनः पलायितः।
४. सन्धिं सन्धिविच्छेदं वा कुरुत-
क) पितुर्गृहम् - पितुः + गृहम्
ख) एकैकः - एकः + एकः
ग) अन्योऽपि - अन्यः + अपि
घ) इत्युक्त्वा - इति + उक्त्वा
ङ) यत्रास्ते - यत्र + आस्ते
५. अधोलिखितानां पदानाम् अर्थः कोष्ठकात् चित्वा लिखत-
क) ददर्श - दृष्टवान्
ख) जगाद - अकथयत्
ग) ययौ - गतवान्
घ) अत्तुम् - खादितुम्
ङ) मुच्यते - मुक्तो भवति
च) ईक्षते - पश्यति
६. ( अ) पाठात् चित्वा पर्यायपदं लिखत-
क) वनम् - काननम्
ख) श्रृगालः - जम्बुकः
ग) शीघ्रम् - सत्वरं तूर्णम् वा
घ) पत्नी - भार्या
ङ) गच्छसि - यासि
( आ) पाठात् चित्वा विपरीतार्थकं पदं लिखत-
क) प्रथमः - द्वितीयः
ख) उक्त्वा - श्रृत्वा
ग) अधुना - पश्चात्
घ) अवेला - वेला
ङ) बुद्धिहीना - बुद्धिमती
७. (अ) प्रकृतिप्रत्ययविभागं कुरुत-
क) चलितः - चल् + क्त
ख) नष्टः - नष् + क्त
ग) आवेदितः - आ + विद् + क्त
घ) दृष्टः - दृश् + क्त
ङ) गतः - गम् + क्त
च) हतः - हन् + क्त
छ) पठितः - पठ् + क्त
ज) लब्धः - लभ् + क्त
(आ) उदाहरणमनुसृत्य कर्तरि प्रथमा विभक्तेः क्रियायाञ्च क्तवतु प्रत्ययस्य प्रयोगं कृत्वा वाच्यपरिवर्तनं कुरुत-
यथा- तया अहं हन्तुम् आरब्धः - सा मां हन्तुम् आरब्धवती।
क) मया पुस्तकं पठितम्। - अहं पुस्तकं पठितवान्।
ख) रामेण भोजनं कृतम्। - रामः भोजनं कृतवान्।
ग) सीतया लेखः लिखितः। - सीता लेखं लिखितवती।
घ) अश्वेन तृणं भुक्तम्। - अश्वः तृणं भुक्तवान्।
ङ) त्वया चित्रं दृष्टम्। - त्वं चित्रं दृष्टवान्।

NCERT SANSKRIT SHEMUSHI CLASS-10 CHAPTER - 3 SHISHULALANAM



( श्रीराम सिंहासन पर विराजमान हैं। फिर विदूषक द्वारा उपदेश दिए जाते हुए तपस्वी लव और कुश का प्रवेश। )

विदूषकः - आर्य इधर!
कुशलवौ - ( राम के पास जाकर और प्रणाम करते हुए ) क्या महाराज कुशलपूर्वक हैं?
रामः - आपके दर्शन से कुशल के समान हो गया हूँ। हम यहाँ क्या आप दोनों के कुशल प्रश्न के पात्र ही हैं, फिर क्या अतिथिजनों के लिए आवश्यक गले लगाने का पात्र हम नहीं हैं।( आलिङ्गन करके) अरे! हृदय को छूनेवाला स्पर्ष है।                                                                                                                                                                   उभौ - निश्चित रूप से यह राजा का आसन है। यहाँ बैठना उचित नहीं है।                                                         रामः - रुकावट सहित चरित्र लोप के लिए नहीं है। इसलिए गोदि मात्र व्यवधानयुक्त सिंहासन पर बैठिये।

                        ( गोदि में बिठाकर )
उभौ - ( इच्छा न होने का नाटक करते हुए) हे राजन्! इतनी उदारता मत दिखाइए अथवा अधिक कुशलता नहीं करें।                                                                                                                                                                रामः - अत्यधिक शालीनता(अथवा भद्रता) बंद करो।                                                                                श्लोकः   - 

         अत्यधिक गुणी लोगों को भी छोटी उम्र के कारण बालक को लाड़ प्यार करना चाहिए। चन्द्रमा बालभाव के कारण ही भगवान शङ्कर के मस्तक का आभूूषण बनकर केतकी पुष्पों से निर्मित चूड़ा के रूप में विराजमान होते हैं।

रामः - यह आप दोनों के सौन्दर्य से उत्पन्न जिज्ञासा के कारण पुछ रहा हूँ- क्षत्रीय वंशीय पितामह सूर्य अथव चाँद में से आपके वंश का कर्त्ता कौन है?                                                                                                             लवः - भगवान सूर्य।                                                                                                                                 रामः - कैसे एक कुल में पैदा होने वाले हो गए?

विदूषकः - क्या दोनों का एक ही उत्तर है?
लवः - हम दोनों सगे भाई हैं।
रामः - शरीर की बनावट एक जैसे है। और उम्र में भी कोई अन्तर नहीं है।
लवः - हम दोनों जुड़वाँ हैं।
रामः - अभी ठीक है। क्या नाम है?
लवः - आर्य का वन्दना में लव एसा अपने आप को सुनाता हूँ। ( कुश को निर्देश कर) आर्य भी गुरु के चरण सेवा में…………………
कुशः - मैं भी आपने आप को कुश ऐसा कहता हूँ।

रामः - अरे! शिष्टाचार बहुत ही सुन्दर है। आपके गुरु के क्या नाम है?
लवः - अवश्य ही भगवान वाल्मीकि।
रामः - किस सम्बन्ध से?
लवः - उपनयन की संस्कारदीक्षा के द्वारा।
रामः - मैं आपके पिता का नाम जानना चाहता हूँ।
लवः - मैं इनका नाम नहीं जानता हूँ। इस तपोवन में उनका नाम कोई नहीं लेता है।
रामः - इतनी उदारता।                                                                                                                               कुशः - मैं उनका नाम जानता हूँ।                                                                                                               रामः - बताओ।                                                                                                                                           कुशः - दया रहित नाम….                                                                                                                               रामः - मित्र, निश्चित रूप से नाम अपूर्व है।

विदूषकः - (सोचकर) मैं पूछ रहा हूँ, दया रहित ऐसा कौन कहता है?
कुशः - माता।
विदूषकः - क्या गुस्से में वह ऐसा कहती है, अथवा स्वाभाविक रूप से?

कुशः - यदि हमारे लड़कपन के कारण किसी भी तरह के रूखा आचरण देखती है, तब इस प्रकार फटकारती है- क्रूर के पुत्रों, चंचलता मत करो।
विदूषकः - यदि इनके पिता का नाम क्रूर है और इनकी माता उनसे अपमानित है तथा घर से निकाल दिया गया हैै, इसलिए इसी वचन से पुत्रों को धमकाती है।

रामः - (मन में) एसे मुझ पर धिक्कार है। वह तपस्वी मेरे किए हुए अपराध के कारण अपनी संतान को इस प्रकार क्रोधपूर्ण अक्षरों से धमकाती है।
( आँसुओं सहित देखते हैं )
रामः - यह बहुत लम्बी और क्रूर प्रवास है। ( विदूषक को देखकर पास जा कर )
जिज्ञासा से युक्त मैं इनके माता को नाम से जानना चाहता हूँ। स्त्री के संबंध में टीका-टीप्पणी करना उचित नहीं,विशेषतः तपोवन में। तो यहाँ कौनसा उपाय है?
विदूषकः - ( पास जाकर ) मैं फिर से पुछता हूँ। क्या नाम है तुम्हारे माता का?
लवः - उनके दो नाम हैं।
विदूषकः - कैसे?
लवः - तपोवन निवासी देवी नाम से पुकारते हैं, भगवान वाल्मीकि वधू नाम से पुकारते हैं।
रामः - इधर आइए मित्र! थोड़ी देर के लिए।
विदूषकः - ( पास जाकर ) आप आदेश दीजिए।
रामः - इन दोनों कुमारों का और हमारे परिवार का वृत्तान्त एक जैसा हैै क्या ?
( परदे के पीछे )
इतना समय हो गया है रामायण गान का कार्य क्यों नहीं हुआ ?

उभौ - राजन्! गुरुजी का दूत हमको शीघ्रता कर रहा है।
रामः - मुझे भी मुनि के कार्य का सम्मान करना है।
श्लोकः - आप दोनों इस कथा का गान करने वाले हैं, तपोनिधि पुराण मुनि वाल्मीकि इस रचना के कवि हैं, धरती पर पहली बार अवतरित होनेवाला स्फुट वाणी का यह काव्य है और इसकी कथा कमलनाभि विष्णु से संबंध है और यह वो सेवकवृन्द निश्चय ही श्रोताओं को पवित्र और आनन्दित करने वाला है।
रामः - मित्र! यह मनुष्यों में सरस्वती का अपूर्व अवतार है, इसलिए मैं सुहृद लोगों में साधारण रूप से सुनना चाहता हूँ।

सभासदों को बुलाइए, लक्ष्मण को मेरे पास भेजिए, मैं भी इन दोनों के साथ बहुत समय तक बैठने के कारण हुई थकावट को विहार करके दूर करता हूँ।
( वह कहकर सभी निकल जाते हैं )

                                                          अभ्यासः


१. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत-
क) रामाय कुशलवयोः कण्ठाश्लेषस्य स्पर्शः कीदृशः आसीत्?
उत्तरम्- रामाय कुशलवयोः कण्ठाश्लेषस्य स्पर्शः हृदयग्राही आसीत्।
ख) रामः लवकुशौ कुत्र उपवेशयितुम् कथयति?
उत्तरम्- रामः लवकुशौ अर्धासने उपवेशयितुम् कथयति।
ग) बालभावात् हिमकरः कुत्र विराजते?
उत्तरम्- बालभावात् हिमकरः शङ्करस्य मस्तके विराजते।
घ) कुशलवयोः वंशस्य कर्त्ता कः?
उत्तरम्- कुशलवयोः वंशस्य कर्त्ता भवति भगवन् सूर्यः।

ङ) केन सम्बन्धेन वाल्मीकिः कुशलवयोः गुरुः आसीत्?
उत्तरम्- उपनयन-संस्कारदीक्षया सम्बन्धेन वाल्मीकिः कुशलवयोः गुरुः आसीत्।
च) कुुशलवयोः मातरं वाल्मीकिः केन नाम्ना आह्वयति?
उत्तरम्- कुशलवयोः मातरं वाल्मीकिः वधूः इति नाम्ना आह्वयति।

२. रेखाङ्कितेषु पदेषु विभक्तिं तत्कारणं च उदाहरणानुसारं निर्दिशत-
                                                                   विभक्तिः                              तत्कारणम्
यथा - राजन्! अलम् अतिदाक्षिण्येन।              तृतीया                               " अलम्" योगे
क) रामः लवकुशौ आसनार्धम् उपवेशयति।      द्वितीया                          "उपवेशयति" योगे
ख) धिङ् माम् एवं भूतम्।                                द्वितीया                            " धिङ्" योगे
ग) अङ्कव्यवहितम् अध्यास्यतां सिंहासनम्।     द्वितीया                         "अध्यास्यतां" योगे
घ) अलम् अतिविस्तरेण।                                   तृतीया                            " अलम्" योगे
ङ) रामम् उपसृत्य प्रणम्य च।                            द्वितीया                         " उपसृत्य" योगे

३. यथानिर्देशम् उत्तरत -
क) " जानाम्यहं तस्य नामधेयम्" अस्मिन् वाक्ये कर्तृपदं किम्?
उत्तरम्- अस्मिन् वाक्ये "अहं " कर्तृपदम् अस्ति।
ख) " किं कुपिता एवं भणति उत प्रकृतिस्था" अस्मात् वाक्यात् " हर्षिता" इति पदस्य विपरीतार्थकपदं चित्वा लिखत।
उत्तरम्- अत्र "हर्षिता" इति पदस्य विपरीतार्थकपदं भवति "कुपिता"।

ग) विदूषकः ( उपसृत्य ) " आज्ञापयतु भवान्!" अत्र भवान् इति पदं कस्मै प्रयुक्तम्?
उत्तरम्- अत्र भवान् इति पदं श्रीरामाय प्रयुक्तम्।
घ) " तस्मादङ्क-व्यवहितम् अध्यास्याताम् सिंहासनम्" -अत्र क्रियापदं किम्?
उत्तरम्- अत्र क्रियापदं अध्यास्याताम् अस्ति।
ङ) " वयसस्तु न किञ्चदन्तरम्" - अत्र आयुषः इत्यर्थे किं पदं प्रयुक्तम्?
उत्तरम्- अत्र " आयुषः" इत्यर्थे वयसः इति पदं प्रयुक्तम्।

४. अधोलिखितानि वाक्यानि कः कं प्रति कथयति-
                                                                         कः                              कम्
क) सव्यवधानं न चरित्रलोपाय।                         रामः                          लवकुुशौ
ख) किं कुपिता एवं भणति, उत प्रकृृतिस्था?      विदूषकः                       कुशलवौ

ग) जानाम्यहं तस्य नामधेयम्।                          कुशः                           रामम्
घ) तस्याः द्वे नाम्नी।                                        लवः                           विदूषकम् 
ङ) वयस्य! अपूर्वं खलु नामधेयम्।                       रामः                             कुशं
५. मञ्जूषातः पर्यायद्वयं चित्वा पदानां समक्षं लिखत-
क) हिमकरः      -   शशिः ,  निशाकरः
ख) सम्प्रति        -   इदानीम्,  अधुना
ग) समुदाचारः    -   शिष्टाचारः,  सदाचारः
घ) पशुपतिः       -     शिवः,   चन्द्रशेखरः
ङ) तनयः           -     सुतः,   पुत्रः
च) सहस्रदीधितिः   -    सूर्यः,  भानुः

६. अ)
           पदानि              प्रकृतिः        प्रत्ययः
यथा-  आसनम्   -       आस्      +     ल्युट् प्रत्ययः
क)      युक्तम्     -       युज्       +     क्त प्रत्ययः
ख)      भाजनम्   -       भाज्      +      ल्युट्
ग)      शालीनता  -      शालीन्    +      तल्

घ)      लालनीयः  -      लाल्      +      अनीयर्
ङ)       छदत्वम्    -       छद्       +       त्व
च)      संनिहितः   -     संनिधा    +      क्त
छ)    सम्माननीया   -   सम्मान   +     अनीयर्   +    टाप्

आ) विशेषण-विशेष्यपदानि योजयत-
            विशेषण पदानि      -         विशेष्य पदानि
 यथा-       श्लाघ्या             -                     कथा

  १)         उदात्तरम्यः         -        क)    समुदाचारः
  २)          अतिदीर्घः           -          घ)      प्रवासः
  ३)          समरूपः             -           ङ)     कुटुम्बवृत्तान्तः
  ४)          हृदयग्राही          -           ख)      स्पर्शः
  ५)          कुमारयोः           -           ग)      कुशलवयोः
७. ( क)  अधोलिखितपदेषु सन्धिं कुरुत-
क)  द्वयोः   +   अपि      -        द्वयोरपि
ख)   दौ       +    अपि       -        द्वावपि
ग)    कः     +     अत्र       -         कोऽत्र
घ)  अनभिज्ञः   +  अहम्    -      अनभिज्ञोऽहम्
ङ)   इति    +     आत्मानम्       - इत्यात्मानम्
(ख)    अधोलिखितपदेषु विच्छदं कुरुत-
क)   अहमप्येतयोः     -   अहम्   +  अपि     +      एतयोः
ख)    वयोऽनुरोधात्     -   वयोः   +      अनुरोधात्
ग)    समानाभिजनौ    -   समान    +    अभिजनौ
घ)    खल्वेतत्          -      खलु     +      एतत्


NCERT SANSKRIT SHEMUSHI CLASS-10 CHAPTER - 4 JANANEE TULYAVATSALA

                                          

         
           कोई एक किसान दो बैलों से खेत की जुताई करता था। उन दोनों बैल में से एक शरीर से दुर्वल था और तीव्रगति से नहीं चल पा रहा था। इसलिए किसान उस दुवले बैल को कष्ट दे कर धकेलते हुए ले रहा था। वो बैल हल ढोकर जाने में असमर्थ होकर खेत में गिर गया। क्रुद्ध किसान उसको उठाने के लिए बहुत कोशिश किया । फिर भी बैल उठा नहीं।
खेत में गिरा हुआ अपने बेटे को दुखी देखकर सभी गायों की माता सुरभि के दोनों आँखों से आँसू आने लगे। सुरभी की एसी अवस्था देखकर देवताओं के राजा उनको पूछा- " हे कल्याणकारीणि! ऐसे क्यों रो रही हैं ? कहें ।
और वह,
श्लोकः - हे इन्द्रदेव! भूमि में कोई गिरा हुआ आपको दिखाई नहीं दिया। लेकिन मैं पुत्र को याद कर रही हूँ, 
हे इन्द्र! इसलिए रो रही हूँ
"हे इन्द्र! पुत्र का दुख देख कर मैं रो रही हूँ। वो दुखी यह जानकर भी किसान उसको बहुत कष्ट देता है। वो कठिनाई से भार उठाता है। दूसरों के समान जुए को ढोने के लिए वो समर्थ नहीं है। यह आप देखे नहीं क्या?" ऐसा जवाब दिया।
" हे कल्याणकारीणि! निश्चय ही। हजार से अधिक पुत्र रहते हुए आपका इस पर ही इस प्रकार स्नेहभाव किसलिए?" ऐसा इन्द्र के द्वारा पूछेे जाने से सुरभि उत्तर दिया -
श्लोकः - यदि मेरे हजार बेटे हैं , सबके प्रति मेरा प्रेमभाव समान है। परन्तु हे इन्द्र! दुखी पुत्र पर मेरी कृपा अधिक होता है॥
" मेरे बहुत बेटे हैं यह सत्य है। तथापि इस पुत्र पर मैं विशेष कर कष्ट को अनुभव कर रही हूँ। क्योंकि यह दूसरे बेटों से दुर्बल है। सभी पुत्रों पर जननी समान रूप से प्यार करने वाली होती है। तथापि दुर्बल पुत्र पर माता का अत्यधिक कृपा अवश्यम्भावी है"। सुरभि के वाक्यों को सुनकर अत्यधिक आश्चर्य हुए इन्द्र का भी हृदय द्रवीभूत होगया। और वो सुरभि को इस प्रकार सान्त्वना दी - " जाओ बेटी! सवकुछ शुभ होगा।"
शीघ्र ही तीव्र हवा से और बादलों के गर्जन के साथ वर्षा होने लगा। देखते ही चारोंतरफ जलसंकट आगया। किसान खुसि से जोतने के काम छोड कर दोनों बैलों को ले कर घर चला गया।
श्लोकः - जननी सभी सन्तानों पर समस्नेहयुक्ता है। परन्तु दुखी पुत्र पर उस माता का हृदय कृपा से भर जाता है॥

अभ्यासः

१. अधोलिखितानां प्रश्नानामुत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत-
क) कृषकः किं करोति स्म?
उत्तरम्- कृषकः बलीवर्दाभ्याम् क्षेत्रकर्षणं करोति स्म।
ख) माता सुरभिः किमर्थं अश्रूणि मुञ्चति स्म?
उत्तरम्- भूमौ पतिते स्वपुत्रं दृष्ट्वा माता सुरभिः अश्रूणि मुञ्चति स्म।
ग) सुरभिः इन्द्रस्य प्रश्नस्य किमुत्तरं ददाति?
उत्तरम्- सुरभिः इन्द्रस्य प्रश्नस्य एतदुत्तरं ददाति यत् " भो वासव! पुत्रस्य दैन्यं दृष्ट्वा अहं रोदिमि" ।
घ) मातुः अधिका कृपा कस्मिन् भवति?
उत्तरम्- मातुः अधिका कृपा दीनेपुत्रे भवति।
ङ) इन्द्रः दुर्बलवृषभस्य कष्टानि अपाकर्तुम् किं कृतवान्?
उत्तरम्- इन्द्रः दुर्बलवृषभस्य कष्टानि अपाकर्तुम् वृष्टिः कृतवान्।
च) जननी कीदृशी भवति?
उत्तरम्- जननी तुल्यवत्सला भवति।
छ) पाठेऽस्मिन् कयोः संवादः विद्यते?
उत्तरम्- पाठेऽस्मिन् इन्द्रसुरभ्योः संवादः विद्यते।
२. क" स्तम्भे दत्तानां पदानां मेलनं "ख" स्तम्भे दत्तैः समानार्थकपदैः कुरुत-
   क स्तम्भ      ख स्तम्भ
क) कृच्छ्रेण      ६) काठिन्येन
ख) चक्षुभ्याम्    ३) नेत्राभ्याम्
ग)  जवेन       ५) द्रुतगत्या
घ)  इन्द्रः       २)  वासवः
ङ)  पुत्राः        ७)  सुताः
च) शीघ्रम        ४) अचिरम्
छ) बलीवर्दः      १)  वृषभः
३. स्थूलपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-
क) सः कृच्छ्रेण भारम् उद्वहति।
प्रश्नम्- सः केन कथं वा भारम् उद्वहति?
ख) सुराधिपः ताम् अपृच्छत्।
प्रश्नम्- कः ताम् अपृच्छत्?
ग) अयम् अन्येभ्यो दुर्बलः।
प्रश्नम्- अयम् केभ्यो दुर्बलः?
घ) धेनूनाम् माता सुरभिः आसीत्।
प्रश्नम्- कासाम् माता सुरभिः आसीत्?
ङ) सहस्राधिकेषु पुत्रेषु सत्स्वपि सा दुःखी आसीत्।
प्रश्नम्- केषु पुत्रेषु सत्स्वपि सा दुःखी आसीत्?
४. रेखाङ्कितपदे यथास्थानं सन्धिं विच्छेदं वा कुरुत-
क) कृषकः क्षेत्रकर्षणं कुर्वन्+आसीत्।  -  कुुर्वन्नासीत्
ख)तयोरेकः वृषभः दुर्बलः आसीत्।    -  तयोः + एकः
ग) तथापि वृषः न+उत्थितः।        -   नोत्थितः
घ) सत्स्वपि बहुषु पुत्रेषु अस्मिन् वात्सल्यं कथं?   -  सत्सु + अपि
ङ) तथा+अपि+अहम्+एतस्मिन् स्नेहम् अनुभवामि।  -  तथाप्यहमेतस्मिन्
च) मे बहूनि+अपत्यानि सन्ति।  -  बहून्यपत्यानि
छ) सर्वत्र जलोपप्लवः संजातः।  -  जल + उपप्लवः
५. अधोलिखितेषु वाक्येेषु रेखाङ्कितसर्वनामपदं कस्मै प्रयुक्तम्-
क) सा च अवदत् भो वासव! अहं भृशं दुःखिता अस्मि। - सुरभ्यै
ख) पुत्रस्य दैन्यं दृष्ट्वा अहं रोदिमि। - सुरभ्यै
ग) सः दीनः इति जानन् अपि कृषकः तं पीडयति। - वृषभाय
घ) मे बहूनि अपत्यानि सन्ति। - सुरभ्यै
ङ) सः च ताम् एवम् असान्त्वयत्। - इन्द्राय
च) सहस्रेषु पुत्रेषु सत्स्वपि तव अस्मिन प्रीतिः अस्ति। - सुरभ्यै

६. उदाहरणमनुसृत्य पाठात् चित्वा प्रकृति प्रत्यय विभागं कुरुत-
यथा- सुरभिवचनं श्रुत्वा इन्द्रः विस्मितः। (श्रु+क्त्वा)
क) बलीवर्दाभ्यां क्षेत्रकर्षणं कुर्वन्नासीत्। ( कृ+शतृ+आसीत्)
ख) स्वपुत्रं दृष्ट्वा सर्वधेनूनां मातुः नेत्राभ्यां अश्रूणि आविरासन्। (दृश्+क्त्वा)
ग) सः दीनःइति जानन् अपि पीडयति। (ज्ञा+शतृ)
घ) धुरं वोढुं सः न शक्नोति। (वहः+तुमुन्)
ङ) विशिष्य आत्मवेदनामनुभवामि। (वि+शिष्+ल्यप्)
च) वृषभौ नीत्वा गृहमगात्। (नी+क्त्वा)

७. "क" स्तम्भेविशेषणपदं लिखितम्, "ख" स्तम्भे पुनः विशेष्यपदम्। तयोः मेलनं कुरुत-
         क स्तम्भ    -          ख स्तम्भ
क)     कश्चित्      -       ७)   कृषकः
ख)     दुर्बलम्       -       १)   वृषभम्
ग)       क्रुद्धः        -        ३)  कृषीवलः
घ)   सहस्राधिकेषु   -      ६)   पुत्रेषु
ङ)    अभ्यधिका     -      २)   कृपा
च)     विस्मितः     -       ४)  आखण्डलः
छ) तुल्यवत्सला    -       ५)   जननी

Thursday, June 3, 2021

NCERT SANSKRIT SHEMUSHI CLASS-9 CHAPTER-5 BHRANTO BALAH

                  

हिन्दी अनुवाद  -


                  कोई भ्रमित बालक पाठशाला जाने के समय पर खेलने के लिए निकल गया। किन्तु उसके साथ खेल द्वारा समय बिताने के लिए तब मित्रों में से कोई भी उपलब्ध नहीं था। क्योंकि वे सभी भी पहले दिन के पाठों को याद करके विद्यालय जाने के लिए शीघ्रता से तैयारी कर रह थे। आलसी बालक लज्जा से उनके दृष्टि से बचता हुआ अकेला ही कीसी उद्यान में प्रवेश कर गया।

उसने सोचा - ये वेचारे पुस्तकों के गुलाम रुके। मैं दुबारा अपना मनोरंजन करुँगा। क्रोधित आचार्य के मुख को निश्चित रूप से पुनः देखुँगा। वृक्ष के कोटर में रहने वाले यह प्राणी ही मेरे मित्र बन जाएँगे।
तब उसने पुष्पउद्यान को जाते हुए भँवरे को देखकर उसे खेलने को बुलाया। दो तीन बार इसके बुलाने पर भी उसने ध्यान नहीं दिया।
फिर बार-बार बालक के हठ करने पर वो गुनगुनाया- हम मधु संग्रह करने में व्यस्त हैं।
तब उस बालक ने "झूठे गर्व वाले इस कीड़े को छोड़ो" यह सोच कर अन्यत्र दृष्टि डालते ही एक चिड़िया को चोंच से घास तिनका आदि उठाता हुआ देखा। और कहा- " रे चिड़िया के बच्चे ! मुझ मनुष्य के मित्र बनोगे। आओ खेलते हैैं। यह शुखे तिनके को छोड़ो। मैं तुम्हें स्वादिष्ट खाने की चीजें दुँगा"।
वह भी " बरगद वृक्ष की शाखा पर मुझे घोंसला बनाना है; अतः मैं काम पर जा रहा हूँ" एसा कहकर वह अपने कार्यों में लग गया।
तब दुःखी बालक कहता है, ये पक्षियाँ मनुष्यों के समीप नहीं जाते हैं। अतः मैं मनुष्यों के योग्य अन्य मनोरंजन करने वाले को ढूँढता हूँ। एसा सोच कर परिक्रमा करते ही भागते हुए किसि कुत्ते को देखा। आनन्दित बालक उसे इस प्रकार संबोधित किया- हे मनुष्यों के मित्र! तुम एसे गर्मी के दिन में क्यों घूम रहे हो? इस घने और शीतल छाया वाले वृक्ष का आश्रय ले लो।
मैं भी खेल में सहयोगी के लिए तुम्हे ही उपयुक्त समझता हूँ। कुत्ते ने कहा- जो पुत्रतुल्य मेरा पालनपोषण करता है उस स्वामी के घर के रक्षा के कार्यों में लगे होने से मुझे थोड़ा सा भी नहीं हटना चाहिए।
सभी के द्वारा ऐसे मना किया जाने के बाद वह बालक टूटे मनोरथ वाला होकर- " कैसे इस संसार में प्रत्येक प्राणी अपने अपने कर्तव्यों में व्यस्त है। कोई भी मेरी तरह बिना कारण समय नष्ट नहीं कर रहा है। इन सब को प्रणाम जिन के द्वारा मेरा आलस के प्रति घृणा भाव उत्पन्न हुआ है। अतः मैं भी स्वयं के लिए उचित काम करता हूँ यह विचार करके शीघ्र ही पाठशाला चलागया।
तब से लेकर वह विद्यारत होकर विशाल सम्पदा, विद्वता और प्रसिद्धि प्राप्त करता है।

अभ्यासः

१. अधोलिखितानां प्रश्नानामुत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत-
क) बालः कदा क्रीडितुं निर्जगाम?
उत्तरम्- बालः पाठशालागमनवेलायां क्रीडितुम् निर्जगाम।
ख) बालस्य मित्राणि किमर्थं त्वरमाणा बभूवुः?
उत्तरम्- बालस्य मित्राणि पूर्वदिनपाठान् स्मृत्वा विद्यालयगमनाय त्वरमाणा बभूवुः।
ग) मधुकरः बालकस्य आह्वानं केन कारणेन न अमन्यत?
उत्तरम्- मधुकरः मधुसंग्रहे व्यग्रो भूत्वा बालकस्य आह्वानम् न अमन्यत।
घ) बालकः कीदृशं चटकम् अपश्यत्?
उत्तरम्- बालकः चञ्च्वा तृणशालकादिकमाददानम् चटकम् अपश्यत्।
ङ) बालकः चटकाय क्रीडनार्थं कीदृशं लोभं दत्तवान्?
उत्तरम्- बालकः चटकाय क्रीडनार्थं स्वादिष्टभक्षकवलानां लोभं दत्तवान्।
च) खिन्नः बालकः श्वानं किम् अकथयत्?
उत्तरम्- खिन्नः बालकः श्वानं इदं अकथयत्- "रे मानुषाणां मित्र! अस्मिन् निदाघदिवसे किमर्थं पर्यटसि? आश्रयस्वेदं प्रच्छायशीतलं तरुमूलम्"।
छ) विघ्नितमनोरथः बालः किम् अचिन्तयत्?
उत्तरम्- विघ्नितमनोरथः बालः इदं अचिन्तयत्- "कथमस्मिन् जगति प्रत्येकं स्व-स्वकृत्ये निमग्नो भवति। कोऽपि अहमिव वृथा कालक्षेपं न सहते। एतेभ्यो नमः यैः मम तन्द्रालुतायां कुत्सा समापादिता। अथ स्वोचितमहमपि करोमि"।

२. श्लोकस्य अर्थः -
जो पुत्रतुल्य मेरा पालनपोषण करता है, उस स्वामी के घर की रक्षा के कार्यों में लगे होने से थोडा सा भी मुझे नहीं हटना चाहिए॥

४. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-
क) स्वादूनि भक्षकवलानि ते दास्यामि।
प्रश्नम्- किदृशानि भक्षकवलानि ते दास्यामि?
ख) चटकः स्वकर्मणि व्यग्रः आसीत्।
प्रश्नम्- चटकः कस्मिन कुत्र वा व्यग्रः आसीत्?
ग) कुक्कुरः मानुषाणां मित्रम् अस्ति।
प्रश्नम्- कुक्कुरः केषां मित्रम् अस्ति?
घ) स महतीं वैदुषीं लब्धवान्।
प्रश्नम्- सः किं लब्धवान्?
ङ) रक्षानियोगकरणात् मया न भ्रष्टव्यम् इति।
प्रश्नम्- कस्मात् मया न भ्रष्टव्यम् इति?

५. नमः इत्यस्य योगे चतुर्थीविभक्तेः प्रयोगं कृत्वा पञ्चवाक्यानि रचयत।
उत्तरम्- १. गुरुभ्यो नमः।
२. पितृभ्यो नमः।
३. सृष्टिरचनाकाराय नमः।
४. नमः तव कार्यकुशलतायै।
५. देशरक्षकेभ्यो नमः।

६. "क" स्तम्भे समस्तपदानि "ख" स्तम्भे च तेषां विग्रहः दत्तानि, तानि यथासमक्षं लिखत-
उत्तरम्-          "क" स्तम्भ                     "ख" स्तम्भ
                   (क) दृष्टिपथम्                  ३) दृष्टेः पन्थाः
                   (ख) पुुस्तकदासाः              ४) पुस्तकानां दासाः
                   (ग) विद्याव्यसनी             २) विद्यायाः व्यसनी
                   (घ) पुष्पोद्यानम्             १)    पुष्पाणाम् उद्यानम्

७. (क) विशेषणपदम् विशेष्यपदं च पृथक्-पृथक् चित्वा लिखत-
                                              विशेषणम्            विशेष्यम्
१) खिन्नः बालः          -               खिन्नः                 बालः
२)  पलायमानं श्वानम्       -       पलायमानं          श्वानम्
३)  प्रीतः  बालकः              -          प्रीतः                  बालकः
४)  स्वादूनि भक्षकवलानि  -       स्वादूनि              भक्षकवलानि
५)  त्वरमाणाः वयस्याः       -      त्वरमाणाः            वयस्याः

(ख) कोष्ठकगतेषु पदेषु सप्तमीविभक्तेः प्रयोगं कृत्वा रिक्तस्थानपूर्तिं कुरुत-
(१) बालः पाठशालागमनवेलायां क्रीडितुं निर्जगाम।
(२) अस्मिन् जगति प्रत्येकं स्वकृत्ये निमग्नो भवति।
(३) खगः शाखायां नीडं करोति।
(४) अस्मिन् निदाघदिवसे किमर्थं पर्यटसि?
(५) नगेषु हिमालयः उच्चतमः।


NCERT SANSKRIT SHEMUSHI CLASS-9 CHAPTER- 4 सूक्तिमौक्तिकम्


हिन्दी अनुवाद -

१) चरित्र का रक्षण यत्नपूर्वक करना चाहिए, धन तो आता और जाता है। क्योंकि धन से सम्पन्न होने वाला व्यक्ति यदि सदाचार से सम्पन्न न हो तो उसका सबकुछ नष्ट हो जाता है॥ ( मनुस्मृतिः )
२. धर्म के तत्व को समझें और उसके गुणों को ग्रहण करेँ व धारण कर लें। जो कुछ अपने अनुकूल न हो, वैैसा व्यवहार दूसरों के प्रति नहीं करनी चाहिए॥ ( विदुरनीतिः )
३. प्रिय वाणी बोलने से सभी प्राणी सन्तुष्ट होते हैं। इसलिए प्रिय वाक्य बोलना चाहिए, प्रिय वाणी बोलने में दरिद्रता क्यों करें॥ ( चाणक्यनीतिः )
४. नदियाँ जैसे स्वयं अपना जल नहीं पीते हैं, पेड़ स्वयं अपना फल नहीं खाते हैं। जल वहन करने वाले बादल खुद से उगाया गया अनाज नहीं खाते, वैसे ही सज्जनों का सम्पत्तियाँ (अथवा जीवन ) परोपकार के लिए होता है॥ ( सुभाषितरत्नभाण्डागारम् )
५. मनुुष्य को सर्वदा गुणों को प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करना चाहिए, क्योंकि दरिद्र होते हुए भी गुणयुक्त व्यक्ति ऐश्वर्यशाली से श्रेष्ठ होता है॥ ( मृच्छकटिकम्)
६. दुष्टजनों की मित्रता पहले लम्बी होकर धीरे-धीरे(अथवा क्रमशः) घटती स्वभाव वाली होती है, सज्जन की मित्रता पहले छोटी और बाद में लम्बी होती है। दुष्टों और सज्जनों की मित्रता दिन का पहले भाग की छाया और अपराह्ण छाया की तरह अलग-अलग होती है। ( नीतिशतकम्)
७. हँस जहाँ-कहीं भी जाएँ, पृथ्वी को सुशोभित करने के लिए होते हैं। हानि तो उन सरोवरों की है, जहाँ से हँस अलग होते हैं॥ ( भामिनीविलासः )
८. गुण गुणी जनों में गुण ही होते हैं, वह गुण निर्गुण व्यक्ति को प्राप्त कर के दोष बन जाते हैं। जैसे नदियाँ स्वादयुक्त जल वाली होती हैं, जो समुद्र को प्राप्त करके न पीने योग्य बन जाते हैं॥ ( हितोपदेशः)

अभ्यासः

१. अधोलिखितप्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत-
(क) यत्नेन किं रक्षेत् वित्तं वृत्तं वा?
उत्तरम्- यत्नेन वृत्तं रक्षेत् न वित्तम्।
(ख) अस्माभिः ( किं न समाचरेत्) कीदृशम् आचरणम् न कर्त्तव्यम्?
उत्तरम्- अस्माभिः आत्मनः प्रतिकूलम् आचरणम् न कर्तव्यम्।
(ग) जन्तवः केन विधिना तुष्यन्ति?
उत्तरम्- जन्तवः प्रियवाक्यप्रदानेन तुष्यन्ति।
(घ) पुरुषैः किमर्थं प्रयत्नः कर्तव्यः?
उत्तरम्- पुरुषैः गुणेष्वेव हि प्रयत्नः कर्तव्यः।
(ङ) सज्जनानां मैत्री कीदृशी भवति?
उत्तरम्- सज्जनानां मैत्री दिनस्य परार्ध छायेव लघ्वी पुरा पश्चात् च वृद्धिमती भवति।
(च) सरोवराणां हानिः कदा भवति?
उत्तरम्- सरोवराणां हानिः तदा भवति यदा हंसैः सह तेषां वियोगः भवति।
(छ) नद्याः जलं कदा अपेयं भवति?
उत्तरम्- नद्याः जलं समुद्रमासाद्य अपेयं भवति।

२. "क" स्तम्भः (विशेषणानि) "ख" स्तम्भः (विशेष्याणि)
क) आस्वाद्यतोयाः - ३) नद्यः
ख) गुणयुक्तः - ४) दरिद्रः
ग) दिनस्य पूर्वार्धभिन्ना - १) खलानां मैत्री
घ) दिनस्य परार्धभिन्ना - २) सज्जनानां मैत्री
४. भिन्नप्रकृतिकं पदम्-
क) सर्वस्वम्
ख) वचने
ग) धनवताम्
घ) परितः

५. प्रश्ननिर्माणं कुरुत-
क) वृत्ततः क्षीणः हतः भवति।
प्रश्नम्- कस्मात् क्षीणः हतः भवति?
ख) धर्मसर्वस्वं श्रुत्वा अवधार्यताम्।
प्रश्नम्- किं श्रुत्वा अवधार्यताम्?
ग) वृक्षाः फलं न खादन्ति।
प्रश्नम्- के फलं न खादन्ति?
घ) खलानाम् मैत्री आरम्भगुर्वी भवति।
प्रश्नम्- केषां मैत्री आरम्भगुर्वी भवति?

६. वाक्यानि लोट्लकारे परिवर्तयत-
यथा- सः पाठं पठति। - सः पाठं पठतु।
क) नद्यः आस्वाद्यतोयाः सन्ति। - नद्यः आस्वाद्यतोयाः सन्तु।
ख) सः सदैव प्रियवाक्यं वदति। - सः सदैव प्रियवाक्यं वदतु।
ग) त्वं परेषां प्रतिकूलानि न समाचरसि। - त्वं परेषां प्रतिकूलानि न समाचर।
घ) ते वृत्तं यत्नेन संरक्षन्ति। - ते वृत्तं यत्नेन संरक्षन्तु।
ङ) अहं परोपकाराय कार्यं करोमि। - अहं परोपकाराय कार्यं करवाणि।

७. उदाहरणमनुसृत्य कोष्ठकेषु दत्तेषु शब्देषु उचितां विभक्तिं प्रयुज्य रिक्तस्थानानि पूरयत-
यथा- तेषां मरालैः सह विप्रयोगः भवति। (मराल)
(क) अध्यापकेन सह छात्रः शोधकार्यं करोति। (अध्यापक)
(ख) पित्रा सह पुत्रः आपणं गतवान्। (पितृ)
(ग) किं त्वम् मुनिना सह मन्दिरं गच्छसि? (मुनि)
(घ) बालः मित्रेण सह खेलितुं गच्छति। (मित्र)

NCERT Sanskrit Shemushi Class - 9 Chapter - 10 वांगमनः प्राणस्वरूपम्


हिन्दी अनुवाद -


          श्वेतकेतुः - मैं श्वेतकेतु आप को नमस्कार करता हूं।
 आरुणिः   - पुत्र! लम्बी आयु जिओ।
 श्वेतकेतुः - कुछ  प्रश्न पुछना चाहता हूं ।
 आरुणिः - पुत्र! आज तुम्हारे लिए पूछने योग्य क्या है?
 श्वेतकेतुः - भगवन्! पुछना चाहता हूँ कि यह मन क्या है? 
आरुणिः - वत्स! खाये हुए अन्न का जो सबसे लघु कण है, वह मन है।
 श्वेतकेतुः - और प्राण कैसा है?
 आरुणिः - पिये हुए जल का जो सबसे छोटा कण वह प्राण है।
 श्वेतकेतुः - भगवन! यह वाणी क्या होता है? 
आरुणिः - खाये हुए अन्न के तेज का जो सबसे छोटा कण है वह वाणी है। सौम्य! मन अन्न से निर्मित है, प्राण जल से निर्मित है, और वाणी अग्नि का परिणामभूत है यह समझने योग्य है।
 श्वेतकेतुः - पुनः मुझे समझाइये।
 आरुणिः - सौम्य! सावधानि से सूनो। मंथन किया हुआ दूध का जो सबसे छोटा कण है, वह ऊपर उठता है। वह घी है।
 श्वेतकेतुः - भगवन्! आप घी की उत्पत्ति का रहस्य व्याख्या कर समझाइये। मैं पुनः सुनना चाहता हूँ। 
आरुणिः - सौम्य! खाये जाते हुए अन्न का जो सबसे लघु कण, वह ऊपर उठता है। वह मन है। समझ आया या नहीं? श्वेतकेतुः - अच्छे से समझ आ गया भगवन्!
 आरुणिः - वत्स! पीये हुए जल का जो सबसे छोटा कण ,वह ऊपर उठता है वह ही प्राण है।
 श्वेतकेतुः - भगवन्! वाणी भी समझाइये।
 आरुणिः - सौम्य! खाये हुए अन्न का सबसे छोटा कण जो ऊपर उठता है वह निश्चय ही वचन/वाणी है। वत्स! व्याख्यान के अन्त में एक वार और तुम्हें समझाने की इच्छा है। अन्न से निर्मित मन है, प्राण जल में परिणत होता है और अग्नि का परिणामभूत वाणी है। और क्या मानव जिस प्रकार अन्नादि ग्रहण करता है उस प्रकार ही उसका मन आदि होते हैं यह मेरे उपदेश का सार है। वत्स! यह सब हृदय में धारण कर रखना।
 श्वेतकेतुः - जैसी आज्ञा भगवन्। आप को प्रणाम। 
आरुणिः - वत्स! दीर्घायु हो। हम दोनों द्वारा पढ़ा गया ज्ञान तेजस्विता से युक्त हो। 
                          
 अभ्यासः

1.   अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत -
       क)  श्वेतकेतुः सर्वप्रथमम् आरुणिं कस्य स्वरूपस्य विषये पृच्छति? 
उत्तरम् - श्वेतकेतुः सर्वप्रथमम् आरुणिः मनसः स्वरूपस्य विषये पृच्छति।
      ख)  आरुणिः प्राणस्वरूपं कथं निरूपयति? 
उत्तरम् - पीतानां अपां यः अणिष्ठः स प्राणः इति आरुणिः प्राणस्वरूपं निरूपयति। 
       ग)  मानवानां चेतांसि कीदृशानि भवन्ति?
उत्तरम् - मानवानां चेतांसि अन्नमयानि भवन्ति।
       घ) सर्पिः किं भवति? 
उत्तरम्- मथ्यमानस्य दध्नः योऽणिमा ऊर्ध्वः समुदीषति, तत् सर्पिः भवति। 
        ङ)  आरुणेः मतानुसारं मनः कीदृशं भवति? 
उत्तरम् - आरुणेः मतानुसारं मनः अन्नमयं भवति। 
2. ( क)  'अ ' स्तम्भस्य पदानि 'ब ' स्तम्भेन दत्तैः पदैः सह यथायोग्यम् योजयत -
                 'अ'                ' ब ' 
                 मनः            अन्नमयम्
                 प्राणः           आपोमयः 
                वाक्             तेजोमयी 
(ख )  अधोलिखितानां पदानां विलोमपदं पाठात् चित्वा लिखत - 
       1.  गरिष्ठः -    अणिष्ठः 
       2.  अधः  -     ऊर्ध्वः 
       3.  एकवारम्  -  भूयः 
       4.  अनवधीतम्  -  अवधीतम् 
      5.   किञ्चित्    -  सर्वम्
3. उदाहरणमनुसृत्य निम्नलिखितेषु क्रियापदेषु ' तुमन्' प्रत्ययं योजयित्वा पदनिर्माणं कुरुत -
     यथा - प्रच्छ् + तुमुन्  = प्रष्टुम् 
     क) श्रु + तुमुन् = श्रोतुम्
     ख) वन्द् + तुमुन् = वन्दितुम् 
     ग) पठ् + तुमुन् = पठितुम् 
     घ) कृ + तुमुन् = कर्तुम् 
     ङ) वि + ज्ञा + तुमुन् = विज्ञातुम्
     च) वि + आ + ख्या + तुमुन् = व्याख्यातुम् 
4.   निर्देशानुसारं रिक्तस्थानानि पूरयत -
     क)  अहं किञ्चित् प्रष्टुम्  इच्छामि।
     ख) मनः अन्नमयं भवति। 
     ग) सावधानं श्रृणु। 
     घ) तेजस्विनावधीतम् अस्तु।
     ङ) श्वेतकेतुः आरुणेः शिष्यः आसीत्। 
5.    उदाहरणमनुसृत्य  वाक्यानि रचयत -
         यथा - अहं स्वदेशं सेवितुं इच्छामि। 
        क)  अहं पुत्रं उपदिशामि। 
        ख)  अहं मातरं प्रणमामि ।
           ग) अहं छात्रं आज्ञापयामि। 
         घ) अहं पितरं प्रश्नं पृच्छामि। 
        ङ ) अहं पितुः संकेतं अवगच्छामि। 
6.  ( क) सन्धिं कुरुत -
         १) अशितस्य  + अन्नस्य = अशितस्यान्नस्य
         २) इति + अपि + अवधार्यम् = इत्यप्यवधार्यम् 
         ३) का + इयम् = केयम्
         ४) नौ + अधीतम् = नावधीतम्
         ५) भवति + इति = भवतीति
      (ख)  स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत -
          १) मथ्यमानस्य दध्नः अणिमा ऊर्ध्वं समुदीषति।
प्रश्नम् -  कस्य अणिमा ऊर्ध्वं समुदीषति?
     २) भवता घृतोत्पत्तिरहस्यं व्याख्यातम्। 
प्रश्नम् - केन घृतोत्पत्तिरहस्यं व्याख्यातम्? 
     ३) आरुणिं उपगम्य श्वेतकेतुः अभिवादयति। 
प्रश्नम् - आरुणिं उपगम्य कः अभिवादयति? 
     ४) श्वेतकेतुः वाग्विषये पृच्छति। 
प्रश्नम्- श्वेतकेतुः कस्मिन्विषये/किं पृच्छति ?

Monday, May 10, 2021

NCERT SANSKRIT: SHEMUSHI CLASS -10 CHAPTER -1 SHUCHIPARYAVARANAM

हिन्दी अनुवाद -


              महानगरों में जीवन कठिन हो गया है व प्रकृति ही हमारा सहारा है। शुद्ध पर्यावरण चाहिए॥ महानगरों के बीच में दिन-रात चलता हुआ लोहे का पहिया मन को सुखाता हुआ और तन को पीसता हुआ हमेशा टेढ़ा रूप धारण करती है॥ इसके भयानक दाँतों से कहीं मानव जाति का विनाश न हो जाए। शुद्ध पर्यावरण चाहिए॥१॥

सैकड़ों मोटर गाड़ियाँ काजल- सा मैला धुआँ छोड़ती हैं। रेलगाड़ी की पंक्ति आवाज़ करती हुई दौड़ती हैं॥ क्योंकि वाहनों का पंक्ति असंख्य है, इसिलिए चलना मुश्किल हो जाता है। पर्यावरण को शुद्ध करना होगा॥२॥


वायुमण्डल अत्यधिक मैला हो गया है, साफ जल भी नहीं है। खाद्यपदार्थ निन्दनीयवस्तु से मिला हुआ है, धरती गन्दगी से युक्त है॥ संसार में बाहर और अन्दर बहुत साफ करना चाहिए। शुद्ध पर्यावरण चाहिए॥३॥

मुझे कुछ समय इस नगर से बहुत दूर ले चलो। गाँव की सीमा पर झरणा-नदी-जल से भरा हुआ तालाब देखुँ॥ निर्जन वन में मेरा थोड़ी देर के लिए भी विचरण होना चाहिए। शुद्ध पर्यावरण चाहिए॥४॥

हरेभरे पेड़ों कि तथा सुंदर लताओं कि पंक्ति शोभनीय है। हवा से चलायी हुई फूलों की पंक्ति मेरे लिए वरण करने योग्य है॥ आम के साथ मिली हुई सुंदर चमेली का सुंदर मेल हो। शुद्ध पर्यावरण चाहिए॥५॥

अरे मित्र! पक्षियों के समूह की सुंदर ध्वनि से गुंजते हुए वन प्रदेश की ओर चलो। जिसने नगर के शोर से त्रस्त लोगों के लिए शुभ समाचार धारण किया है॥ चकाचौंधभरि दुनिया जीवन के सार का विनाश न करदें॥६॥

पत्थरों के तल पर लता,वृक्ष और झाड़ी न पिसजाएँ। पत्थरीली सभ्यता प्रकृति में न समाजाए॥ मैं मनुष्य के जीवन के लिए कामना करता हूँ, मनुष्य के मृत्यु नहीं; कवि युँ कहते हैं॥७॥

                                 अभ्यासः

१. अधोलिखितानां प्रश्नानाम उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत -
क) कविः किमर्थं प्रकृतेः शरणमिच्छति?
उत्तरम्- महानगरे जीवनं कठिनं जातम्। एतदर्थं कविः प्रकृतेः शरणमिच्छति।                                                    ख) कस्मात् कारणात् महानगरेषु संसरणं कठिनं वर्तते?                                                                             उत्तरम - यानानां पङ्क्तयः ही अनन्ताः। अस्मात् कारणात् महानगरेषु संसरणं कठिनं वर्तते।                             ग) अस्माकं पर्यावरणे किं किं दूषितमस्ति?                                                                                            उत्तरम - अस्माकं पर्यावरणे वायुमण्डलं जलं भक्षं धरातलञ्च दूषितमस्ति।                                                      घ) कविः कुत्र सञ्चरणं कर्तुमिच्छति?                                                                                                      उत्तरम - कविः एकान्ते वने सञ्चरणं कर्तुमिच्छति।                                                                                      ङ) स्वस्थजीवनाय कीदृशे वातावरणे भ्रमणीयम्?                                                                                              उत्तरम - स्वस्थजीवनाय खगकुलकलरव गुञ्जितवनदेशयुक्त वातवरणे भ्रमणीयम्।                                      च) अन्तिम पद्यांशे कवेः का कामना अस्ति?उत्तरम - अन्तिमे पद्यांशे कविः मानवाय जीवनं कामये।

२. सन्धिं सन्धिविच्छेदं वा कुरुत-
क) प्रकृतिः + एव - प्रकृतिरेव
ख) स्यात् + न + एव - स्यान्नैव
ग) हि + अनन्ताः - ह्यनन्ताः
घ) बहिः + अन्तः +जगति - बहिरन्तर्जगति
ङ) अस्मात् + नगरात् - अस्मान्नगरात्
च) सम् + चरणम् - सञ्चरणम्
छ) धूमम् + मुञ्चति - धूमं मुञ्चति
३. अधोलिखितानां अव्ययानां सहायतया रिक्तस्थानानि पूरयत-
क) इदानीं वायुमण्डलं भृशं प्रदूषितमस्ति।
ख) अत्र जीवनं दुर्वहमस्ति ।
ग) प्राकृतिक-वातावरणे क्षणं सञ्चरणम् अपि लाभदायकं भवति ।
घ) पर्यावरणस्य संरक्षणम् एव प्रकृतेः आराधना।
ङ) सदा समयस्य सदुपयोगः करणीयः।
च) भूकम्पित-समये बहिः गमनमेव उचितं भवति।
छ) यत्र हरीतिमा तत्र शुचि पर्यावरणम्।
४. उदाहरणमनुसृत्य अधोलिखित-पदेषु प्रकृतिप्रत्ययविभागं संयोगं वा कुरुत-
यथा- जातम् - जन् + क्त
क) प्र + कृ + क्तिन् - प्रकृति
ख) नि + सृ + क्त + टाप् - निसृता
ग) दूष् + क्त - दूषितम्
घ) कृ + अनीयर् - करणीयम्
च) भक्ष् + यत् - भक्ष्यम्
छ) रम + अनीयर् + टाप् - रमणीया
ज) वृ + अनीयर् + टाप् - वरणीया
झ) पिष् + क्त - पिष्टाः

५. अ) अधोलिखितानां पदानां पर्यायपदं लिखत-

  क) सलिलम      -       जलम्
  ख) आम्रम        -        रसालम्
  ग) वनम         -        कान्तारम्
  घ) शरीरम      -        तनुः
  ङ) कुटिलम     -        वक्रम्
  च) पाषाणः     -        प्रस्तरः

आ) अधोलिखितपदानां विलोमपदानि पाठात चित्वा लिखत-

क) सुकरम् - दुष्करम्
ख) दूषितम् - शुद्धम्
ग) गृहणन्ती - वितरन्ती
घ) निर्मलम् - समलम्
ङ) दानवाय - मानवाय

६. उदाहरणमनुसृत्य पाठात् चित्वा च समस्तपदानि समस्तनाम च लिखत-
यथा- विग्रह पदानि समस्तपद समासनाम
क) मलेन सहितम् समलम् अव्ययीभाव
ख) हरिताः च ये तरवः (तेषां) हरिततरूणाम् तत्पुरष
ग) ललिताः च याः लताः (तासाम्) ललितलतानाम् तत्पुरुष
घ) नवा मालिका नवमालिका अव्ययीभाव
ङ) धृतः सुखसन्देशः येन (तम्) धृतसुखसन्देशम् बहुव्रीहि
च) कज्जलम् इव मलिनम् कज्जलमलिनम् तत्पुरुष
छ) दुर्दान्तैः दशनैः दुर्दान्तदशनैः बहुव्रीहि
७. रेखाङ्कित-पदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-
क) शकटीयानम् कज्जलमलिनं धूमं मुञ्चति।
प्रश्नम् - शकटीयानम् कीदृशं धूमं मुञ्चति?
ख) उद्याने पक्षीणां कलरवं चेतः प्रसादयति।
प्रश्नम - उद्याने केषां कलरवं चेतः प्रसादयति?
ग) पाषाणीसभ्यतायां लतातरुगुल्माः प्रस्तरतले पिष्टाः सन्ति।
प्रश्नम - पाषाणीसभ्यतायां के प्रस्तरतले पिष्टाः सन्ति?
घ) महानगरेषु वाहानानां अनन्ताः पङ्क्तयः धावन्ति।
प्रश्नम - कुत्र वाहानानां अनन्ताः पङ्कतयः धावन्ति?
ङ) प्रकृत्याः सन्निधौ वास्तविकं सुखं विद्यते।
प्रश्नम - कस्याः सन्निधौ वास्तविकं सुखं विद्यते?

Sunday, May 9, 2021

NCERT SANSKRIT SHEMUSHI CLASS-9 CHAPTER-6 LOUHTULA

         


               किसीेे स्थानपर जीर्णधन नामक वणिजपुत्र रहता था। और वह धन के अभाव के कारण दूसरे देश या विदेश जाने की ईच्छा रख कर सोचा -श्लोकः - जिस देश में अथवा स्थान में अपने पराक्रम से भोग भोगे जाते हैं वहाँ जो धनहीन रहता है वह पुरुष नीच होता है॥

और उस के घर में लोहे से बनी हुई पूर्वजों के द्वारा खरीदि गई तराजू थी।और उसे किसी सेठ के घर में धरोहर के रूप में रखकर विदेश चला गया। फिर बहुत दिनों तक दूसरे देशों में अपनी ईच्छा से घूम कर दुबारा अपने नगर आकर उस सेठ को बोला-"हे सेठ! धरोहर के रूप में आपके द्वारा रखा गया उस तराजू को मुझे दीजिए।" वह बोला- " है महाशय! वह नहीं है, तुम्हारी तराजू चूहे खा गये"।

जीर्णधन बोला-"हे सेठ! अगर चूहों के द्वारा मेरी तराजू खा ली गई तो आपका दोष नहीं है। यह संसार ऐसा ही है। यहाँ कुछ भी शाश्वत(अर्थात लम्वे समय तक) नहीं है। परन्तु मैं नदी में स्नान के लिए जाऊँगा। तो तुम स्नान की सामग्री से युक्त हाथ वाले अपने इस धनदेव नामक बच्चे को मेरे साथ भेज दो"।

वह सेठ अपने पुत्र को बोला-"यह तुम्हारे चाचा, स्नान के लिए जा रहे हैं, तो तुम इनके साथ चले जाओ"।
फिर वह वणिक शिशु स्नान सामग्री लेकर खुशि मन से उस अतिथि के साथ चला गया। वैसा करने पर वह व्यापारी नहाकर उस शिशु को पर्वत की गुफ़ा में रखकर उस द्वार को बहुत बड़ी शिला से ढककर जल्द घर आ गया।
और उस वणिक द्वारा पुछागया- " हे अतिथि! बताओ मेरा बच्चा कहाँ है जो तुम्हारे साथ नदी को गया था"?
वह बोला- "बाज आपके शिशु को नदी के तट से उठाकर ले गया"। सेठ ने बोला- " झूठे! क्या कोई बाज बालक को उठाने में समर्थ हो सकता है? इसलिए मेरा बेटा मुझे दो नहीं तो राजकुल में निवेदन करुँगा।"
वह बोला - "अरे सत्यवादि! जैसे बाज़ बालक को नहीं ले जा सकता वैसे ही चूहे भी लोहे का तराजू नहीं खाते हैं। यदि आपना पुत्र चाहते हो तो मुझे मेरा तराजू वापस दो।"

इसी तरह झगड़ा करते हुए वो दोनों राजकुल के ओर गए। वहाँ सेठ जोर से बोला- " अरे! घोर अन्याय! घोर अन्याय! मेरा शिशु इस चोर के द्वारा चुरा लिया गया।"
फिर धर्माधिकारिओं ने बोला- " भोः! सेठ का पुत्र उसे दे दो"।
वह बोला - " क्या करता! मेरे देेखते हुए नदी के तट से बाज के द्वारा शिशुको उठा लिया गया"।
वह सुनकर वे बोले- आप से सच नहीं बोला गया है- क्या बाज बच्चे को उठाने में समर्थ हो सकता है?
वह बोला - अरे अरे! मेरी बात सुनो -

श्लोकः -

हे राजा! जहाँ लोहे से बने तराजू को चूहे खाते हैं, वहाँ बाज बालक को उठा ले जा सकता , इसमें कोई संदेह नहीं॥
वे बोले - "यह कैसे"।
फिर उस सेठ ने सबके सामने आरम्भ से सारी बातचित कह सुनाई। फिर वे हँसकर और उन दोनों को भी समझा बुझा कर परस्पर(अर्थात आपस)में तराजूू-शिशु प्रदान पूर्वक सन्तुष्ट कर दिया।


अभ्यासः


१. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत-
क) देशान्तरं गन्तुमिच्छन् वणिक्पुत्रः किं व्यचिन्तयत्?
उत्तरम्- देशान्तरं गन्तुमिच्छन् वणिक्पुत्रः व्यचिन्तयत् एतत्-" यस्मिन् देशे अथवा स्थाने स्वपराक्रमेण भोगाः भुक्ता तस्मिन् यः विभवहीनः वसेत् स पुरुषाधमः तिष्ठति।"
ख) स्वतुलां याचमानं जीर्णधनं श्रेष्ठी किम् अकथयत्?
उत्तरम्- स्वतुलां याचमानं जीर्णधनं श्रेष्ठी अकथयत्- "भोः! नास्ति सा, त्वदीया तुला मूषकैर्भक्षिता"।
ग) जीर्णधनः गिरिगुहाद्वारं कया आच्छाद्य गृहमागतः?
उत्तरम्- जीर्णधनः गिरिगुहाद्वारं बृहत् शिलया आच्छाद्य गृहमागतः।
घ) स्नानानन्तरं पुत्रविषये पृष्टः वणिक्पुत्रः श्रेष्ठिनं किम् उवाच?
उत्तरम्- स्नानानन्तरं पुत्रविषये पृष्टः वणिक्पुत्रः श्रेष्ठिनमुवाच- "नदी तटात् तव शिशुः श्येनेन हृतः"।
ङ) धर्माधिकारिभिः जीर्णधनश्रेष्ठिनौ कथं सन्तोषितौ?
उत्तरम्- धर्माधिकारिभिः विहस्य जीर्णधनश्रेष्ठिनौ परस्परं संबोध्य तुला-शिशु-प्रदानेन सन्तोषितौ।


२. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-
क) जीर्णधनः विभवक्षयात् देशान्तरं गन्तुमिच्छन् व्यचिन्तयत्।
उत्तरम्- कः विभवक्षयात् देशान्तरं गन्तुमिच्छन् व्यचिन्तयत्?
ख) श्रेष्ठिनः शिशुः स्नानोपकरणमादाय अभ्यागतेन सह प्रस्थितः। उत्तरम्- श्रेष्ठिनः शिशुः स्नानोपकरणमादाय केन सह प्रस्थितः? ग) श्रेष्ठी उच्चस्वरेण उवाच- भोः अब्रह्मण्यम् अब्रह्मण्यम्। उत्तरम्- श्रेष्ठी उच्चस्वरेण किं उवाच? घ) सभ्यैः तौ परस्परं संबोध्य तुला-शिशु-प्रदानेन सन्तोषितौ। उत्तरम्- सभ्यैः तौ परस्परं संबोध्य केन संतोषितौ?

३. अधोलिखितानां श्लोकानाम् अपूर्णोऽन्वयः प्रदत्तः पाठमाधृत्य तं पूरयत- क) यत्र देशे अथवा स्थाने स्ववीर्यतः भोगाः भुक्ता तस्मिन् विभवहीनः यः वसेत् स पुरुषाधमः। ख) राजन्! यत्र लौहसहस्रस्य तुलां मूषकाः खादन्ति तत्र श्येेनः बालकं हरेत् अत्र संशयः न।

४. तत्पदं रेखाङ्कितं कुरुत यत्र- क) ल्यप् प्रत्ययः नास्ति - लौहसहस्रस्य ख) यत्र द्वितीया विभक्तिः नास्ति - सत्वरम ग) यत्र षष्ठी विभक्तिः नास्ति - स्ववीर्यतः

५. सन्धिना/ सन्धिविच्छेदेन वा रिक्तस्थानानि पूरयत- क) श्रेष्ठ्याह - श्रेष्ठी + आह ख) द्वावपि - दौ + अपि ग) पुरुषोपार्जिता - पुरुष + उपार्जिता घ) यथेच्छया - यथा + इच्छया ङ) स्नानोपकरणम - स्नान + उपकरणम् च) स्नानार्थम - स्नान + अर्थम्

६. समस्तपदं विग्रहं वा लिखत-
विग्रहः समस्तपदम्
क) स्नानस्य उपकरणम् - स्नानोपकरणम्
ख) गिरेः गुहायाम् - गिरिगुहायाम्
ग) धर्मस्य अधिकारी - धर्माधिकारी
घ) विभवैः हीनाः - विभवहीनाः

Saturday, May 8, 2021

NCERT, SANSKRIT SHEMUSHI CLASS-9 CHAPTER-9 PARYAVARANAM


                              प्रकृति सभी प्राणियों की संरक्षण के लिए प्रयत्न करती है। यह प्रकृति सभी का भिन्न प्रकार से पोषण करती है, और सुखसाधनों से सन्तुष्ट करती है। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश प्रकृति की प्रमुख तत्व हैं। वह सब ही मिलकर अथवा अलग से हमारे पर्यावरण की रचना करते हैं। संसार चारों ओर से प्रकृति के द्वारा अच्छी तरह ढका होना ही पर्यावरण है। जैसे अजन्मा शिशु माँ के गर्भ में सुरक्षित रहता है, वैसे ही मानव प्रकृतिके गर्म में सुरक्षित रहते हैं। साफ और प्रदूषण रहित पर्यावरण हमको  सांसारिक जीवनसुख, सद्विचार, सत्यसङ्कल्प और माङ्गलिक सामग्री प्रदान करता है। प्रकृति के क्रोध से आतङ्कित मनुष्य क्या करसकता है? बाढ़ से, अग्निभय से, भूकम्प से, आँधी से और उल्का गिरना आदि से संतप्त मानव का मङ्गल कहाँ?
अतएव हमें प्रकृति की रक्षा करनी चाहिए। उस्से पर्यावरण सुरक्षित होगा। प्राचीनकाल में जनता के मङ्गल चाहने वाले ऋषि वन में रहते थे। जिसके कारण वन में ही सुरक्षित पर्यावरण प्राप्त होती थी। अनेक प्रकार के पक्षियों के चहचहाहट कानों को अच्छा लगता था।

नदी, पर्वत और झरना अमृत जैसी मीठी निर्मल जल प्रदान करते हैं। पेड़ और पौधे फल, पुष्प और इन्धन के लिए लकड़ियाँ बहु मात्रा में उपहार देते हैं। वन के शीतल, धीर तथा सुगन्धित पवन औषध जैसा प्राणवायु बाँटते हैं।

परन्तु स्वार्थ में अन्धा मनुष्य उसी पर्यावरण का आज नाश करता है। थोड़े से लाभ के लिए लोग बहुमूल्य वस्तुओं को नाश कर देते हैं। कारखानों का प्रदूषित जल नदियों में गिरते हैं जिस्से मच्छलियों और जलचर प्राणियोंका पलभर में ही नाश हो जाता है।नदी का वह जल भी सर्वथा पीने योग्य नहीं रहता। व्यापार के वृद्धि के लिए निर्विवेक वन के पेड़ों को काटा जाता है जिस्से अनावृष्टि(अकाल पड़ना) बढ़ रहा है, और वन के पशु शरण रहित होकर गाँवों में उत्पात मचाते हैं। वृक्षों को काटने से शुद्ध वायु भी संकट में आ जाती हैै। और भी स्वार्थान्ध मनुष्यों के द्वारा विकार( अथवा परिवर्तन ) को प्राप्त हो कर प्रकृति ही उनका विनाशकारी हो जाती है।पर्यावरण का हानि होने से अनेक रोग और भीषण समस्या उत्पन्न होते हैं। वह सब अभी चिन्ता का विषय है।

     रक्षित किया हुआ धर्म ही हमारी रक्षा करता है, ऐसा ऋषियों का मानना है। पर्यावरण का रक्षा भी धर्म का एक अङ्ग है- यह ऋषियों ने प्रतिपादित किया था। तब ही वापी, कूप, तड़ाग आदि का निर्माण और मन्दिर, विश्रामगृह आदि का स्थापना धर्मसिद्धि के साधन के रूप में माने गये हैं। कुत्ता, सुअर, साँप, नेवला आदि स्थलचरों की और मच्छली, कछुआ, मगरमछ प्रभृति जलचरों की भी रक्षा करनी चाहिए। क्योंकि वो सव स्थल और जल की गन्दगी को दूर करते हैं। प्रकृति की रक्षा करने से ही लोगों की रक्षा करना संभव है इसमें कोई संदेह नहीं।

                                                     अभ्यासः

१.   अधोलिखितानां प्रश्नानामुत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत-

      क)  प्रकृतेः प्रमुखतत्वानि कानि सन्ति?

 उत्तरम्-  पृृथ्वी,जलं, तेजो, वायुः आकाशश्च प्रकृतेः प्रमुखतत्त्वानि सन्ति।

ख)   स्वार्थान्धः मानवः किं करोति?

  उत्तरम्-  स्वार्थान्धः मानवः अद्य पर्यावरणम् नाशयति।

ग)  पर्यावरणे विकृते जाते किं भवति?

   उत्तरम्-  पर्यावरणे विकृति जाते विविधा रोगा भीषणसमस्याश्च  जायन्ते।

घ )   अस्माभिः पर्यावरणस्य रक्षा कथं करणीया?

 उत्तरम्-   प्रकृतिरक्षया एव पर्यावरणस्य रक्षा अस्माभिः करणीया ।

ङ)  लोकरक्षा कथं संभवति?

  उत्तरम्-  प्रकृतिरक्षया एव लोकरक्षा संभवति।

च)  परिष्कृतं पर्यावरणम् अस्मभ्यं किं किं ददाति?

  उत्तरम्-  परिष्कृतं पर्यावरणम् अस्मभ्यं सांसारिक जीवनसुखं, सद्विचारं, सत्यसंकल्पं माङ्गलिकसामग्रीञ्च प्रददाति।

२.  स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-

     क)  वनवृक्षाः निर्विवेकं छिद्यन्ते।

    प्रश्नम्-  के निर्विवेकं छिद्यन्ते?

    ख)  वृक्षकर्तनात् शुद्धवायुः न प्राप्यते।

   प्रश्नम्-  कस्मात् शुद्धवायुः न प्राप्यते?

   ग)  प्रकृतिः जीवनसुखं प्रददाति।

    प्रश्नम्-  प्रकृतिः किं प्रददाति?

   घ)  अजातशिश्शुः मातृृगर्भे सुरक्षितः तिष्ठति।

    प्रश्नम्-  अजातशिश्शुः कुत्र सुरक्षितः तिष्ठति?

    ङ)  पर्यावरणरक्षणं धर्मस्य अङ्गम् अस्ति।

    प्रश्नम्-  पर्यावरणरक्षणं कस्य अङ्गम् अस्ति?

३.   उदाहरणमनुसृत्य पदरचनां कुरुत-

     क)  यथा-  जले चरन्ति इति        -        जलचराः

               स्थले चरन्ति इति           -          स्थलचराः

               निशायां चरन्ति इति         -           निशाचराः

                व्योम्नि चरन्ति इति          -             व्योमचराः

                गिरौ चरन्ति इति           -            गिरिचराः

              भूमौ चरन्ति इति            -           भूमिचराः

     ख)     यथा-   न पेयम् इति             -            अपेयम्

                   न वृष्टि इति            -          अवृष्टिः

                   न सुखम् इति             -               असुखम्

                न भावः इति              -             अभावः

                 न पूर्णः इति              -           अपूर्णः

४.   उदाहरणमनुसृत्य पदनिर्माणं कुरुत-

           यथा-   वि  +   कृ  +   क्तिन्     -        विकृतिः

        क)    प्र   +   गम्    +    क्तिन्       -      प्रगतिः

           ख)   दृश्     +     क्तिन्        -         दृष्टिः

          ग)   गम्   +     क्तिन्     -            गतिः

        घ)   मन्     +      क्तिन्       -        मतिः

        ङ)   शम्    +     क्तिन्       -        शान्तिः

        च)   भी      +     क्तिन्      -       भीतिः

       छ)    जन्     +     क्तिन्       -         जातिः

       ज)    भज्     +     क्तिन्       -        भक्तिः

      झ)   नी    +      क्तिन्      -      नीतिः

५.   निर्देशानुसारं परिवर्तयत-

यथा - स्वार्थान्धो मानवः अद्य पर्यावरणम् नाशयति (बहुवचने)।

     स्वार्थान्धाः मानवाः अद्य पर्यावरणम् नाशयन्ति।

    क)  सन्तप्तस्य मानवस्य मङ्गलं कुतः? (बहुवचने)

    उत्तरम्-   सन्तप्तानां मानवानाम् मङ्गलं कुतः?

       ख)   मानवाः पर्यावरणकुक्षौ सुरक्षिताः भवन्ति। (एकवचने)

  उत्तरम्-  मानवः पर्यावरणकुक्षौ सुरक्षितः भवति।

   ग)  वनवृक्षाः निर्विवेकं छिद्यन्ते। (एकवचने)

  उत्तरम्-  वनवृक्षः निर्विवेकं छिद्यते।

   घ)  गिरिनिर्झराः निर्मलं जलं प्रयच्छन्ति।

   उत्तरम्-   गिरिनिर्झरौ निर्मलं जलं प्रयच्छतः।

     ङ)  सरित् निर्मलं जलं प्रयच्छति। (बहुवचने)

   उत्तरम्-  सरितः निर्मलं जलं प्रयच्छन्ति।


        

 

NCERT, SANSKRIT SHEMUSHI CLASS-9 CHAPTER-7 SIKATASETUH


तपोदत्तः - मैं तपोदत्त हूँ। बचपन में पिताजी के द्वारा व्याकुल किए जाने पर भी मैंने विद्या का अध्ययन नहीं किया। इसलिए सभी रिश्तेदारों, मित्रों और बन्धु-बान्धबों के द्वारा अपमानित हुआ।
(लम्बी साँस लेकर)
हे विधाता! यह मेरे द्वारा क्या किया गया? तब मैं कैसी दुष्टबुद्धिवाला था! यह भी मेरे द्वारा नहीं सोचा गया -
श्लोकः - वस्त्रों और आभूषणों से सुशोभित होने पर भी विद्याहीन मनुष्य घर पर या सभा में उसी प्रकार शोभा नहीं पाता जैसे मणिरहित साँप सुशोभित नहीं होता॥


(कुछ सोचकर)
ठीक है, उससे क्या? दिन में राह से भटका हुआ व्यक्ति साम तक यदि घर लौट जाता है तो भी श्रेष्ठ है। इसे भ्रमित नहीं माना जाता है। यह अभी तपस्या के द्वारा विद्यालाभ करने के लिए प्रवृत्त है।


(पानी के उछलने की आवाज शुनाई देता है)
अरे यह तरंगोें के उछलने की ध्वनि कहाँ से आ रहा है? शायद बहुत बड़ी मछली अथवा मगरमछ है

देखता हूँ।
(एक पुरुष को रेत से पुल बनाने के प्रयास करते हुए देखकर हँसते हुए)
इस संसार में मुर्खों की कमी नहीं है! नदी केे तीव्र प्रवाह में यह मुर्ख रेत से पुल बनाने की प्रयास कर रहा है!
(जोर से हँसकर पास जाकर)


महाशय! यह आप क्या कर रहे हैं! मेहनत करना बंद करो। देखो,
श्रीराम ने समुद्र पर जिस पुल को पत्थरों से बनाया था उस पुल को रेत से बनाते हुए अपने परिश्रम को बेकार कर रहे हो॥
तो सोचो। रेत से किसी पुल का निर्माण किया जा सकता है?

पुरुषः - हे तपस्वि! तुम मुझे क्यों रोकते हो। कोशिश करने से क्या सफल नहीं होता है? शिलाओं की क्या आवश्यकता? अपने दृढ संकल्प से रेत से ही पुल बनालुँगा।
तपोदत्तः - आश्चर्य! रेेत से ही सेतु बनाओगे? रेत जल के प्रवाह में कैसे टिकेगी? अथवा
आप सोचा नहीं है?
पुरुषः - (खिल्ली उड़ाते हुए) सोचा सोचा।

अच्छी तरह सोचा। मैं सोपान मार्ग सेे अटारी पर चढ़ने में विश्वास नहीं रखता हूँ। उछलकर ही जाने मेें समर्थ हूँ।
तपोदत्तः - (व्यंगपूर्वक) बहुत अच्छा बहुत अच्छा! अञ्जनी पुत्र हनुमान को भी लांघने की कोशिश कर रहे हो!
पुरुषः - (सोचकर)
इसमें कोई संदेह है? और क्या,
लिपि-अक्षर ज्ञान के विना केवल तपस्या से ही यदि विद्या वश मेें हो जाएगी तो मेरा यह पुल भी रेत से बन जाएगा॥३॥
तपोदत्तः - (मन में लज्जापूर्वक) अरे ! यह भद्र पुरुष मेरे उद्देश्य का ही तिरस्कार कर रहा है । अक्षर ज्ञान के विना ही विद्वता प्राप्त करना चाहता हूूँ! इसलिए यह भगवती शारदा की अपमान है। गुरुकुल जाकर ही मुझे विद्या का अभ्यास करना चाहिए। परिश्रम से ही लक्ष प्राप्त होता है।

(प्रकाश कर) है मनुष्य श्रेष्ठ! मैं नहीं जानता की आप कौन हैं। परन्तु आपने मेरी आँखें खोल दी हैं। तपस्या मात्र से विद्या प्राप्त करने के लिए कोशिश करने वाला मैं भी रेत से ही पुल बनाने का प्रयत्न कर रहा हूँ। इसलिए अभि विद्या अध्ययन के लिए गुरुकुल को ही जा रहा हूँ।
(प्रणाम करते हुए जाता है)
अभ्यासः


१. अधोलिखितानां प्रश्नानाम उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत -
क) अनधीतः तपोदत्तः कैः गर्हितोऽभवत्?
उत्तरम्- अनधीतः तपोदत्तः सर्वैः कुटुम्बिभिः मित्रैः ज्ञातिजनैश्च गर्हितोऽभवत्।
ख) तपोदत्तः कन प्रकारेण विद्यामवाप्तुं प्रवृत्तोऽभवत्?
उत्तरम्- तपोदत्त॓ः तपश्चर्यया विद्यामवाप्तुं प्रवृत्तोऽभवत्।
ग) तपोदत्तः पुरुषस्य कां चेष्टां दृष्ट्वा अहसत्?
उत्तरम्- तपोदत्तः पुरुषस्य सिकताभिः सेतुनिर्माण-प्रयासं दृष्ट्वा अहसत्।
घ) तपोमात्रेण विद्यां प्राप्तुं तस्य प्रयासः कीदृशः कथितः?
उत्तरम्-तपोमात्रेण विद्यां प्राप्तुं तस्य प्रयासः सिकताभिः सेतुनिर्माणसदृशः कथितः।
ङ) अन्ते तपोदत्तः विद्याग्रहणाय कुत्र गतः?
उत्तरम्- अन्ते तपोदत्तः विद्याग्रहणाय गुरुकुलं गतः।
२. भिन्नवर्गीयं पदं चिनुत-

यथा - अधिरोढुम्, गन्तुम्, सेतुम्, निर्मातुम - सेतुम्
क) निःश्वस्य, चिन्तय, विमृश्य, उपेत्य - चिन्तय
ख) विश्वसिमि, पश्यामि, करिष्यामि, अभिलषामि - करिष्यामि
ग) तपोभिः, दुर्बुद्धिः, सिकताभिः, कुटुम्बिभिः - कुटुम्बिभिः
३. (क) रेखाङ्कितानि सर्वनामपदानि कस्मै प्रयुक्तानि?
१) अलमलं तव श्रमेण। - पुरुषाय
२) न अहं सोपानमार्गैरट्टमधिरोढुं विश्वसिमि। - पुरुषाय
३) चिन्तितं भवता न वा। - पुरुषाय
४) गुरुगृहं गत्वैव विद्याभ्यासो मया करणीयः। - तपोदत्ताय
५) भवद्भिः उन्मीलितं मे नयनयुगलम्। - तपोदत्ताय
(ख) अधोलिखितानि कथनानि कः कं प्रति कथयति?
कथनानि - कः - कम्
१) हा विधे! किमिदं मया कृतम्? - तपोदत्तः - विधातारं
२) भो महाशय! किमिदं विधीयते। - तपोदत्तः - पुरुषम्
३) भोस्तपस्विन्! कथं माम उपरुणत्सि। - पुरुषः - तपोदत्तम्
४) सिकताः जलप्रवाहे स्थास्यन्ति किम्? - तपोदत्तः - पुरुषम्
५) नाहं जाने कोऽस्ति भवान्? - तपोदत्तः - पुरुषम्
४. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-

क) तपोदत्तः तपश्चर्यया विद्यामवाप्तुं प्रवृत्तोऽस्ति।
प्रश्नम्- तपोदत्तः कया अथवा केन प्रकारेण विद्यामवाप्तुं प्रवृत्तोऽस्ति?
ख) तपोदत्तः कुटुम्बिभिः मित्रैः गर्हितः अभवत्।
प्रश्नम्- कः कुटुम्बिभिः मित्रैः गर्हितः अभवत्?
ग) पुरुषः नद्यां सिकताभिः सेतुं निर्मातुं प्रयतते।
प्रश्नम्- पुरुषः कुत्र सिकताभिः सेतुं निर्मातुं प्रयतते?
घ) तपोदत्तः अक्षरज्ञानं विनैव वैदुष्यमवाप्तुम् अभिलषति।
प्रश्नम्- तपोदत्तः किं विनैव वैदुष्यमवाप्तुम अभिलषति?
ङ) तपोदत्तः विद्याध्ययनाय गुरुकुलमगच्छत्।
प्रश्नम्- तपोदत्तः किमर्थं गुरुकुलम अगच्छत्?
च) गुरुगृहं गत्वैव विद्याभ्यासः करणीयः।
प्रश्नम्- कुत्र गत्वैव विद्याभ्यासः करणीयः?
५. उदाहरणमनुसृत्य अधोलिखितविग्रहपदानां समस्तपदानि लिखत-
विग्रहपदानि समस्तपदानि
यथा- संकल्पस्य सातत्येन संकल्पसातत्येेन
क) अक्षराणां ज्ञानम् - अक्षरज्ञानम्
ख) सिकतायाः सेतुः - सिकतासेतुः
ग) पितुः चरणैः - पितृचरणैः
घ) गुरोः गृहम् - गुरुगृहम्
च) विद्यायाः अभ्यासः - विद्याभ्यासः
६. उदाहरणमनुसृत्य अधोलिखितानां समस्तपदानां विग्रहं कुरुत-
समस्तपदानि विग्रहः
यथा- नयनयुगलम् - नयनयोः युगलम्
क) जलप्रवाहे - जलस्य प्रवाहे
ख) तपश्चर्यया - तपसः चर्यया
ग) जलोच्छलनध्वनिः - जलोच्छलनस्य ध्वनिः
घ) सेतुनिर्माणप्रयासः - सेतुनिर्माणस्य प्रयासः ७. उदाहरणमनुसृत्य कोष्ठकात् पदम् आदाय नूतनं वाक्यद्वयं रचयत- क) यथा - अलं चिन्तया। १) अलं भयेन। २) अलं कोलाहलेन। ख) यथा - माम् अनु स गच्छति। ("अनु " योगे द्वितीया) १) गृहं अनु नदी प्रवहति। २) पर्वतं अनु ग्राममस्ति। ग) यथा - अक्षरज्ञानं विनैव वैदुष्यं प्राप्तुमभिलषसि। १) परिश्रमं विना सफलता न लभते। २) अभ्यासं विना विद्यार्जनं कष्टकरं भवति। घ) यथा - सन्ध्यां यावत् गृहमुपैति। १) मासं यावत् अभ्यासं करोषि। २) वर्षं यावत् तपः करिष्यामि।

सुभाषितम्(NOBLE THOUGHTS)

 अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः। चत्वारि तस्य बर्धन्ते आयुर्विद्यायशोबलम्॥(महर्षि मनुः)  अर्थ  -               प्रतिदिन नियमितरूपसे गुरु...