सदृशं त्रिषु लिंगेषु सर्वाषु च विभक्तिषु।
वचनेषु च सर्वेषु यन्न व्येति तदव्ययम्॥
अर्थात् -
तीनों लिंगो में और सभी विभक्तियों में जो समान रहता है तथा सभी वचनों में जिसका कुछ नष्ट नहीं होता है, वो अव्यय है।
अव्ययाः बहुधा सन्ति।यथा -
१. तु - वाक्यस्य आदौ कदापि नागच्छति, साधारणतः प्रथमशब्दात् परमेव व्यवहृतम्।
अर्थः - उल्टे, इसके विपरीत, फिर भी
उदाहरणम् -
भीमस्तु पांडवानां रौद्रः।
२. मनाक् - थोडा, कम्, स्वल्प
न मनाक्
रे धावकाः! धावनप्रतिस्पर्धायां विपथगामी न मनागपि स्युः ।
३. तदा,तदानीं - बाद में, उस समय
४. युगपद् - एक ही समय पर, एक साथ, समकालिक
५. येन - जिसके द्वारा
६. यत्र - जहां पर, जिस स्थान पर
७. यथा - जैसे
८. यथावत् - यथाविधि, उचित रूप से / ठीक् से,
९. यदा - जब, उस समय जब
१०. यदृच्छातस् - अकस्मात्, संयोगवश
११. यर्हि - जब, जब तक, जब कभी भी
१२. ततः - उस व्यक्ति या स्थान से
१३. अपि - संस्कृत में वाक्य में पहले 'अपि' लगाने से वाक्य प्रश्नवाचक हो जाता है।
उदाहरण -
अपि चलच्चित्रं पश्यामः? (क्या हम चलच्चित्र देखें?)
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