Saturday, August 9, 2025

सुभाषितम्(NOBLE THOUGHTS)

 अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः।

चत्वारि तस्य बर्धन्ते आयुर्विद्यायशोबलम्॥(महर्षि मनुः)

 अर्थ  -    

          प्रतिदिन नियमितरूपसे गुरुजनों को प्रणामक़रनेवाले तथा वयस्कज्ञानीजनों का सेवा करनेवाले व्यक्ति का आयु, विद्या, कीर्ति और शक्ति - इन चारों का वृद्धि होती है।


Monday, August 4, 2025

सुभाषितम् (NOBLE THOUGHTS)

 

श्रुतिर्विभिन्नाः स्मृतयश्च भिन्ना 

नैको मुनिर्यस्य वचः प्रमाणम्।

धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायां

महाजनो येन गतः स पन्थाः।।
 
अर्थः -
           वेद वाक्य अलग अलग हैं। स्मृतिवाक्य भी भिन्न हैं। कोई भी एक ही मुनि का वचन प्रमाण नहीं होता है। धर्म के तत्त्व अत्यन्त सूक्ष्म है। इसलिए महान् व्यक्तियों के द्वारा प्रदर्शित चिराचरित प्रथा ही उत्कृष्ट मार्ग है। 

Meaning  -

                    There are differences in the sayings of Vedas. The statements of Smriti Shastra are also different. The truth of righteousness is very much subtle or deep. So the classical traditions and customs are the best path which shown by the great persons. 

Thursday, July 31, 2025

NCERT SANSKRIT BHASHWATI Claas 11 Chapter - 2 सूक्तिसुधा

                                     सूक्तिसुधा   


१.   जिस देश में आदर सम्मान नहीं और न ही आजीविका का कोई साधन है, जहाँ कोई बन्धु-बान्धव,रिश्तेदार भी नहीं तथा किसी प्रकार की विद्या और गुणों की प्राप्ति की संभावना नहीं, ऐसे देश को छोड़ देना चाहिए। 
२.  किसी रोग से पीड़ित होने पर, दुख आने पर, अकाल पड़ने पर , शत्रृ  की ओर से संकट आने पर, राजसभा में, श्मशान अथवा किसी की मृत्यु के समय जो व्यक्ति साथ नहीं छोड़ता, वास्तव में वही प्रकृत बन्धु है। 
३. बलवानोंको अधिक बोझ क्या है? और उद्योग करने वालों को क्या दूर है? विद्यावानोंको विदेश क्या है? और मीठे बोलने वालों का शत्रु कौन है? 
४.  सुवर्ण के साथ होने से जैसे कांच की मरकत मणि सदृश शोभा हो जाती है वैसे ही सज्जनों के संगति से मूर्ख भी चतुर  वन जाता है। 
५.  पुष्प के गुच्छे के समान उदार मनुष्य की दो तरह की प्रकृति होती है कि या तो सबके शिर पर रहे अथवा वन में नष्ट हो जाए। 
 ६.  पण्डित को परोपकार के लिए धन और प्राण छोड़ देने चाहिये। विनाश निश्चय है अतः उत्तम कार्य के लिए प्राणों का त्याग श्रेष्ठ है। 
७.     इस संसार में अपना कल्याण चाहने वाले पुरुष को नींद, तंद्रा, भय, क्रोध, आलस्य और दीर्घसूत्रता ये छः अवगुण छोड़ देनी चाहिए। 
८.  हे राजा! नित्य धन की प्राप्ति, आरोग्यता, प्रियतमा और मधुरभाषिणी स्त्री, आज्ञाकारी पुत्र और धन उत्पन्न करने वाली विद्या - संसार का ये छः सुख हैं। 



                          अभ्यासः

१.  
  क)  अयं पाठः चाणक्यनीति-हितोपदेशाभ्यां ग्रन्थाभ्याम् संकलितः ।
   ख)  यस्मिन् देशे न सम्मानो न वृत्तिर्न बान्धवाः न च विद्यागमः तत्र वासः न कर्तव्यः।
   ग)   आतुरे व्यसने दुर्भिक्षे शत्रुसंकटे राजद्वारे श्मशाने च बान्धवः तिष्ठति। 
   घ)    काचः काञ्चनस्य संसर्गात् मारकतीं द्युतिं धत्ते। 
   ङ)   प्राज्ञः परार्थे धनानि जीवितं च उत्सृजेत्। 
   च)   मूर्खः सत्सन्निधानेन प्रवीणतां याति। 
   छ)   पुरुषेण निद्रा तन्द्रा भयं क्रोध आलस्यं दीर्घसूत्रताञ्च एते षड् दोषाः हातव्या।
    ज)   नित्यं अर्थागमः अरोगिता च प्रिया च भार्या प्रियवादिनी च वश्यश्च पुत्रः अर्थकरी च विद्या - जीवलोकस्य एतानि षट् सुखानि सन्ति। 
२.
क)  यः आतुरे व्यसने दुर्भिक्षे शत्रुसंकटे राजद्वारे श्मशाने च तिष्ठति सः बान्धवः।
ख)  जीवलोकस्य नित्यं अर्थागमः अरोगिता च प्रिया भार्या च प्रियवादिनी च वश्यश्च पुत्रः अर्थकरी च विद्या षट् सुखानि भवन्ति। 
ग)   मनस्विनः कुसुमस्तवकस्य इव द्वयी वृत्तिः भवति। 
घ)   षड्दोषाः भूतिमिच्छता पुरुषेण इह हातव्याः। 
ङ)   सन्निमितं वरं त्यागो विनाशे नियते सति। 

४.   

                                  

        विद्यागमः             विद्याप्राप्तिः
       व्यसने                  विपत्तौ
        सविद्यानाम्           विदुषां
        द्युतिम्                  शोभाम् 
        कुसुमस्तवकस्य      पुष्पगुच्छस्य
        मूर्ध्नि.                     शिरसि 
        भूतिम्                   कल्याणम् 
५.
              विग्रहपदानि                          समस्तपदानि

       1.   विद्यायाः आगमः                      विद्यागमः 
       2.    राज्ञः  द्वारे                            राज द्वारे
       3.    सतां सन्निधानेन                     सत्सन्निधानेन 
       4.    काञ्चनस्य संसर्गात्                काञ्चनसंसर्गात्
       5.    अर्थस्य आगमः                      अर्थागमः
       6.    जीविताय इदम्                       जीवितार्थम्
       7.       न  रोगिता                             अरोगिता 
       8.    अर्थं करोति या सा                  अर्थकरी 
६.

      1.        प्राप्ते  -  प्र + आप् + क्त, सप्तमी एकवचन 
      2.        प्रवीणताम्  -   प्रवीण + तल्, द्वितीया एकवचन 
      3.        वृत्तिः   -  वृत्  +  क्तिन् 
      4.         नियते  -  नी + यत् , विशेषण, सप्तमी एकवचने 
      5.         हातव्या  -   हा   +  तव्य, वहुवचने

Monday, July 21, 2025

वर्णानां नामानि (Colours Name)

 

१.   गौरवर्णः/धबलः/सित/श्वेतः    -    white 
२.    कृष्णः     -     black 
३.    रक्तः      -      red 
४.    केशरः     -     orange 
५.    हरितः     -      green 
६.     नीलवर्णः   -    blue 
७.     पीतवर्णः    -    yellow 
८.     परिधूसरं     -    quite grey 
९.      परिपाटलं    -    pale red 
१०.   पांडुरः   -      Whitish, pale-white, pale, yellowish-white colour 
१२.     पिंजरः      -    reddish yellow, tawny gold colored 
१३.    पीत-अरुण   -   yellowish red (orange) 
१४.     पीत-हरित  -    yellowish green 
१५.     सुवर्णं /स्वर्णँ  -   golden 

Friday, July 18, 2025

GUIDE TO LEARNING SANSKRIT

The Divine Nature of Language

According to the Rig Veda, language is the divine light that transforms human beings into saints, gods, or wise and intelligent individuals. Language serves as the medium that connects human beings with society. Through language alone, humans establish sovereignty in every field of knowledge and science. Therefore, when we wish to learn any new language, we must immerse ourselves deeply in that language and understand its essence.

Why Learn Sanskrit?

Sanskrit is the oldest language among all languages available in the world and is considered the mother of all languages. The treasure of ancient knowledge, wisdom, and science is well-secured and protected within it.

This language is highly scientific in nature. The literature has Vedas, Puranas, Nitishastra (science of morality), medical science, and much more. The Arthashastra, written by Kautilya (Chanakya), is renowned worldwide. In mathematics, Aryabhatta was the first to expound the concept of 'zero.' The contributions of Charaka and Sushruta in medical science are often talked about.

Other shastras such as Vastushastra, Rasayana shastra, Khagola vigyan (Astronomy), Jyotish shastra (Astrology), and Vimana shastra (Aeronautics) are also found in Sanskrit.

One must learn such a beautiful language that is filled with profound knowledge and wisdom.

How to Start Learning Sanskrit

There are four essential skills for learning the Sanskrit language:

1. Listening

This is the first skill that raises one's interest in knowing more about this language. In ancient times, the Vedas were learned by listening to the recitation of Vedic mantras from sages and saints. That is why the Vedas are called 'Shruti granthas' (heard scriptures). Pandit Vishnu Sharma's Panchatantra stories are another great example of this skill.

Listening to shlokas, mantras, stories, and dramas in Sanskrit develops one's interest in the language.

2. Speaking

Whatever we listen to, we must practice speaking. Vedic mantras were pronounced and recited by the saints, and disciples would speak and recite accordingly. This process continued each day.

We can also speak Sanskrit in our daily life, starting with one word, then two words, and so on. For example, every day when we wake up in the morning, we wish others by saying 'good morning.' The Sanskrit equivalent is 'suprabhatam.' Whenever we greet ourselves and others, we should say both "good morning" and "suprabhatam" together so that it becomes easy to remember and others can learn about this Sanskrit language.

3. Writing

For new learners of Sanskrit, writing is the third skill through which one can learn the alphabets. The script used in Sanskrit is called Devanagari script (the language of gods). This skill helps in understanding the language from its roots and makes reading in Sanskrit easier.

Once we know the alphabets perfectly, reading becomes easier, and writing reinforces what we have learned, making it well-remembered.

4. Reading

Reading books like Panchatantra stories, magazines, Shrimad Bhagavad Gita, and other texts provides vast knowledge and deeper understanding of the language.

Guidelines to Learn Sanskrit

  1. Listen to one shloka for 3 to 4 days - Focus on proper pronunciation and understanding.
  2. Learn daily-use words in Sanskrit - Practice Sanskrit words for common expressions:
    • Thank you → dhanyavadah
    • Good night → shubharatri
    • Breakfast → pratahrasam
  3. Gradual expansion - After every 3 to 4 days, add a few new words, shlokas, or anything that interests you in the language while continuing to practice the previous material.
  4. Daily reading practice - Make it a habit to read something in Sanskrit every day.
  5. Maintain a learning journal - Create a list and write down what you have accomplished each day.

Conclusion

Through consistent practice and by making it a habit, one can gradually master this divine language. The key is regular practice across all four skills: listening, speaking, writing, and reading. By following these guidelines systematically, anyone can embark on the beautiful journey of learning Sanskrit and accessing the profound wisdom contained within its vast literature.

Monday, June 30, 2025

NCERT SANSKRIT BHASWATI CLASS -11 CHAPTER - 1 कुशल प्रशासनम्



          श्रीरामचन्द्र ने जटाजुट धारण किये हुए और पेड़ के छाल के बने वस्त्र पहने हुए भरतजी को हाथ जोड़कर(नमस्कार करते हुए) , पृथिवी पर पड़ा हुआ देखा । जैसे प्रलय कालीन दुर्दर्श सूर्य तेजहीन होकर पृथिवी पर पड़ा हो।।१।।
२.  बड़ी कठिनाई से विवर्ण मुख और अत्यन्त दुवले पतले अपने भाई भरत को पहचान , श्रीरामचंद्र जी ने उन्हें दोनों हाथों से पकड कर उठाया। 
३.  रघुवंशी श्रीरामचंद्र जी ने भरत के मस्तक को सूँघ कर, उन्हें आलिङ्गन कर और उनको गोदी में विठा कर, आदर पूर्वक यह बात पूछे।
४.  हे ताज! विश्वसनीय,धीर, नीतिशास्त्रज्ञ, लालच में न फँसने वाले और प्रामाणिक कुलोत्पन्न लोगों को तुमने अपना मंत्री वनाया या नहीं? 
५.  क्योंकि हे राघव! नीतिशास्त्रनिपुण एकान्त भेद की परामर्श करने योग्य मंत्रियों द्वारा रक्षित , गुप्त परामर्श ही, राजाओं के लिये विजय का मूल है। 
६.  तुम निद्रा के वश में तो नहीं रहते? यथा समय जाग तो जाते हो? तुम पिछली रात में अर्थ की प्राप्ति के उपाय तो विचार  करते हो? 
७. अकेले तो किसी विषय पर विचार नहीं करते अथवा वहुत से लोगों के बीच बैठकर तो सलाह नहीं करते? तुम्हारा विचार कार्य रूप में परिणत होने से पहले दूसरे राजाओे को विदित तो नहीं हो जाता है?
८.  अल्प प्रयास से सिद्ध होने वाले और बड़ा फल देने वाले कार्य को करने का निश्चय कर , शीघ्र ही उसको करना तुम आरम्भ कर देते हो कि नहीं? उसे पूरा करने में विलम्ब तो नहीं करते। 
९.  तुम हजार मुर्खों को त्याग कर एक पण्डित को आश्रय करते हो कि नहीं? क्योंकि यदि सङ्कट के समय एक भी पण्डित पास हो, तो बड़े ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। अर्थात् बड़ा लाभ होता है। 
१०.  किन्तु यदि एक भी बुद्धिमान, स्थिरबुद्धि, विचारकुशल और नीतिशास्त्र में अभ्यस्त मन्त्री हो, तो राजा अथवा राजकुमार को बड़ी लक्ष्मी प्राप्त करा देता है। 
११.  हे तात! तुम उत्तम जाति के नौकरों को उत्तम कार्य में, मध्यम जाति के नौकरों को मध्यम कार्य में और छोटी जाति के नौकरों को छोटे कामों में लगाते हो न? 
१२.  तुम उन मंत्रियों को जो ईमानदार हैं , जो कुलपरंपरा से  मंत्री होते आते हैं, जो शुद्ध हृदय और श्रेष्ठ स्वभाव के हैं, श्रेष्ठ कार्यों में नियुक्त करते हो न? 
१३.  हे भरत! तुमने किसी ऐसे पुरुष को, जो व्यवहार में चतुर, शत्रु को जितने वाला , सैनिक कार्यों में (व्यूहादि रचना में) चतुर, विपत्ति के समय धैर्य धारण करने वाला , स्वामी का विश्वासपात्र, सत्कुलोद्भव, स्वामिभक्त और कार्यकुशल हो, अपना सेनापति बनाया है कि नहीं? 
१४.  तुम सेना वालों को कार्यानुरूप भोजन और वेतन यथासमय देने में विलम्ब तो नहीं करते ।
१५.  क्योंकि भोजन और वेतन समय पर न मिलने से , नौकर लोग कुपित होते हैं और मलिक की निन्दा करते हैं । नौकरों का ऐसा करना , एक बड़े भारी अनर्थ की वात है ।


                                                                      अभ्यासः

१.   संस्कृतेन उत्तरं देयम्   -
  क)  अयं पाठः आदिकाव्याद् वाल्मीकिरामायणग्रन्थात् सङ्कलितः।
ख)   जटिलः चीरवसनः भुवि पतितः भरतः आसीत् ।
ग)   रामः भरतं पाणिना परिजग्राह।
घ)   भरतं रामो अपृच्छत्।
ङ)   मन्त्रो राज्ञां विजयमूलं भवति।
च)   उपधातीतः पितृपैतामहकुलात् निर्वाहितः शुचिः श्रेष्ठात्श्रेष्ठेषु च अमात्यः राज्ञः कृते क्षेमकरः भवेत्।
छ)   धृष्टश्च शूरश्च धृतिमान् मतिमाञ्छुचिः कुलीनः अनुरक्तः दक्षश्च गुणयुक्तः सेनापतिः भवेत्।
ज)   बलेभ्यः यथाकालं यथोचितं भक्तवेतनञ्च दातव्यम्।
झ)   मन्त्रः राज्ञां विजयमूलं भवति यत्  नैकः मन्त्रितः न च बहुभिः सह विमर्षितः।
ञ)   मेधावी अमात्यः राजानं महतीं श्रियम् प्रापयेत्। 
२.  रिक्तस्थानपूर्तिः क्रियताम्  -
क)   रामः ददर्श दुर्दर्शं युगान्ते भास्करं यथा ।
ख)   अङ्के भरतं आरोप्य रामः  सादरं पर्यपृच्छत ।
ग)    कच्चित् काले अवबुध्यसे?
घ)    पण्डितः हि अर्थकृच्छ्रेषु महत् निःश्रेयसं कुर्यात्। 
ङ)    श्रेष्ठाच्छ्रेष्ठेषु कच्चित् एवं कर्मसु नियोजयसि। 
५.  अधोलिखितपदानां उचितमर्थं कोष्ठकात् चित्वा लिखत -
    क)    दुर्दर्शनम्    -   कठिनाई से देखने योग्य 
    ख)    परिष्वज्य   -   आलिंगन करके 
     ग)    आघ्राय      -    सूंघकर 
     घ)     मुर्ध्नि       -     सिर में 
     ङ)    निःश्रेयसं   -     कल्याण को
     च)    विचक्षणः   -     निपुण 
     छ)    बलस्य       -     सेना का
६.   विपरीतार्थमेलनं क्रियताम् -
      क)   एकः     -       बहवः
      ख)   क्षिप्रं     -      शनैः
       ग)   पण्डितः   -    मुर्खः
       घ)   महत्     -      लघु 
७.    सन्धिविच्छेदः  क्रियताम्  -
       क)   कुलीनश्च   -   कुलीनः  +   च
       ख)   भृत्याश्च    -   भृत्याः   +   च
        ग)    धृष्टश्च     -    धृष्टः      +    च
       घ)     अनुरक्तश्च   -    अनुरक्तः   +    च
      ङ)     शूरश्च      -    शूरः      +    च
८.   अधोलिखितेषु शब्देषु प्रकृतिं प्रत्ययं च पृथक् कुरुत -
       क) पतितम्  -   पत्   +   क्त, तम् 
       ख)  आघ्राय   -   आ  +  घ्रा  +  ल्यप् 
       ग)   मन्त्रिणः   -    मन्त्र +  इन्, प्रथमा विभक्ति बहुवचने
       घ)    पण्डिताः   -  पण्डा  +  इतच्,  प्रथमा विभक्ति बहुवचने
       ङ)   मेधावी    -   मेधा   +   विनि  +  स्त्री : ईप्
       च)   दातव्यम्   -   दा  +   तव्य, तम्
       छ)   स्मृतः  -    स्मृ  +  क्त
    

                                                 समाप्तम् 

Tuesday, June 10, 2025

सुभाषितम्(NOBLE THOUGHTS)

 बहूनामप्यसाराणां समवायो  हि दुर्जयः ।

अर्थात्, 

      अनेक निर्बल होने पर भी समूह /संगठन को जीतना कठिन है।

Meaning - 

It's difficult to win also a group of several weak ones. 

    

   

Sunday, June 1, 2025

ज्योतिषाचार्याणां नामानि (ASTROLOGERS NAME)

१.     लगधः -  वेदाङ्गज्योतिषः

२.    आर्यभट्टः  - आर्यभटीयम्
३.  वराहमिहिरः - बृहज्जातकम्-लघुजातकम्-पञ्चसिद्धान्तिका
४.  ब्रह्मगुप्तः  - ब्रह्मस्फुटसिद्धान्तः, खण्डखाद्यं, ध्यानग्रहः 
५.  भास्कराचार्यः - सिद्धान्तशिरोमणिः, करणकुतूहलञ्च
६.   लल्लाचार्यः - रत्नकोशः   धीत्तद्धियन्त्रञ्च
७.   उत्पलाचार्यः - तत्तद्ग्रन्थटीकाः
८.    श्रीपतिः  -  सिद्धान्तशेखरः, धीकोटिकरणं रत्नमाला जातकपद्धतिः
९.    भोजदेवः  -  राजमृगाङ्ककरणम्
१०.   केशवः   -   ग्रहकौतुकम्, मुुहूर्त्ततत्त्वंजातकपद्धतिः
११.   गणेशदैवज्ञः   -   ग्रहलाघवम्
 १२.  कमलाकरः   -    सिद्धान्ततत्त्वविवेकः

Wednesday, May 28, 2025

शास्त्राणां नामानि ( NAMES OF SUBJECTS OF STUDY)

 

1.   वाङ्मयम्  -  Literature 
2.   रसायनशास्त्रम्  -  Chemistry 
3.   खगोलविज्ञानम्    -   Astronomy 
4.   अर्थशास्त्रम्   -       Economics
5.   गणितशास्त्रम्   -  Mathematics; Compromises Arithmetic, Algebra and Geometry 
6.   चिकित्साशास्त्रम्  -     Medical Science (Administering remedies or medicine) 
7.   वास्तुशास्त्रम्   -   Architecture 
8.   ज्योतिषशास्त्रम्     -   Astrology 
9.   विमानशास्त्रम्      -     Aeronautics 
10.  भूगोलशास्त्रम्     -      Geography

Thursday, April 24, 2025

सुभाषितम्(NOBLE THOUGHTS)

 

अनागतं यः कुरुते स शोभते 

स शोच्यते यो न करोत्यनागतम्। 

अर्थात्,
            जो अनागत विपत्ति का उपाय करता है, वह सुखी होता है; जो अनागत विपत्ति का विचार ही नहीं करता वह कष्ट पाता है।

Meaning,
                 The one who finds a solution for an unpredictable problem becomes happy. The one who doesn't think about the disaster that hasn't occurred suffers in future. 

Wednesday, April 16, 2025

NCERT SANSKRIT BHASWATI CLASS -11 CHAPTER -7 संगीतानुरागी सुब्बण्णः

             

               

              सुब्बण्ण का संगीत में जो स्वाभाविकी इच्छा थी, वो एकदिन  राजभवन में होनेवाली  संगति से और अधिक दृढ हो गई। एक दिन  पुराणिकशास्त्री पुत्र के साथ राजभवन में आ कर वहाँ अन्तःपुर की स्त्रीयों के सम्मुख पुराण की कथा आरम्भ करते हुए पहले अपने पुत्र से शुक्लाम्वरधर आदि श्लोकों को गवाया। यह देखकर वहाँ उपस्थित सभी जन प्रसन्न हुए।   कुछ समय पश्चात् वहाँ आये हुए राजा पास  वैठ कर पुराण सुनते हैं। पिता के समीप बैठा हुआ सुब्बण्ण पुराणप्रवचन आग्रह पूर्वक सुनते हुए ही मध्य में महाराजा को भी आश्चर्य सहित देख रहा था। महाराजा के सुन्दर मुख, मुख पर विशाल तिलक धारण किए हुए, उसमे भी विशाल गाल का शोभा बढ़ाने वाला दाढ़ी और मूँछ आदि सब कुछ उसका विस्मय का कारण था। राजा भी उस बालक को दो तीन बार  देख कर यह बालक चतुर है - ऐसा  सोचा। और पुराण समाप्त होने पर है शास्त्री! यह बालक क्या आपका पुत्र है? ऐसा पूछा। हाँ, महाप्रभु, ऐसा  शास्त्री ने उत्तर दिया।  फिर से विस्मयपूर्वक राजा बालक को सम्बोधित करके है वत्स! क्या आप भी पिता के जैसे पुरणप्रवचन करोगे? ऐसे पूछा। तब वह बालक - मैं पुराण प्रवचन नहीं करता हूँ। संगीत गाता हूँ यह कहा। तब राजा वोले - निश्चय । तो फिर तब तक (हम)  एक संगीत सुनते हैं  ऐसा कहा। तत्पश्चात ही सुब्बण्ण श्रीराघव दशरथात्मज इत्यादि श्लोकों को संगीत में गा कर सुनाया। उसके अन्त में वो  पुनः कस्तूरीतिलक इत्यादि श्लोक भी मुझे स्मरण है ऐसा कहा। 

          महाराजा अत्यधिक सन्तुष्ट हुए। इस प्रकार आनन्दित होकर राजा पारितोषिक के रूप में बालक को पान सहित उत्तरीय वस्त्र देकर, हे बालक! तुम बुद्धिमान हो। उत्तम रूप से संगीत शिख कर अच्छी तरह गाने के लिए आप अभ्यास करो। इसे भी अधिक पारितोषिक हम आपको देंगे  - ऐसा बालक को कहकर और पुनः शास्त्री जी को उद्देश्य कर, हे शास्त्री जी! पुत्र चतुर है , उसका  शिक्षा अच्छे से कीजीए, प्रायः महाकुशल होंगे ऐसा कहा। इसके बाद शास्त्री और पुत्र अपने घर को लौट गए। 


                                 अभ्यासः

१. संस्कृतेन उत्तरं दीयताम् -

क)  सुब्बण्णस्य सहजाभिलाषः संगीते आसीत्।
ख)  पुराणिकशास्त्री पुत्रेण सह राजभवनम् अगच्छत्। 
ग)  पुराणिकशास्त्री स्वपुत्रेण शुक्लाम्बरधरमित्यादि श्लोकं गापयामास। 
घ)  पुराणप्रवचनं श्रृण्वन् सुब्बण्णः महाराजं सविस्मयं पश्यति स्म। 
ङ)  सुब्बण्णः पितृवत् पुराणप्रवचनं करिष्यति वा न इति महाराजस्य विस्मयकारणम् आसीत्।
च)  राजा बालं द्वित्रिवारम् अपश्यत्।
छ) राजा बालं अपृच्छदिदं यत् " अये वत्स! किं भवानपि पितृवत् पुराणप्रवचनं करिष्यति? '"
ज) स बालः - 'अहं पुराणप्रवचनं न करोमि। सङ्गीतं गायामिति राजानं व्याहरत्।
झ)  परितुष्टः राजा बालाय सताम्बूलमुत्तरीयवस्त्रं अयच्छत्। 
ञ) राज्ञः कथनानन्तरं शास्त्री तत्पुत्रः च ग्रामं प्रति अगच्छताम्। 

२.   
क)   सुब्बण्णस्य सङ्गीतेऽभिलाषः राजभवने संवृत्तया कया दृढीवभूव?
ख)   तच्छ्रुत्वा कुत्रत्याः सर्वे पर्यनन्दन्? 
ग)    समागतो कः पुराणम् आकर्णयति स्म? 
घ)   कः पितुः पार्श्वे महाराजं सविस्मयं पश्यति स्म?
ङ)   कस्य मुखे तिलकालङ्कारः आसीत्?
च)   राजा कस्मै सताम्बूलम् उत्तरीयवस्त्रम् अयच्छत्? 

३.  
        विशेषण                  विशेष्य 
        संवृत्तया                 सङ्गत्या 
        समागतः                  राजा
        सविस्मयं               महाराजम् 
        सुन्दरम्                    मुखम्
        विशालस्य                गण्डस्थलस्य
        कण्ठस्थः                 श्लोकः 
        शोभावहम्                श्मश्रुकूर्चम्
 ५.  
    क)   एकस्मिन् दिने पुराणिक शास्त्री पुत्रेण साकं राजभवनम् अगच्छत्। 
    ख)   पितुः पार्श्वे उपविष्टः सुब्बण्णः महाराजम् सविस्मयं पश्यति स्म। 
    ग)   राजा बालं संबोध्य पर्यपृच्छत्। 
    घ)   त्वं मेधावी असि। 
    ङ)   पारितोषिकं भवते वयं दास्यामः। 
६.
   १.  साकम्  -   सह -       भ्रात्रा साकं अहं वीपणीं गच्छामि। 
   २.   पार्श्वे -    समीपे  -   मम पार्श्वे माता उपविश्य दूरदर्शनं पश्यति। 
   ३.  तत्र -       तस्मिन्  -     तत्र उड्डीयमानान् खगान् दृष्टवा शिशुः अत्र उत्पतितुं प्रयासं करोति।
   ४.   सुष्ठु -    उत्तमरूपेण -   रघुवीरः सुष्ठु मन्त्रोच्चारणं कृत्वा प्रतिस्पर्धायां प्रथमं पुरस्कारंं प्राप्तवान्।
   ५.  सम्यक् -      कस्यचिदपि कार्यस्य प्रारम्भे तद् कार्यविषये सम्यग्ज्ञानं नीत्वा एव प्रारब्धं कुर्यात्। 
   ६.  पुनः -          ओडिशा प्रदेशस्य कोणार्क क्षेत्रस्य मनोरम चित्रकला मां  पुनः भ्रमणार्थं आकर्षयति। 


७.  विलोमपद 
    
   अत्रत्याः -  तत्रत्याः
   परागतः  -   समागतः
    दूरे   -   पार्श्वे
    उदतरत्   -   पर्यपृच्छत् 
    प्रारब्धे -   अन्ते
    कदा   -   तदा 
    मुर्खः  -   चतुरः 
    असन्तोषः  -   सन्तोषः
    अल्पम् -  अधिकम् 


Sunday, March 9, 2025

सुभाषितम् (NOBLE THOUGHTS)

 वित्तेन रक्षते धर्मो विद्या योगेन रक्षते।

मृदुना रक्षते भूपः सस्त्रिया रक्षते गृहम्॥

अर्थात्,

      धन के द्वारा धर्म की रक्षा होती है, अभ्यास से विद्या की रक्षा होती है। विनय भाव से राजा का रक्षा होता है; उत्तम स्वभावयुक्त स्त्री से गृह का रक्षा होता है॥

Meaning -  

      Dharma is protected by wealth, education by practice. King is protected by politeness; home by good woman.

Monday, March 3, 2025

आजीविकानां नामानि (NAMES OF OCCUPATIONS)


१.  आरालिकः, आंधसिकः, औदानिकः   -    A cook

२.  आरामिकः  -    A gardener

३.  आरोहकः  -      A  rider, driver

४.  आरटः  -         An actor

५.  कुलंभरः, चौरः  -   A thief

६.  कांडीरः  -       An archer

७.  कांदविकः  -    A baker, a confectioner

८.  कुुठारिकः  -  A wood-cutter

९.  कुरटः, चर्मरुः, चर्मारः  -  A shoemaker

१०.  चंडिलः  -   A barber

११.  चाक्रिकः  -  A potter

१२.  प्राजकः   -  A charioteer, coachman, driver

१३. प्रहरीः, प्रतिहारः, रक्षकः  - A watchman, guard

१४.  प्राघूर्णिकः  -   A guest, visitor

१६.  शौचेयः  -  A washer-man

१७.  भिषजः  -  A pharmacist

१८.  भृत्यः, अनुयोज्यः  -  A servant

१९.  वैज्ञानिकः   -  A scientist

20.  चिकित्सकः    -  A doctor/A physician

21.  अपसर्पः, अपसर्पकः   -  A secret agent, a spy  

Friday, February 7, 2025

मानव शरीरस्य अङ्गानां नामानि (HUMAN BODY PARTS)

 

1.   मुखम्  -  Face

2.   कपालः  -  Skull

3.   चिकूरः  -   Hair

4.   कर्कराला  -  A curl of hair, ringlet

5.   अलिकं -   Forehead

6.   कर्णः   -   Ear

7.   ईक्षीका, चक्षुः, नेत्रम्  -  Eye

8.   नासिका  -  Nose

9.   कपोलः  -  Cheek

10.  अधरः, ओष्ठः  -  A lip (lower or upper)

11.  आस्यं -   Mouth

12.      दंष्ट्रा       -   Jaws

13.  दन्ताः  -   Teeth

14.  जिह्वा  -   Tongue

15.    पीचः      - The  Chin

16.   श्मश्रुः,मासुरी  -   Beard

17.   कृकः  -  Throat

18.   कंधरः  -  Neck

19.   पृष्ठः  -   The back

20.   कषेरुका, कसेरुका  -   The backbone, the spine

22.   करः, हस्तः, पाणिः, कुलिः ,वाहुः  -  Hand

23.   कफणिः, कफोणिः  -   The elbow

24.   उपवाहुः  -   The lower arm

25.   अङ्गुलयः  -  Fingers

26.   करेटः  -   A finger nail

27.   पिचंडः, उदरं  -  Belly

28.  ऊरुः -  Thigh

29.  घुंटकः, घुंटिका  -  Ankle

30.  पादः  -   Leg

31.  चरणः,चरणं  -  Foot

Thursday, February 6, 2025

सुभाषितम्(NOBLE THOUGHTS)

 


प्रभूतं कार्यमल्पं वा यन्नरः कर्तुमिच्छति।

सर्वारम्भेण तत्कार्यं सिंहादेकं प्रचक्षते॥


अर्थात्,

            बहुत अथवा अल्प कार्य जो मनुष्य करना चाहता है, सर्वप्रथम उस कार्य को पूरी लगन और हिम्मत के साथ सम्पन्न करे।सिंह का इसी एक महत्त्वपूर्ण गुण मनुष्य को ग्रहण करना चाहिए।


        

Monday, February 3, 2025

सुभाषितम्(NOBLE THOUGHTS)

 


 अन्नाद्दशगुणं पिष्टं पिष्टाद्दशगुणं पयः।

पयसोऽष्टगुणं मांसं मांसाद्दशगुणं घृतम्॥

     अर्थात्,

               अन्न की अपेक्षा आटा दस गुना अधिक शक्तिवर्धक होता है। आटे से दस गुना अधिक शक्ति दूध में होती है। मांस दूध से भी आठ गुना अधिक बल प्रदान करता है। परन्तु घी मांस से भी अधिक दस गुना शक्ति में वृद्धि कर देता है। इसलिए भोजन में घी की उचित मात्रा अवश्य ग्रहण करना चाहिए। 

Meaning -  Wheat flour is ten times more energetic than rice. Milk is ten times more than wheat flour. We get eight times more power from meat than milk. But ghee adds ten times more energy than meat. So one should add ghee in their daily meals in proper quantity.

सुभाषितम्(NOBLE THOUGHTS)

 अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः। चत्वारि तस्य बर्धन्ते आयुर्विद्यायशोबलम्॥(महर्षि मनुः)  अर्थ  -               प्रतिदिन नियमितरूपसे गुरु...