Saturday, July 13, 2024

अव्ययम्(INDECLINABLE)

                                                      


                      सदृशं त्रिषु लिंगेषु सर्वाषु च विभक्तिषु।

                                       वचनेषु च सर्वेषु यन्न व्येति तदव्ययम्॥

अर्थात्  -

  तीनों लिंगो में और सभी विभक्तियों में जो समान रहता है तथा सभी वचनों में जिसका कुछ नष्ट नहीं होता है, वो अव्यय है।

अव्ययाः बहुधा सन्ति।यथा -

१.  तु   -  वाक्यस्य आदौ कदापि नागच्छति, साधारणतः प्रथमशब्दात् परमेव व्यवहृतम्। 

              अर्थः  -  उल्टे, इसके विपरीत, फिर भी

       उदाहरणम् -

                  भीमस्तु पांडवानां रौद्रः।

२.   मनाक्  -  थोडा, कम्, स्वल्प 

                 न मनाक्  

                 रे धावकाः! धावनप्रतिस्पर्धायां विपथगामी न मनागपि स्युः । 

३.   तदा,तदानीं  -  बाद में, उस समय

४.   युगपद्  - एक ही समय पर, एक साथ, समकालिक

 ५.   येन  -  जिसके द्वारा

 ६.  यत्र  -  जहां पर, जिस स्थान पर

 ७.  यथा  -  जैसे

 ८.  यथावत्  -  यथाविधि, उचित रूप से / ठीक् से,

९.  यदा  -  जब, उस समय जब

१०.  यदृच्छातस्  -  अकस्मात्, संयोगवश

११.  यर्हि  -  जब, जब तक, जब कभी भी

१२.  ततः  -  उस व्यक्ति या स्थान से

 १३.  अपि     -          संस्कृत में वाक्य में पहले 'अपि' लगाने से वाक्य प्रश्नवाचक हो जाता है।

 उदाहरण - 

    अपि चलच्चित्रं पश्यामः? (क्या हम चलच्चित्र देखें?)




                          



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